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Saturday, May 18, 2024
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मुस्लिम महिलाओं को विरासत का अधिकार दिलाने के लिए AIMPLB शुरू करेगा राष्ट्रव्यापी अभियान

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यसमिति ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने का फैसला किया है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि मुस्लिम महिलाओं को शरिया या इस्लामी कानून के अनुसार पैतृक संपत्ति में उनका उचित हिस्सा मिले.

यह निर्णय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस्लामी कानून बेटियों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा देता है, लेकिन मुसलमानों में इसका बड़े ही ‘सम्मान के साथ उल्लंघन’ किया जाता है. मुसलमानों के इस व्यवहार ने इस इस्लामी कानून को महज़ एक मजाक बना दिया है. अगर वे स्वेच्छा से अपनी महिला सदस्यों को विरासत में हिस्सा नहीं देते हैं तो शरिया कानून को लागू करने और माता-पिता या भाइयों पर बेटी या बहनों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने के लिए उनपर दबाव डालने की कोई व्यवस्था नहीं है.

हालांकि, मुसलमानों का कहना है कि मुश्किल से कुछ प्रतिशत मुस्लिम परिवार बेटियों और बहनों को पैतृक संपत्ति में उनका उचित हिस्सा देते हैं, भारत में कहीं भी इस बारे में कोई उचित सर्वेक्षण नहीं किया गया है कि कितने प्रतिशत मुस्लिम माता-पिता पैतृक संपत्ति के बटवारे के मामले में शरिया कानून का पालन करते हैं.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्य समिति की बैठक में कई प्रतिभागियों ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि कई मामलों में बेटियों को पारिवारिक विरासत में अपना हिस्सा नहीं मिलता है. इसी प्रकार, माँ को बेटे की संपत्ति से और विधवा को पति की संपत्ति से भी उनके उचित अधिकारों से वंचित कर दिया गया.

यह आश्चर्य की बात है कि बोर्ड इतने समय तक मुस्लिम महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप रहा और अब इस मामले को उठाया है. विरासत में महिलाओं की हिस्सेदारी से जानबूझकर इनकार करना भारत में मुस्लिम महिलाओं के आर्थिक रूप से कमज़ोर होने का एक महत्वपूर्ण कारण है.

कार्यसमिति के निर्णयों पर प्रकाश डालते हुए बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. एसक्यूआर इलियास ने कहा कि बोर्ड ने यह भी महसूस किया है कि भारत में महिलाओं को कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, देर से विवाह की समस्या, उनकी गरिमा और आत्मसम्मान पर हमले, कार्यस्थल पर शोषण, घरेलू हिंसा आदि जैसी कई सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बोर्ड ने इन मामलों पर कड़ा संज्ञान लिया और निर्णय लिया कि समाज को भीतर से सुधारने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.

सामाजिक सुधार के उद्देश्य से बोर्ड ने देश को तीन भागों में विभाजित किया और प्रत्येक खंड के लिए एक-एक सचिव नियुक्त किया है. जिन सचिवों को जिम्मेदारियां दी गई हैं वे हैं मौलाना एस अहमद फैसल रहमानी, मौलाना मोहम्मद उमरैन महफूज रहमानी और मौलाना यासीन अली उस्मानी.

बोर्ड ने काम शुरू करने के लिए एक रोडमैप तैयार करने के लिए मौलाना एस. अहमद फैसल रहमानी, मौलाना मोहम्मद उमरैन महफूज़ रहमानी और डॉ. एसक्यूआर इलियास की एक अलग समिति भी बनाया है.

बोर्ड के सचिव मौलाना सैयद बिलाल अब्दुल हई हसनी नदवी को तफहीम-ए-शरीयत समिति की ज़िम्मेदारी दी गई, जो आम लोगों के साथ-साथ अन्य लोगों के लिए इस्लामी कानूनों की व्याख्या करने वाली संस्था है.

मीटिंग में शामिल लोगों ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के संबंध में बोर्ड द्वारा किए गए प्रयासों, विशेष रूप से विभिन्न धार्मिक और सामाजिक नेताओं की गोलमेज बैठक और प्रेस कॉन्फ्रेंस की सराहना की.

बोर्ड की पहल पर लगभग 6.3 मिलियन मुसलमानों ने यूसीसी पर भारतीय विधि आयोग की अधिसूचना पर प्रतिक्रिया दी. मीटिंग में शामिल लोगों ने बोर्ड के प्रतिनिधिमंडल की भी प्रशंसा की जिसने बोर्ड अध्यक्ष के नेतृत्व में विधि आयोग के साथ चर्चा की. बैठक में सर्वसम्मति से यूसीसी के खिलाफ अपने प्रयास जारी रखने का संकल्प लिया गया.

कार्य समिति ने वक्फ संपत्तियों पर सरकार की कार्रवाई, वक्फ बोर्डों की आपराधिक लापरवाही और विभिन्न उच्च न्यायालयों में वक्फ अधिनियम के खिलाफ दायर मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की. यह निर्णय लिया गया कि वक्फ की शरिया स्थिति, वक्फ संपत्तियों को खतरे और संभावित उपचारात्मक उपायों पर देश के पांच प्रमुख शहरों में वक्फ सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे.

कार्यसमिति ने नये मध्यस्थता कानून के विभिन्न पहलुओं की विस्तार से समीक्षा की. यह निर्णय लिया गया है कि महासचिव के नेतृत्व में बोर्ड के कानूनी विशेषज्ञों की एक समिति सभी पहलुओं की जांच करेगी और बोर्ड को सुझाव देगी कि इसका उपयोग वैवाहिक और अन्य सामाजिक समस्याओं के समाधान में कैसे किया जा सकता है.

बैठक की अध्यक्षता बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने की. बैठक की कार्यवाही का संचालन बोर्ड महासचिव मौलाना मोहम्मद फज़लुर रहीम मुजद्दिदी ने किया.

बैठक में शामिल होने वालों में बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी, प्रोफेसर (डॉ.) सैयद अली मोहम्मद नकवी, सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी, महासचिव मौलाना मोहम्मद फज़ल रहीम मुज्जद्दीदी, कोषाध्यक्ष रियाज़ उमर, सचिव मौलाना मोहम्मद उमरैन महफूज़ रहमानी शामिल थे.

मौलाना एस. अहमद फैसल रहमानी, वरिष्ठ वकील युसूफ हातिम, मौलाना असगर अली इमाम मेहदी सलफी, मौलाना अब्दुल्ला, प्रोफेसर सऊद आलम कासमी, मौलाना अनीसुर रहमान कासमी, कमाल फारूकी, एडवोकेट एम.आर. शमशाद, एडवोकेट ताहिर एम. हकीम, एडवोकेट फ़ुज़ैल अहमद अयूबी, मौलाना नियाज़ अहमद फ़ारूक़ी, प्रो मोनिसा बुशरा आबिदी, एडवोकेट नबीला जमील और डॉ. एसक्यूआर इलियास शामिल रहे.

विशेष आमंत्रित सदस्यों में हामिद वली फहद रहमानी, एडवोकेट वजीह शफीक, एडवोकेट अब्दुल कादिर अब्बासी, डॉ. वकार उद्दीन लतीफी और मौलाना रिज़वान अहमद नदवी आदि शामिल थे.

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