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Thursday, May 23, 2024
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राजस्थान: कांग्रेस द्वारा उर्दू के प्रति सौतेले व्यवहार के विरोध में पद यात्रा पर निकले शमशेर ख़ान

रहीम ख़ान | इंडिया टुमारो

जयपुर | राजस्थान के चुरू के रहने वाले एक सरकारी उर्दू शिक्षक शमशेर खान ने 1 नवम्बर से अपनी कुछ मांगों को लेकर चुरू से “दांडी सद्भाव यात्रा” पर निकले हैं. शमशेर खान राजस्थान के चुरू से लेकर गुजरात के दांडी तक करीब 1100 किलोमीटर का यह सफर पैदल ही तय कर रहे हैं.

शमशेर खान की यह पैदल दांडी यात्रा चुरू से शुरू होकर राजस्थान के राजसमन्द जिले में पहुंच चुकी है.

इंडिया टुमारो से बात करते हुए अपनी यात्रा का उद्देश्य बताते हुए शमशेर खान कहते हैं कि मेरी इस यात्रा का उद्देश्य देश में एकता शांति सद्भाव का संदेश देने के साथ-साथ कुछ मांगों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षण करना है.

वो बताते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 350 अ में अल्प भाषाओं को अलग से प्राथमिकता दी गई है. लेकिन सरकार उर्दू के साथ भेदभाव कर रही है और लगातार ऐसी कोशिशें की जा रही हैं जिससे सरकारी स्कूलों से उर्दू ख़त्म होती जा रही है. सरकारी स्कूलों में उर्दू पढ़ने वाले बच्चे होने के बावजूद उर्दू नहीं पढ़ाई जा रही है. शिक्षक भर्ती में उर्दू के पदों पर भर्तियाँ नहीं निकाली जा रही है और स्कूलों से उर्दू शिक्षकों के पद समाप्त किए जा रहे हैं.

वो कहते हैं कि राजस्थान में करीब 300 कॉलेज हैं जिनमें से सिर्फ 60 से 65 कॉलेज में ही उर्दू पढ़ाई जाती है, जिनमें करीब 50 प्रतिशत पद खाली हैं. जो उर्दू लेक्चरर कॉलेज में लगे हुए हैं उन्हें भी डेपुटेशन पर किसी और विभाग में लगाकर दूसरा काम करवाया जा रहा है. हमारी सरकार से यही मांग है कि स्कूल से लेकर कॉलेज तक उर्दू को जिस तरह से नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और जो अनदेखी की जा रही है उस पर ध्यान देना चाहिए.

आगे शमशेर खान कहते हैं कि मेरी दूसरी मांग मदरसा पैरा टीचर्स को लेकर है. सरकार पैरा टीचर्स से एक तृतीय श्रेणी शिक्षक के बराबर काम लेती है लेकिन उनका मानदेय सिर्फ 6 हजार से 9 हजार रूपए ही है. हमारी मांग है कि समान काम समान वेतन की मांग को मानते हुए सभी मदरसा पैरा टीचर्स को भी तृतीय श्रेणी शिक्षकों के बराबर ही वेतन दिया जाए.

अपनी यात्रा को जयपुर की जगह दांडी लेकर जाने की वजह पूछने पर शमशेर खान ने इंडिया टुमारो को बताया कि, “मैंने 117 दिन तक चुरू में धरना दिया लेकिन सरकार ने एक दिन भी मेरी बात नहीं सुनी. मैं इससे मायूस हो गया था. फिर मेरी पत्नी ने मुझे गांधी जी से प्रेरणा लेते हुए दांडी यात्रा पर जाने के लिए प्रेरित किया. मैं 24 नवम्बर तक दांडी पहुंच जाऊंगा.”

शमशेर खान कहते हैं कि इस यात्रा में मैं अकेला ही चल रहा हूं लेकिन जहां से भी यात्रा गुजर रही है लोग मुझसे जुड़ रहे है. मेरा साथ देने के लिए लोग कुछ दूर तक मेरे साथ पैदल यात्रा भी कर रहे हैं. मुझे सभी लोगों का पूरा सहयोग मिल रहा है. लोग उर्दू और मदरसा पैरा टीचर्स की मांगों को लेकर जागरूक हो रहे हैं.

यात्रा को लेकर राज्य सरकार के रूख पर उनका कहना है कि अब तक सरकार के किसी नुमाइंदे ने उनसे कोई बात नहीं की है. यात्रा शुरू करने से पहले करीब 40-50 विधायकों को हमने अपनी मांगों के बारे में लिख कर दिया था लेकिन किसी ने भी कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया.

शमशेर खान एक सरकारी शिक्षक है इसलिए उन पर किसी तरह के सरकारी दबाव के सवाल पर शमशेर खान कहते हैं कि मैं सरकार के खिलाफ नहीं हूं, मैं अपने अधिकार और अपने समाज की बात उठा रहा हूं. मैं किसी से डरने वाला नहीं हूं.

शमशेर खान के पिता विधायक रह चुके हैं और किसी तरह की राजनीतिक महत्वकांक्षा के सवाल पर उन्होंने इंडिया टुमारो को बताया कि, “यात्रा समाप्ति के बाद जब मैं चुरू पहुंचूंगा तब 500 रूपए के स्टाम्प पेपर पर यह घोषणा करूंगा कि मैं कभी कोई राजनीतिक पद नहीं लूंगा. मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. मैं 2024 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाला हूं उसके बाद पूरी तरह से सिर्फ समाज में जागरूकता लाने के लिए ही काम करूंगा.”

यात्रा में मदरसा पैरा टीचर्स द्वारा सहयोग नहीं करने के सवाल पर वो कहते हैं कि, ऐसा बिल्कुल नहीं है, सभी पैरा टीचर्स जिस तरह से हो सकता है मेरा सहयोग कर रहे हैं. मदरसा पैरा टीचर संघ के अध्यक्ष आज़म पठान से भी मेरी लगातार बात हो रही है.

अल्पसंख्यक समुदाय के मंत्री और विधायकों के रवैए पर निराशा और दुःख जाहिर करते हुए वो कहते हैं कि जो विधायक मंत्री बनाए गए हैं वो अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर सरकार के सामने इसलिए बात नहीं रखते क्योंकि उन्हें डर है कि ऐसा करने से कहीं उनका मंत्री पद ना चला जाए, वहीं जो विधायक मंत्री बनना चाहते हैं वो भी इसीलिए आवाज़ नहीं उठाते कि कहीं आलाकमान नाराज़ ना हो जाए और इस वजह से उनका प्रमोशन ना रुक जाए.

यात्रा के आगे के प्लान के बारे में उनका कहना है कि यात्रा पूरी होने के बाद वो जयपुर आकर मांगे पूरी नहीं होने तक मुख्यमंत्री आवास के बाहर आमरण अनशन करेंगे.

इंडिया टुमारो से बात करते हुए उर्दू के व्याख्याता और तहरीक ए उर्दू राजस्थान के प्रदेश सचिव मुदस्सिर मुबीन कहते हैं कि, “कांग्रेस की हुकुमत से हमको बहुत उम्मीदें थी. जब सरकार बनी तो सोचा था अब हमारे काम बड़े आसानी से हो जाएंगे और पिछली सरकार ने जो भेदभाव उर्दू के साथ किया था  अब वह नहीं होगा. लेकिन 2 साल बाद भी ऐसा लग रहा है कि शायद सरकार उर्दू के बारे में सुनना चाहती ही नहीं है.”

मुदस्सिर मुबीन कहते हैं कि पिछली सरकार ने उर्दू के साथ जब भेदभाव किया था तो कांग्रेस के बड़े बड़े मंत्रियों ने रैलियों में हमारा साथ दिया था अब वह कहीं नजर नहीं आते हैं. क्या कांग्रेस के लिए हम सिर्फ वोट बैंक हैं?

मुदस्सिर मुबीन सरकार से सवाल करते हैं कि, “हमेशा उर्दू वालों को ही आंदोलन क्यों करना पड़ता है? कभी किसी और भाषा के लोग आंदोलन क्यों नहीं करते?  क्योंकि सरकार की नीयत साफ नहीं है, सरकार का रवैया उर्दू के साथ हमेशा भेदभाव वाला ही रहा है. लेकिन अब लोग जागरूक हो रहे हैं. सरकार को हमारी मांगों पर भी ध्यान देना होगा.”

इंडिया टुमारो से बात करते हुए राजस्थान उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन कायमखानी कहते हैं कि, “जिन स्कूलों में शत प्रतिशत तक उर्दू पढ़ने वाले छात्र हैं उन स्कूलों में भी बिना मांगे सरकार संस्कृत शिक्षक के पद स्वीकृत कर रही है और जिस तरह से लगातार उर्दू की अनदेखी कर रही है उससे परेशान होकर ही दांडी यात्रा निकालनी पड़ रही है. इतिहास गवाह है कि मातृभाषा को बचाने के लिए कई बड़े-बड़े आंदोलन हुए हैं, उर्दू हमारी मातृ भाषा है सरकार अभी उर्दू के इस आंदोलन को हल्के में ले रही है जिसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा.”

अमीन कायमखानी आगे कहते हैं कि, “उर्दू की तरक्की, उसको महफूज़ करने और उसकी हिफाज़त के लिए कभी भी कहीं भी कोई भी धरना, प्रदर्शन या आंदोलन करता है तो उसको हमारा पूरा समर्थन है. इसको किसी भी तरह की राजनीति से जोड़ना गलत है.”

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने में अल्पसंख्यक समुदाय का विशेष योगदान रहा है. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुए दो साल होने जा रहे हैं लेकिन फिर भी अल्पसंख्यक समुदाय के मुद्दे अभी भी जस के तस बने हुए हैं. सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय की लगातार की जा रही अनदेखी से कहीं ना कहीं एक आक्रोश सरकार के खिलाफ देखा जा रहा है. अगर समय रहते अल्पसंख्यकों की नाराजगी सरकार ने दूर  नहीं की तो आने वाले चुनावों में एक बड़ा नुकसान मौजूदा कांग्रेस सरकार को उठाना पड़ सकता है.  

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