इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | भारत के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक-सामाजिक संगठन जमाअत इस्लामी ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर कहा है कि देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती मानवाधिकारों की रक्षा और नागरिकों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है.
शनिवार को दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा है कि भारत विभिन्न वैश्विक सूचकांक में मानवाधिकार की श्रेणी में काफी निचले पायदान पर है जो कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की छवि के लिए सही नहीं है.
उन्होंने कहा कि देश में पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नागरिक समाज के लोगों और अल्पसंख्यकों की आज़ादी और अधिकारों को लेकर दुनियाभर में जो आंकडें प्रस्तुत किये जा रहे हैं वो हमें कटघरे में खड़े करने वाले हैं.
पत्रकार वार्ता में जमाअत इस्लमी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद सलीम इंजीनियर के अलावा राष्ट्रीय मीडिया सचिव सैयद तनवीर अहमद और राष्ट्रीय मीडिया सह-सचिव सैयद ख़लीक अहमद भी मौजूद थे.
मीडिया से वार्ता के दौरान जमाअत इस्लामी हिन्द ने कई मुद्दों पर अपनी बात रखी जिनमें मुख्य रूप से मानवाधिकार दिवस, न्यायपालिका और धर्म परिवर्तन और प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति का निलंबन जैसे मुद्दे शामिल थे.
उन्होंने कहा कि, भारत स्वतंत्रा के बाद से ही मानवाधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित रहा है और यही देश की पहचान रही है. लेकिन विभिन्न रिपोर्ट्स यह दावा करती है कि भारत में नागरिक आज़ादी, पत्रकारों की आज़ादी, अभिव्यक्ति की आज़ादी और बोलने की आज़ादी पर कहीं न कहीं अंकुश लगाया गया है.
प्रो. सलीम ने कहा मानवाधिकारों से संबंधित कुछ प्रमुख सूचकांकों पर हमारी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग में काफी गिरावट आई है.
उन्होंने कहा कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी किया जाने वाला आंकड़ा बताता है भारत 20वें विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक-2022 में 180 देशों में से 150वें स्थान पर है. इसी प्रकार 2022 वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (WJP) – “रूल ऑफ लॉ इंडेक्स” में भारत 140 देशों में 77वें स्थान पर है.
इस बात पर चिंता जताते हुए प्रोफेसर सलीम ने कहा कि मौलिक अधिकारों, सुरक्षा, कानून और व्यवस्था और नागरिक और आपराधिक न्याय जैसे मामलों में हम दुनिया के बाकी देशों से काफी पीछे हैं.
प्रोफेसर सलीम ने कहा कि यदि हम विश्वपटल पर एक लोकतांत्रिक देश के रूप में उभारना चाहते हैं तो हमें इन रिपोर्ट्स को ध्यान में रखते हुए काम करना होगा.
जमाअत इस्लामी ने कहा कि मानवाधिकारों के हनन की जो रिपोर्ट सामने आरही है उसपर देश को गंभीरता से विचार करना चाहिए न की उसे रिजेक्ट कर देना चाहिए. जमाअत ने कहा कि सरकार को देश में जो सोचने समझने वाले लोग हैं उनसे वार्ता करनी चाहिए और इस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए कि देश कि छवि जो दुनिया में धूमिल हो रही है उससे कैसे निपटा जाना चाहिए.
इसके साथ ही जमाअत इस्लामी हिन्द ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का स्वागत किया है, जिसने हाल ही में अपने फैसले में कहा है कि अधिकारी नागरिकों को धर्म परिवर्तन करने के इरादे की घोषणा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते.
जमाअत ने कहा कि, उच्च न्यायालय ने नागरिकों को उनके धर्म परिवर्तन की इच्छा के बारे में सरकार को सूचित करने के लिए मजबूर करने पर इसे “पूर्व-दृष्टया असंवैधानिक” घोषित किया है.
जमाअत ने कहा है कि, यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुरूप है, जो “सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का समान अधिकार देता है.”
जमाअत ने कहा है कि जिन याचिकाओं में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण का आरोप लगाया गया है, जिसमें लोगों को दबाव में धर्मांतरित किया जाता है, वे राजनीति से प्रेरित लगती हैं क्योंकि ये याचिकाएं ठोस डेटा द्वारा समर्थित नहीं.
मानव अधिकार दिवस
हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत का मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के समर्थन का इतिहास रहा है. हालांकि, जमात-ए-इस्लामी हिंद को लगता है कि हाल के दिनों में उसके धार्मिक अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के मामले में हमारा ट्रैक रिकॉर्ड काफी बिगड़ गया है.
जमाअत इस्लामी हिन्द का मानना है कि सरकार को हमारे मित्रों और सहयोगी देशों की इन रिपोर्टों और सलाहों को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए. सरकार को नागरिक समाज के प्रमुख सदस्यों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ बैठना चाहिए और उनकी शिकायतों को सुनना चाहिए.
भारत, देश और विदेश दोनों जगह मानवाधिकारों का चैंपियन बनाने के लिए कानून के माध्यम अपने संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के साथ-साथ नागरिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र को मजबूत करे.
न्यायपालिका और धर्म परिवर्तन
जमाअत इस्लामी हिन्द मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का स्वागत करती है, जिसने हाल ही में फैसला सुनाया कि अधिकारी नागरिकों को धर्म परिवर्तन करने के इरादे की घोषणा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते.
यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुरूप है, जो “सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का समान अधिकार देता है।” वर्तमान में जस्टिस एमआर शाह और सी टी रविकुमार की सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच भी “जबरन और धोखाधड़ी से धर्मांतरण” पर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है.
प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति का निलंबन
कक्षा 1 से 8 तक के अल्पसंख्यक छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति बंद करने के केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के फैसले पर जमाअत इस्लामी हिन्द ने चिंता व्यक्त की है.
सरकार यह कहकर इस कदम को सही ठहरा रही है कि वह एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के छात्रों के बीच समानता लाना चाहती है, जिन्हें केवल नौवीं और दसवीं कक्षा के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति मिल रही थी. अब अल्पसंख्यक छात्रों को भी 2022-23 शैक्षणिक सत्र से केवल नौवीं और दसवीं कक्षा के लिए छात्रवृत्ति मिलेगी.
जमाअत ने सरकार से कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति एक बार फिर से बहाल करने का आग्रह किया है.