इश्फाक़ उल हसन
श्रीनगर | जम्मू कश्मीर के बहुचर्चित कठुआ गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रेप और हत्या के आरोपी किशोर पर अब एक बालिग के रुप में मुकदमा चलाने के आदेश दिए जाने के बाद से न्याय की कुछ उम्मीद जगी है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में शुभम सांगरा के खिलाफ अदालत के पुराने आदेश को रद्द कर दिया है और अभियुक्त को वयस्क के रूप में मानकर फिर से मुकदमा चलाने के नए आदेश दिए हैं.
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि, “हालांकि आरोपी व्यक्ति के जन्म प्रमाण पत्र और स्कूल के रिकॉर्ड के आधार पर उसके किशोर होने के पक्ष में प्रमाण है, लेकिन जब ऐसा जघन्य अपराध अंजाम दिया गया हो तो आरोपी ऐसे दस्तावेज़ों के आधार पर शरण नहीं ले सकता है.”
जम्मू कश्मीर के बहुचर्चित कठुआ गैंगरेप मामले में 10 जनवरी 2018 को एक बच्ची को अगवा कर गांव के एक छोटे से मंदिर में चार दिन तक बेहोश करके उसके साथ दुष्कर्म किया गया था. बच्ची का क्षत-विक्षत शव 17 जनवरी को जंगल में मिला था.
जांच से पता चला था कि उसे नशीला पदार्थ दिया गया था, भूखा रखा गया था और कई दिनों तक उसके साथ बार-बार बलात्कार किया गया था. बाद में उसका गला घोंट कर उसके सिर को एक बड़े पत्थर से कुचल दिया गया था.
क्राइम ब्रांच ने इस मामले में सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी और अपराध के कथित मास्टरमाइंड सांझी राम सहित उसके बेटे विशाल जंगोत्रा और एक किशोर भतीजे सहित आठ लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था.
इस मामले के अन्य आरोपियों में परवेश कुमार उर्फ मन्नू, विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) दीपक कुमार खजूरिया उर्फ दीपू और सुरिंदर कुमार, हीरानगर थाने के सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता और हेड कांस्टेबल तिलक राज शामिल हैं.
कठुआ रेप और मर्डर केस में स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट ने छह आरोपियों को दोषी करार दिया था और विशाल को बरी कर दिया था. तीन अभियुक्तों को आजीवन कारावास और अन्य को पांच वर्ष कारावास की सजा दी गई थी.
फैसले के तुरंत बाद, पीड़िता के पिता ने कहा था कि पिछले साल आरोपियों के लिए हिंदू एकता मंच द्वारा रैली किए जाने के बाद परिवार मुश्किल दौर से गुज़रा है.
पीड़िता के पिता ने कहा था, “उन्होंने हमें, पाकिस्तानी हमदर्द करार दिया. अक्सर हमारे समुदाए के लोगों को धमकाया जाता था. वे (कट्टरपंथी हिन्दुत्ववादी तत्व) हमें मवेशियों को चराने नहीं देते. घटना के बाद हमें रसाना से शिफ्ट होना पड़ा था. उन्होंने हमारा सामाजिक बहिष्कार भी किया. मेरी बेटी के रेप और हत्या के खिलाफ आवाज़ उठाने से वे हमसे नाराज हैं.”
पीड़ित परिवार के वकील मुबीन फारूकी ने एक समाचार एजेंसी को बताया है कि, अन्य आरोपियों की तरह इसमें भी पंजाब में ही सुनवाई होनी चाहिए, कहीं और नही. ज़रूरत पड़ी तो वे इस मुद्दे (पंजाब में सुनवाई) पर स्पष्टता के लिए फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे.
फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश का हवाला दिया, जिसके तहत मामले की सुनवाई पंजाब के पठानकोट में स्थानांतरित कर दी गई थी और कठुआ में कुछ वकीलों द्वारा क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को चार्जशीट दाखिल करने देने से रोकने के बाद डे टू डे हियरिंग का आदेश दिया गया था.
उन्होंने कहा, “अभी तक तो यह स्पष्ट है कि मामले की सुनवाई पठानकोट में ही होनी है और अगर ज़रूरत पड़ी तो हम इस मुद्दे पर स्पष्टता के लिए फिर से उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे.”
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने मुकदमे को कठुआ से स्थानांतरित करने का आदेश दिया था और यह स्पष्ट कर दिया था कि पठानकोट के ज़िला और सत्र न्यायाधीश खुद सुनवाई करेंगे और इसे किसी अतिरिक्त न्यायाधीश को नहीं सौंपेंगे.
डेली इन-कैमरा हियरिंग का आदेश देने के अलावा, पीठ ने, जिसमें न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ (जो अब भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं) और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं, ने यह स्पष्ट कर दिया था कि “चूंकि यह अदालत (सुप्रीम कोर्ट) इस मामले की निगरानी कर रही है, कोई भी अदालत मामले से संबंधित किसी भी याचिका पर विचार नहीं करेगी.”
मुबीन फारुकी ने कहा कि, “हालांकि 2018 में शीर्ष अदालत ने सांगरा को सभी सुरक्षा प्रदान की थी, जिसे उस समय किशोर माना गया था, बुधवार के आदेश के बाद अब स्थिति बदल गई हैं. इसलिए ट्रायल पठानकोट में ही शुरू होना चाहिए.”