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Sunday, May 19, 2024
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ब्याज के बोझ और साहुकारों से पीड़ित एक ही परिवार के 6 सदस्यों ने की सामूहिक ख़ुदकुशी

– समी अहमद

पटना | एक ओर जहां ऑनलाइन ऐप्स के माध्यम से दिए जाने वाले लोन के मामलों में धोखाधड़ी के केस सामने आ रहे हैं, वहीं दक्षिणी बिहार के नवादा जिले में स्थानीय साहूकारों द्वारा भारी ब्याज वसूले जाने और उन्हें प्रताड़ित किये जाने के कारण बुधवार को एक ही परिवार के 6 सदस्यों द्वारा ज़हर खाकर सामूहिक ख़ुदकुशी का मामला सामने आया है.

इस दुखद घटना का शिकार एक फल विक्रेता केदार लाल का परिवार हुआ है. केदार लाल जो एक मज़ार पर आस्था रखता था, उसने आत्महत्या के लिए समोसे में ज़हर मिलाकर खाने के लिए शोबिहा कृषि फार्म के पास एक स्थित उस मज़ार को ही चुना.

केदार लाल की सबसे छोटी बेटी साक्षी ने अपनी मकान मालकिन को पूरी घटना की जानकारी दी जब साक्षी ने ज़हर खाने के बाद बहुत पीड़ा महसूस की.

स्थानीय सूत्रों के अनुसार सबसे पहले केदारलाल की पत्नी अनीता देवी और एक बेटी की ज़हर खाने से मौत हुई, उसके बाद एक बेटे और दूसरी बेटी की मौत हो गई. केदारलाल और साक्षी को फौरन वर्धमान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, पावापुरी रेफर कर दिया गया था, लेकिन उन्हें बचाने में बहुत देर हो चुकी थी.

केदारलाल को बुधवार को मृत घोषित कर दिया गया, जबकि साक्षी परिवार की छठी और आखिरी संतान थीं, जिसने गुरुवार को अंतिम सांस ली.

संयोग से केदार का दूसरे नंबर का बेटा अमित गुप्ता घटना के वक्त दिल्ली में था, अब वह अपने परिवार का एकमात्र जीवित सदस्य है.

केदारलाल के भाई शंभूनाथ लाल के बयान के आधार पर छह साहूकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. नवादा नगर थाने के एसएचओ अरुण कुमार सिंह के मुताबिक केदार सिंह ने कुछ साल पहले साहूकारों से करीब 12 लाख रुपये का कर्ज लिया था.

केदारलाल के भाई शंभूलाल ने आरोप लगाया कि उनके भाई और परिवार को साहूकारों द्वारा बहुत बुरी तरह से परेशान किया गया था. नवादा के एसडीपीओ उपेंद्र प्रसाद ने बताया कि छह में से दो आरोपी रंजीत सिंह और टुनटुन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है. बाकी चार आरोपियों के नाम मनीष सिंह, विकास सिंह, विजय सिंह और पंकज सिन्हा बताए जा रहे हैं.

एसडीपीओ उपेंद्र ने बताया कि एक डायरी बरामद हुई, जिसमें केदारलाल ने लिखा था कि उसने कर्ज़ के रूप में ली गई मूल राशि का दोगुना चुका दिया था. केदार ने शेष ब्याज़ की राशि चुकाने के लिए छह महीने का अनुरोध किया था, जो कि भारी ब्याज के कारण बकाया था. साहूकारों ने उसके इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया और बकाया राशि का भुगतान नहीं करने पर अंजाम भुगतने की धमकी दी थी.

केदारलाल ने अपनी डायरी में लिखा था कि, “ये लोग देश और समाज का कीड़ा हैं जो धीरे-धीरे सब कुछ दिमक की तरह सब कुछ चाट जाता है (वे समाज के वो कीड़े हैं जो धीरे-धीरे इसे दीमक की तरह खा जाते हैं) यह नोट 8 नवंबर की तारीख में लिखा हुआ बताया जा रहा है. पुलिस को डायरी अभी तक बरामद नहीं हुई है, लेकिन केदार के बेटे के स्मार्टफोन में उसी डायरी का एक स्क्रीन शॉट मिला है, जिसने अपनी मौत से ठीक पहले इसे पुलिस को सौंप दिया था.”

केदार ने अपनी डायरी में ये भी लिखा है कि, “मैं महाजनों (साहूकारों) से थक चुका हूं. उन्होंने पिछले पांच सालों में मेरा जीवन बर्बाद कर दिया है. मैंने जितना उधार लिया था, उसका दोगुना चुका दिया, लेकिन उन्होंने मेरी जिंदगी नरक बना दी है. मैं बार-बार कह रहा हूं कि मुझे जो बाकी देना है वह मैं चुका दूंगा लेकिन मैं ब्याज की राशि का भुगतान नहीं कर पाऊंगा लेकिन वे तैयार नहीं हैं. इसलिए, मैं यह कदम अंतिम उपाय (सामूहिक खुदकुशी) के रूप में उठा रहा हूं.”

केदार के बेटे प्रिंस ने भी मरने से पहले कहा था कि साहूकारों ने उसके परिवार को प्रताड़ित और परेशान किया था.

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रात करीब 10 बजे केदारलाल के बेटे प्रिंस ने बुधवार को जिस दिन उनकी मौत हुई थी उस दिन व्हाट्सएप पर एक स्टेटस डाला था कि “आई लव माई फैमिली”. फिर उसने स्टेटस बदल दिया “मैं मरूंगा तो हंसते हुए मरूंगा, जीते जी बहुत रोया हूं.”

भारत में ब्याज मुक्त छोटे ऋणों को बढ़ावा देने वाले संगठन ‘सहूलत’ के सीओओ अरशद अजमल ने इंडिया टुमारो को बताया कि यह घटना साहूकारों के ‘मौत के जाल’ का दुष्परिणाम है.

उन्होंने कहा, “हमारे यहां रजिस्टर्ड और अनरजिस्टर्ड साहूकार काम कर रहे हैं. हमें मालूम नहीं कि नवादा के आरोपी साहूकार रजिस्टर्ड भी हैं या नहीं. कई बार रजिस्टर्ड साहूकार भी रेग्युलेट नहीं होते हैं. लोन लेने वालों को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है. ऐसे लोन लेने वाले संकट में रहते हैं और उन्हें कोई सहायता नहीं मिलती है. साहूकार कर्ज़दारों के परिवार के सदस्यों का यौन शोषण तक करते थे.”

अरशद अजमल ने कहा, “लोग कर्ज़ पर भारी ब्याज के दुष्चक्र में फंस जाते हैं. इस सिस्टम में मूल राशि शीघ्र ही दुगुनी हो जाती है और परिणामस्वरूप लोन लेने वाला मुसीबत में फंस जाता है. नवादा का परिवार भी इसी स्थिति का सामना कर रहा था उन्होंने सोचा कि वे खुद को मार कर इससे छुटकारा पा सकते हैं. यह प्रवृत्ति अब काफी आम हो गई है. हमें इस तरह की बातें तभी पता चलती हैं जब पीड़ित अतिवादी कदम उठाते हैं.”

उनका कहना है कि, वित्तीय समावेशन (फाइनेंशियल इंक्लूशन) की बातें ज़मीनी नहीं हैं और ऐसी समस्याओं का समाधान सहकारी समितियों के माध्यम से किए जाने वाले वित्तीय समावेशन में ही है.

माइक्रोफाइनेंस के विशेषज्ञ अरशद अजमल ने बताया कि, “बिहार की समस्या यह है कि भागलपुर के सृजन घोटाले के कारण ऐसी सोसायटियों का रजिस्ट्रेशन कठिन हो गया है. हम 95 जगहों पर काम कर रहे हैं और हम ऐसे व्यक्तियों को ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करते हैं.”

माइक्रोफाइनेंस के विशेषज्ञ अरशद अजमल ने बताया, “सामुदायिक एकता से ही इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है. हम लोन की मूल राशि की लागत से अधिक शुल्क नहीं लेते हैं जो 4% से 8% तक ही होता है. यदि ऋण चुकाने में देरी होती है, तो हम कोई जुर्माना नहीं लगाते हैं.”

उन्होंने ऋण अदायगी के संकट के कारण होने वाली आत्महत्या की ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सामुदायिक संगठनों को बढ़ावा देने पर बल दिया.

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