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Monday, October 28, 2024
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मदरसों को नियमित करना राष्ट्रीय हित में : सुप्रीम कोर्ट

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है जियो और जीने दो। मदरसों को नियमित करना राष्ट्रीय हित में है। सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण बात इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए कहा, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 22 मार्च को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और कहा था कि, यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अप्रैल में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को लागू करने पर रोंक लगा दी थी। 22 अक्टूबर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की फिर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड, जस्टिस जेबी पारदी वाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ में हुई।

पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। पीठ ने कहा कि, “धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है जियो और जीने दो।”

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि, “मदरसों को नियमित करना राष्ट्रीय हित में है, क्योंकि अल्पसंख्यकों के लिए अलग बस्ती बनाकर देश की कई सौ वर्षों की समग्र संस्कृति को खत्म नहीं किया जा सकता है। भारत विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं और धर्मों का संगम स्थल है।”

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई दिन भर चली।सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दिन भर चली सुनवाई के दौरान यह महत्वपूर्ण बात कही। इस दौरान सभी पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश की।पीठ ने सभी की दलीलें सुनी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी पेश हुए और दलीलें दीं। मुकुल रोहतगी की दलीलों से सहमति जताते हुए चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड ने समग्र राष्ट्रीय संस्कृति का हवाला देते हुए यूपी सरकार से पूंछा- “क्या यह हमारे राष्ट्रीय हित में नहीं है कि आप मदरसों को विनियमित करें? आप इस देश के इतिहास को इस तरह बर्बाद नहीं कर सकते। अधिनियम का उद्देश्य मुसलमानों को मुख्यधारा में लाना है।”

इस मामले की सुनवाई के शुरुआत में पीठ के एक सवाल के जवाब में यूपी सरकार की तरफ से पेश हुए ए एस जी के एम नटराज ने कहा कि, “राज्य सरकार उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 के समर्थन में है। उसका मानना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को पूरे कानून को निरस्त करने के बजाए केवल उन प्रावधानों को रद्द करना चाहिए था जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।”

के एम नटराज ने पीठ को यह भी बताया कि, राज्य ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कोई विशेष अनुमति याचिका दायर नहीं की है।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड ने कहा कि, “यह हमारे देश का लोकाचार है।याद रखें, आप इस्लाम के संदर्भ में जो तर्क दे रहे हैं, वह भारत में वेद पाठशालाओं से लेकर बौद्ध भिक्षुओं, जैन पुजारियों को प्रशिक्षित करने वाले संस्थानों तक सभी धर्मों पर लागू होगा।”

पीठ ने यह स्पष्ट किया कि इसे गलत नहीं समझा जाना चाहिए, क्योंकि वह समान रूप से चिंतित है कि मदरसों के छात्रों को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलनी चाहिए। हालांकि, पूरे कानून को रद्द करना नहाने के पानी के साथ बच्चे को बाहर फेंकने जैसा है।”

पीठ ने आगे कहा कि, “देश में धार्मिक निर्देश कभी भी अभिशाप नहीं थे। उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट, 2004 ने मदरसा – शिक्षा को अरबी, उर्दू, फ़ारसी, इस्लामिक- स्टडी, दर्शनशास्त्र को शिक्षा के रूप में परिभाषित किया था। इसका उद्देश्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को सशक्त बनाना है।”

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि, “संविधान के अनुच्छेद 28(3) में प्रावधान है कि एक छात्र स्वेच्छा से धार्मिक निर्देश प्राप्त कर सकता है, लेकिन कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए।”

पीठ ने यह भी पूछा कि, “धार्मिक निर्देश देने वाले मदरसों को मान्यता देने और उन्हें कुछ बुनियादी मानकों का पालन करने के लिए बाध्य करने वाले कानून में क्या गलत है। पूरे कानून को रद्द करने का मतलब है कि ऐसे संस्थान अनियमित बने रहेंगे। धार्मिक निर्देश देना सिर्फ मुस्लिमों तक ही सीमित नहीं है। यदि बौद्ध भिक्षुओं को प्रशिक्षण देने वाला कोई संस्थान है, तो क्या राज्य उससे कुछ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा भी प्रदान करने के लिए कह सकता है।”

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के रुख पर भी सवाल उठाया। उन्होंने सवाल किया कि, “क्या एनसीपीसीआर ने मदरसा पाठ्यक्रम का अध्ययन किया है? धार्मिक निर्देश क्या है? ऐसा लगता है कि आप इस शब्द से मंत्रमुग्ध हैं और सम्पूर्ण प्रस्तुतियाँ सही आधार पर नहीं हैं। धार्मिक निर्देशों और शिक्षा प्रदान करने के माध्यम के बीच एक अच्छा अंतर है “

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