इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का उपयोग करते हुए आईआईटी-धनबाद को फीस जमा नहीं कर पाने के कारण सीट गंवाने वाले दलित छात्र को प्रवेश देने का आदेश दिया है.
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, “हम ऐसे प्रतिभाशाली युवक को अवसर से वंचित नहीं कर सकते. उसे मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता.”
मुज़फ्फरनगर के खतौली क्षेत्र के टिटौड़ा गांव निवासी अनुसूचित जाति के मज़दूर राजेंद्र कुमार के बेटे अतुल ने जेईई की परीक्षा दी थी जिसमें उसकी रैंक 1455 आई थी और इसके आधार पर आईआईटी धनबाद में प्रवेश मिलना था.
आईआईटी धनबाद में प्रवेश के लिए 24 जून की शाम पांच बजे तक शुल्क जमा करना था लेकिन समय पर छात्र का परिवार 17,500 रुपये का शुल्क जमा नहीं करा सका था जिसके चलते वह एडमिशन नहीं ले सका.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अतुल कुमार को उसी बैच में प्रवेश दिया जाना चाहिए और किसी अन्य छात्र की उम्मीदवारी को प्रभावित किए बिना उसके लिए एक अतिरिक्त सीट की व्यवस्था की जानी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी-धनबाद को अतुल कुमार को संस्थान के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग बीटेक पाठ्यक्रम में दाखिला देने का निर्देश दिया.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता जैसे प्रतिभाशाली छात्र को वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जो हाशिए पर पड़े समूह से ताल्लुक रखता है और जिसने प्रवेश पाने के लिए हरसंभव प्रयास किया. हम निर्देश देते हैं कि अभ्यर्थी को आईआईटी-धनबाद में प्रवेश दिया जाए और उसे उसी बैच में रहने दिया जाए, जिसमें फीस का भुगतान करने की सूरत में उसे प्रवेश दिया गया होता.”
ज्ञात हो कि संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को न्याय के हित में कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है.
रिपोर्ट के अनुसार आईआईटी धनबाद की ओर से पेश हुए वकील ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) ने अतुल कुमार को एक एसएमएस भेजा और आईआईटी ने भुगतान पूरा करने के लिए दो व्हाट्सएप मैसेज भेजे थे. आईआईटी के वकील ने कहा, वह हर दिन लॉगिन करता था लेकिन फीस नहीं जमा हुई.
इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा, आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? आप कोई रास्ता क्यों नहीं निकाल रहे हैं? सीट आवंटन सूचना पर्ची से पता चलता है कि आप चाहते थे कि वह फीस दे और अगर उसने फीस दे दी, तो फिर किसी और चीज की ज़रूरत नहीं थी.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “वह बहुत होनहार छात्र है. उसे रोकने वाली एकमात्र चीज 17,000 रुपये थे.” उन्होंने कहा, “किसी भी बच्चे को सिर्फ इसलिए इस तरह नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि उसके पास 17,000 रुपये की फीस नहीं है.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फीस जमा करने की अंतिम तिथि 24 जून शाम 5 बजे थी. छात्र के माता-पिता ने शाम 4.45 बजे तक फीस जमा करने का प्रबंध कर लिया था लेकिन जब उन्होंने भुगतान किया तो यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई और पोर्टल शाम 5 बजे बंद हो गया.
कोर्ट ने कहा कि, लॉगिन विवरण से पता चलता है कि उसने पोर्टल में लॉग इन करने में बहुत मेहनत की थी. अगर याचिकाकर्ता के पास भुगतान करने के लिए फीस नहीं थी, तो ऐसा करने का कोई ठोस कारण नहीं था. हमारा मानना है कि एक प्रतिभाशाली छात्र को अधर में नहीं छोड़ा जाना चाहिए. हम निर्देश देते हैं कि आईआईटी धनबाद में प्रवेश दिया जाए.
अतुल कुमार (18) के माता-पिता 24 जून तक फीस के रूप में 17,500 रुपये जमा करने में विफल रहे, जो आवश्यक शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि थी. कुमार के माता-पिता ने आईआईटी की सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण और मद्रास उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया था.
उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले के टिटोरा गांव के रहने वाले कुमार एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे हैं और उनका परिवार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी में है.
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी उनकी मदद करने में असमर्थता जताई थी. कुमार ने झारखंड के एक केंद्र से जेईई की परीक्षा दी थी, इसलिए उन्होंने झारखंड राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण का भी रुख किया, जिसने उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया.
परीक्षा का आयोजन आईआईटी-मद्रास ने किया था इसलिए उच्च न्यायालय ने कुमार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने को कहा था.