अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटा दिया है और अरोपी बनाए गए याची की ज़मानत मंजूर कर ली है.
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस टिप्पणी को हटा दिया है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि, “अगर धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाली धार्मिक संस्थाओं को नहीं रोका गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी 1 जुलाई को उत्तर प्रदेश से जुड़े धर्म परिवर्तन के एक मामले की सुनवाई करते हुए की थी और आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया था। उक्त यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रोहित रंजन अग्रवाल ने की थी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा ज़मानत न मिलने से कैलाश ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ज़मानत देने की फरियाद की. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 27 सितंबर को हुई. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की.
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, “ज़मानत के चरण में हाईकोर्ट की ओर से की गई टिप्पणी अनुचित थी. इस तरह की सामान्य टिप्पणियों का इस्तेमाल किसी अन्य मामले में नहीं किया जाना चाहिए.”
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की उक्त टिप्पणी को हटा दिया और आरोपी कैलाश की ज़मानत मंजूर कर ली.
याची कैलाश की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल ने पीठ के सामने अपना पक्ष रखा.
यूपी सरकार की तरफ से एडीशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की उक्त टिप्पणी को अनुचित मानते हुए आरोपी कैलाश की ज़मानत मंजूर कर ली. उल्लेखनीय है कि यह मामला हमीरपुर की निवासी रामकली प्रजापति ने उठाया था और आरोप लगाते हुए इसकी शिकायत की थी.
रामकली के मुताबिक, आरोपी कैलाश ने इलाज के नाम पर दिल्ली ले जाकर एक समाजिक कल्याण समारोह में उसके भाई का धर्मांतरण करा दिया था. इसके साथ ही रामकली का यह भी आरोप है कि, उसके पड़ोस के कई अन्य लोगों को भी ऐसे समाजिक समारोह में ले जाया गया और धर्मांतरण करा दिया गया. लेकिन रामकली के अन्य आरोपों में कोई दम नहीं दिखता है, क्योंकि वह धर्मांतरण किए गए लोगों के नाम नहीं बता सकी.
क्या थी हाईकोर्ट की टिप्पणी ?
गौरतलब हो कि हाईकोर्ट ने 2 जुलाई को कैलाश की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कैलाश पर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए दिल्ली में एक धार्मिक मण्डली में ले जाने के आरोप लगे. सुनवाई में हाई कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि अगर ऐसी गतिविधियों की इजाज़त दी गई तो देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो सकती है.
हाई कोर्ट ने आगे कहा था कि ऐसे कई मामले देखे हैं जहां पूरे उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से वंचित समूहों के व्यक्तियों का ईसाई धर्म में रूपांतरण तेजी से हो रहा था. ऐसे में कैलाश को ज़मानत देने से भी इनकार कर दिया गया था.