-डॉ. ज़फरुल-इस्लाम ख़ान
नई दिल्ली | गोदी मीडिया चैनल और वेबसाइट इन दिनों एक दुष्प्रचार अभियान चला रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग (डीएमसी) और दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) हिंदू मंदिरों की ज़मीन हड़पना चाहते हैं.
यह दुष्प्रचार वक्फ़ पर मौजूदा विमर्श को मुद्दे से भटकाने की कोशिश है. इस अभियान में झूठा दावा किया जा रहा है कि डीएमसी ने सुझाव दिया है और डीडब्ल्यूबी ने हिंदू मंदिरों की ज़मीन की मांग की है. सच्चाई यह है कि न तो डीएमसी और न ही दिल्ली वक्फ बोर्ड ने कभी सुझाव दिया या मांग की है कि वक्फ की ज़मीन पर बने मंदिरों को गिरा दिया जाए या उनकी ज़मीन दिल्ली वक्फ बोर्ड को वापस कर दी जाए.
पश्चिम दिल्ली की कुछ मस्जिदों पर 2019 की डीएमसी रिपोर्ट तत्कालीन भाजपा सांसद श्री प्रवेश वर्मा के इस दावे की जांच करने के लिए तैयार की गई थी कि उनके संसदीय क्षेत्र में “अवैध” मस्जिदें बनाई गई हैं और ऐसी मस्जिदों को गिरा दिया जाना चाहिए.
प्रवेश वर्मा ने जून 2019 में दिल्ली के उपराज्यपाल को अपनी शिकायत भेजी थी, जिसमें दावा किया गया था कि पिछले 20 वर्षों के दौरान उनके निर्वाचन क्षेत्र (पश्चिमी दिल्ली) में 54 “अवैध” मस्जिदें बन गई हैं. उन्होंने मांग की थी कि इन मस्जिदों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. दूसरे शब्दों में, वह चाहते थे कि इन मस्जिदों को गिरा दिया जाए.
जब उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो श्री वर्मा ने अगले महीने एलजी को अपनी शिकायत फिर से भेजी. श्री वर्मा द्वारा एलजी को भेजे गए इस पत्र के बारे में मीडिया में रिपोर्ट प्रकाशित होने पर, तत्कालीन डीएमसी के अध्यक्ष के रूप में, मैंने दो मुस्लिम, दो ईसाई और एक सिख की पांच सदस्यीय समिति बनाई. ये सभी समाज के प्रतिष्ठित सदस्य थे और कानूनी और मानवाधिकार क्षेत्रों में सक्रिय थे.
समिति ने श्री वर्मा द्वारा प्रदान की गई सूची में सभी मस्जिदों का निरीक्षण किया, उनके कागज़ात देखे और अंत में आयोग को एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि इनमें से कोई भी मस्जिद अवैध नहीं है, जबकि उनमें से कुछ सदियों पुरानी हैं और इस प्रकार प्राचीन स्मारकों के रूप में संरक्षित हैं.
इसी दौरान समिति को तथाकथित “अवैध” मस्जिदों के आसपास कई अवैध मंदिर मिले, जो मस्जिदों के बराबर की ज़मीन पर बने थे. अपनी रिपोर्ट में समिति ने इन मंदिरों के साथ-साथ उनके स्थान और फोटोग्राफ का भी उल्लेख किया, हालांकि श्री वर्मा ने उन्हें नहीं दिखाया.
डीएमसी की उक्त रिपोर्ट की प्रतियां एलजी, दिल्ली के मुख्यमंत्री और यहां तक कि खुद श्री प्रवेश वर्मा को भी भेजी गईं. रिपोर्ट को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मीडिया को भी जारी किया गया. इसके बाद श्री वर्मा ने कभी इस मुद्दे को नहीं उठाया.
अब पांच साल बाद अचानक जी न्यूज़ को वह रिपोर्ट याद आ गई, लेकिन पूरी तरह से गलत संदर्भ में. ज़ी न्यूज़ ने इसे यह दावा करते हुए पेश किया कि डीडब्ल्यूबी मंदिरों की ज़मीन हड़पना चाहता है, जबकि रिपोर्ट में केवल इतना ही उल्लेख किया गया था कि तथाकथित अवैध मस्जिदों के आसपास के कुछ मंदिर वक्फ की ज़मीन पर बने हैं.
हमारी समिति ने श्री वर्मा की सूची में शामिल हर मस्जिद का निरीक्षण किया और पाया कि सूची में शामिल कोई भी मस्जिद “अवैध” नहीं है. सभी मस्जिदें वैध थीं, जबकि कुछ सदियों पुरानी थीं.
अपने दौरे के दौरान समिति को इलाके में अवैध मंदिर मिले और पता चला कि उनमें से कुछ वक्फ की ज़मीन पर बने हैं. समिति ने इस तथ्य को अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया, लेकिन अवैध मंदिरों की ज़मीन पर कोई मांग नहीं की. डीडब्ल्यूबी ने भी ऐसी ज़मीनों पर कोई दावा नहीं किया.
गोदी मीडिया द्वारा प्रसारित प्रचार पूरी तरह से मनगढ़ंत है. यह अभियान उक्त रिपोर्ट के वास्तविक उद्देश्य और निष्कर्षों को अस्पष्ट करता है. यह वक्फ मुद्दे पर मौजूदा चर्चा को गलत दिशा में ले जाने और मोदी सरकार की योजना के अनुसार वक्फ कानून में बड़े बदलावों का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास है.
कुछ दिन पहले ज़ी न्यूज़ के एक रिपोर्टर ने मुझे फोन करके बताया कि अगले दिन वे अपने चैनल पर इस मुद्दे पर एक पैनल चर्चा आयोजित कर रहे हैं. वह चाहते थे कि मैं उक्त चर्चा में भाग लूं. मैंने माफी मांगते हुए कहा कि पिछले साढ़े चार सालों से मैं गोदी मीडिया से बात नहीं करता क्योंकि इसके पक्षपात और झूठ के बारे में मेरे पिछले कड़वे अनुभव हैं. उक्त रिपोर्टर ने तुरंत माफी मांगी और कॉल बन्द कर दी.
अगले दिन ज़ी न्यूज़ के उर्दू सेक्शन ज़ी सलाम के एक रिपोर्टर ने मुझे इंटरव्यू के लिए फोन किया. मैंने वही बात दोहराई जो मैंने पहले उनके सहकर्मी को बताई थी. उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि ज़ी सलाम अलग है और मेरा इंटरव्यू बिना किसी कट के पूरा दिखाया जाएगा. इसके बाद मैंने उनसे मिलना स्वीकार किया. वे शाम को आए और मेरे साथ एक लंबा इंटरव्यू रिकॉर्ड किया, जिसमें मैंने डीएमसी रिपोर्ट के सार और परिस्थितियों और परिणाम के बारे में बताया और बताया कि अब इसे कैसे तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है. मैंने उन्हें डीएमसी रिपोर्ट की एक प्रिंटेड कॉपी भी दी. उस रात वह इंटरव्यू नहीं दिखाया गया. मेरे पूछने पर रिपोर्टर ने मुझे बताया कि इंटरव्यू अगले दिन दिखाया जाएगा.
अगले दिन ज़ी न्यूज़ ने छह लोगों को इकट्ठा किया, जिनमें तीन भगवाधारी हिंदूवादी थे. पैनल में एक वकील भी शामिल थे, जो डीएमसी कमेटी के सदस्य थे. उन्होंने मुद्दे को समझाने की कोशिश की, लेकिन एंकर ने उन्हें अपना स्पष्टीकरण पूरा नहीं करने दिया, जबकि एक भगवाधारी साधु सहित अन्य लोगों को पर्याप्त समय दिया गया, जिन्होंने साफ तौर पर घोषणा की कि अगर आप एक मंदिर की ज़मीन लेंगे, तो हम दस मस्जिद ले लेंगे!
बाद में एक हिंदी अख़बार के रिपोर्टर ने मुझसे इसी मुद्दे पर बात की, लेकिन जब वह मेरी बात सुनने के बजाय गोदी मीडिया की तर्ज पर मुद्दे पर अपनी समझ को उगलता रहा, तो मैंने कॉल काट दी.
यह दुष्प्रचार विभिन्न गोदी मीडिया और हिंदुत्व मंचों पर जारी है. सच तो यह है कि ये लोग सच के पीछे नहीं हैं. अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए ये कोई भी झूठ बोल सकते हैं.
(लेखक दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं।)