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Sunday, October 6, 2024
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मुस्लिम नर्स रेप-हत्या मामला: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को जारी किया नोटिस, कोर्ट के आदेश का जमीयत उलमा-ए-हिंद ने किया स्वागत

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | उत्तराखंड के रुद्रपुर की मुस्लिम नर्स की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच के समक्ष हुई.

यह मामला कोर्ट में मृतक की बेटी ज़िया मलिक ने अपने दादा और बहन साहिबा जहां के ज़रिए जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना (अरशद मदनी) की मदद से दायर किया है, जिसमें हत्या के मामले की सीबीआई जांच और पीड़ितों को मुआवज़ा देने की मांग की गई है.

मेडिकल स्टाफ की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर दिशा-निर्देश तय करने के लिए भी कोर्ट से अनुरोध किया गया है. याचिका में भारत संघ, बाल एवं महिला विकास मंत्रालय और उत्तराखंड राज्य को प्रतिवादी बनाया गया है.

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने कोर्ट को बताया कि पुलिस की अब तक की जांच संतोषजनक नहीं रही है. शुरू से ही पुलिस का आचरण गैर-पेशेवर रहा है.

मृतक के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज होने के बावजूद पुलिस ने एक सप्ताह तक कोई कार्रवाई नहीं की और लोगों के विरोध के बाद ही उन्होंने कार्रवाई शुरू की और आखिरकार एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया.

रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि मृतक की ग्यारह वर्षीय मासूम बेटी रोती रही और अपनी मां का इंतज़ार करती रही, लेकिन वह अपनी मां को जीवित नहीं देख सकी. इसके बजाय, एक सप्ताह बाद उसे उसकी मां की मौत की सूचना दी गई, जिससे बच्ची सदमे में चली गई.

एडवोकेट रामकृष्णन ने अदालत को आगे बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में लापता व्यक्तियों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनका स्थानीय पुलिस ने पालन नहीं किया.

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पूरे क्षेत्र में इसी तरह की घटनाएं हो रही हैं और पुलिस की कार्रवाई केवल खानापूर्ति और अपर्याप्त है. उन्होंने अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया.

एडवोकेट रामकृष्णन की दलीलें सुनने के बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने शुरू में सुझाव दिया कि मामले को उत्तराखंड उच्च न्यायालय को भेजा जाए. हालांकि, नित्या रामकृष्णन की आगे की दलीलों के बाद, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार करने का फैसला किया और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया.

कार्यवाही के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन के अलावा अधिवक्ता सरीम नावेद, अधिवक्ता शाहिद नदीम, अधिवक्ता अस्तुति रे, अधिवक्ता मुजाहिद अहमद और अन्य लोग बतौर सहायक शामिल रहे.

चिकित्सा कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर के दिशा-निर्देश के लिए अदालत से अनुरोध भी किया गया है. मृतक की छोटी बेटी ज़िया मलिक (अपने दादा के माध्यम से) और उसकी बहन साहिबा जहां ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में भारत संघ, बाल एवं महिला विकास मंत्रालय और उत्तराखंड राज्य को प्रतिवादी बनाया गया है.

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने तस्नीम जहां मामले में उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया.

उन्होंने दुख जताया कि कोलकाता मेडिकल मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर काफी सुर्खियां बटोरीं, जिसके कारण देशभर में डॉक्टरों ने विरोध प्रदर्शन और हड़ताल की और मीडिया में व्यापक कवरेज हुआ, लेकिन उत्तराखंड नर्स के मामले में लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया और न ही कोई विरोध जताया.

मौलाना मदनी ने सवाल उठाया कि क्या देश में न्याय अब केवल धार्मिक आधार पर ही मिलेगा? उन्होंने कहा कि अगर इस मामले में पारदर्शिता और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई होती तो जमीयत उलमा-ए-हिंद को सुप्रीम कोर्ट जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती.

उन्होंने खुशी जताई कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को पहचाना, सुनवाई की और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि कई अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी न्याय मिलेगा.

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