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Friday, October 18, 2024
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यूरोप में रूढ़िवादी और कट्टरपंथी नेताओं के उदय के बीच ईरान ने चुना सुधारवादी राष्ट्रपति

-सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | ऐसे समय में जब उदारवादी यूरोप में अति-राष्ट्रवादी और कट्टरपंथी रूढ़िवादी मज़बूत हो रहे हैं, जैसा कि फ्रांस में हाल ही में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनावों में राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के प्रदर्शन से और यूरोपीय संघ के सभी 27-सदस्य देशों में यूरोपीय संसद के सदस्यों के लिए किए गए चुनावों से स्पष्ट है कि ईरान ने एक सुधारवादी और उदारवादी राष्ट्रपति चुना है.

गौर करने की बात यह है कि ईरान ने एक उदारवादी राष्ट्रपति चुना है जबकि यूरोपीय बुद्धिजीवियों और मीडिया घरानों द्वारा ईरान को एक रूढ़िवादी समाज माना जाता है.

ईरानी राष्ट्रपति, 69 वर्षीय मसूद पेज़ेशकियान ने अपने चुनाव अभियान के दौरान बार-बार कहा है कि वह एक सुधारवादी हैं, जिनका इरादा अपने देश की घरेलू नीतियों में सुधार के अलावा अमेरिका और ईरान परमाणु समझौते में शामिल अन्य देशों के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का हैं.

हालांकि, उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई की नीतियों पर अपने पूर्ण समर्थन की घोषणा की है, पेज़ेशकियान महिलाओं के लिए हेडस्कार्फ़ जैसे ड्रेस कोड लागू करने के पक्ष में नहीं हैं. वह इसे किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद समझते हैं.

ईरान में महिलाओं द्वारा हेडस्कार्फ़ पहनने को पश्चिमी मीडिया द्वारा इसके खिलाफ दुष्प्रचार करते हुए इसे रूढ़िवाद के रूप में पेश किया जाता है और ईरान के पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के शासन के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप भी पश्चिमी मीडिया द्वारा लगाया गया. इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, जिसके कारण नए राष्ट्रपति को चुनने के लिए चुनाव कराने की ज़रूरत पड़ी.

निर्वाचित होने के तुरंत बाद, पेज़ेशकियान ने घोषणा की कि वह ईरान परमाणु समझौते, जिसे ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) कहा जाता है, को पुनर्जीवित करने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत फिर से शुरू करना चाहते हैं.

ईरान ने 2015 में अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और जर्मनी के साथ जिस जेसीपीओए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, वह अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियों द्वारा उस पर लगाए गए आर्थिक और अन्य प्रतिबंधों को हटाने के बदले में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर केंद्रित था.

परमाणु समझौते को लेकर पेज़ेशकियान की यह घोषणा पिछले राष्ट्रपति हसन रूहानी की नीतियों का ही एक सिलसिला है, हसन रूहानी को भी एक उदारवादी नेता माना जाता था. ईरानी रूढ़िवादियों और कट्टर राष्ट्रवादियों के विरोध के कारण रूहानी जेसीपीओए समझौते के पुनरुद्धार के लिए बातचीत करने में सफल नहीं हो सके थे.

इज़राइल ने ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित न करने के लिए अमेरिका पर अपने प्रभाव का भी इस्तेमाल किया था क्योंकि यह यहूदी राज्य के हित के खिलाफ था. चूंकि पेज़ेशकियान सुधारवादी समूह से हैं और उन्होंने पश्चिम के साथ जुड़ने की इच्छा व्यक्त की है, इसलिए यह उम्मीद थी कि पश्चिम उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगा. पेज़ेशकियान को अतीत में विभिन्न मुद्दों पर अपने उदारवादी और सुधारवादी विचारों के लिए ईरान में कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था.

पेशे से एक कार्डियक सर्जन रहे पेज़ेशकियान अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियों के साथ तालमेल बिठाने में विफल रहे. अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने पर बातचीत की उनकी पेशकश को सिरे से खारिज कर दिया है.

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन एफ. किर्बी ने मीडियाकर्मियों से कहा कि अमेरिका द्वारा ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने की कोई संभावना नहीं है, जिसे 2018 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रद्द कर दिया था.

ट्रम्प ने दावा किया था कि ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने का वादा किया था और अपने इस वादे को ईरान ने निभाया नहीं है इसलिए, जेसीपीओए समझौते को जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं थी.

ईरान अन्य यूरोपीय देशों की तरह कोई छोटा देश नहीं है जिसके पास दुनिया को देने के लिए कोई संसाधन या कुछ भी ना हो. अधिकांश छोटे यूरोपीय देश अपने अस्तित्व के लिए जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे बड़े यूरोपीय देशों पर निर्भर हैं. यदि एक देश से दूसरे देश में वीज़ा-मुक्त आवाजाही हटा दी गई तो उन्हें रोज़गार की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और उनकी करेंसी को यदि यूरो से स्वतंत्र कर दिया गया तो उनकी मुद्राओं में तेज़ी से गिरावट आएगी.

वे ईरान जैसे बड़े देश को चुनौती दे रहे हैं क्योंकि सभी 27 यूरोपीय संघ के देश, या सीधे सीधे कहें तो ईसाई संघ के देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और इसलिए, वे बहुत मज़बूत अर्थव्यवस्था बन गए हैं. जहां तक रक्षा की बात है, उन्होंने नाटो का गठन किया है, जो दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन है और यह नाटो के किसी भी सदस्य के हितों के खिलाफ जाने वाले किसी भी देश को चुनौती दे सकता है.

इसलिए यह समझा जा सकता है कि यूरोपीय संघ मूल रूप से एक ईसाई खिलाफत है जिसकी संयुक्त सेना यूरोपीय संघ के सामान्य हित के लिए ख़तरा माने जाने वाले किसी भी देश पर हमला करने के लिए तैयार रहती है.

चूंकि ईरान अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी दुनिया के सबसे शक्तिशाली गुट के खिलाफ खड़ा है, इसलिए नए ईरानी राष्ट्रपति ने इस गुट या ईसाई खिलाफत का नेतृत्व करने वाले अमेरिका के साथ खुली बातचीत की पेशकश की थी. ईरान दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पेट्रोलियम और ईंधन गैस उत्पादक देश है और यूरोप के बहुत करीब है. यूक्रेन युद्ध के कारण रूस द्वारा गैस आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने के बाद यह यूरोप को बहुत कम लागत पर पेट्रोलियम गैसों की आपूर्ति कर सकता है जिसमें अमेरिका और वो अन्य यूरोपीय देश भी शामिल हैं जो यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहायता दे रहे हैं.

अमेरिका के ईरान के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिए तैयार नहीं होने का कारण बताते हुए, किर्बी ने संवाददाताओं से कहा कि ईरान मध्य पूर्व में प्रतिरोध की धुरी है- फिलिस्तीन में हमास, लेबनान में हिज़बुल्लाह और यमन में हौथिस का समर्थन करता है और यह सभी इज़राइल के साथ युद्ध में लगे हुए हैं. इज़राइल मध्य पूर्व में अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी है.

किर्बी ने ईरान द्वारा रूस को ड्रोन की आपूर्ति करने का मुद्दा भी उठाया जिनका इस्तेमाल यूक्रेन के ख़िलाफ युद्ध में किया जा रहा था. किर्बी के अनुसार, 2015 में जब ओबामा प्रशासन ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे तब से अब तक मध्य पूर्व में ईरान के बारे में बहुत कुछ बदल गया है और इसलिए, अब इस समझौते को फिर से पुनर्जीवित करना उचित नहीं है.

2020 में इराक में अमेरिकी हवाई हमले में ईरान के सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद इराक में अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाने में ईरान के भी शामिल होने की खबर है.

लेकिन ईरान ने जो किया वह उसके राष्ट्रीय हित में था. यदि उसने लेबनान, फ़िलिस्तीन और यमन में अपने प्रतिनिधि स्थापित किए हैं, तो उसने अमेरिका, इज़राइल या यूरोपीय शक्तियों द्वारा हमले की स्थिति में खुद को बचाने के लिए ऐसा किया है. अमेरिका द्वारा ईरान की आत्मरक्षा के अधिकार पर सवाल उठाना एक संप्रभु राष्ट्र का अपमान है. पिछले साल अक्तूबर से फिलिस्तीनियों के नरसंहार में शामिल इज़राइल को अमेरिका खुद हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति कर रहा है.

मीडिया में किर्बी के बयानों के एक दिन बाद, ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैय्यद हुसैन नसरल्लाह को एक लंबा पत्र जारी किया जिसमें लेबनान में प्रतिरोध बलों को ईरान का समर्थन जारी रखने का वचन दिया गया है. यह अमेरिका के मुंह पर एक तमाचा है.

उन्होंने पत्र में लिखा, “प्रतिरोध के लिए समर्थन इस्लामी गणतंत्र ईरान की बुनियादी नीतियों, इमाम खुमैनी के आदर्शों और सम्मानित नेता अयातुल्लाह खामेनेई के मार्गदर्शन में निहित है और यह ताकत के साथ जारी रहेगा.”

इससे अब ईरान और अमेरिका के बीच सुलह और तनाव कम होने की सारी उम्मीदें धराशायी हो गई हैं.

मध्य पूर्व के विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका को पेजेशकियान के प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए था न कि सीधे तौर पर इसे अस्वीकार करना चाहिए था. अब गेंद पूरी तरह से अमेरिकी पाले में है कि वह ईरान के साथ जेसीपीओए समझौते को पुनर्जीवित करेगा या नहीं.

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