–स्टाफ रिपोर्टर
नई दिल्ली | भारत में मोदी सरकार द्वारा विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू किए जाने पर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने चिन्ता व्यक्त की है.
यूएससीआईआरएफ ने सीएए कानून की आलोचना करते हुए कहा है कि किसी भी व्यक्ति को धर्म या आस्था के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
यूएससीआईआरएफ के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने सोमवार को एक बयान में कहा, “सीएए, समस्याग्रस्त पड़ोसी देशों से भागकर भारत में शरण लेने आए लोगों के लिए धार्मिक अनिवार्यता का प्रावधान स्थापित करता है.”
श्नेक ने कहा कि, “सीएए हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों के लिए तो त्वरित नागरिकता का मार्ग प्रशस्त करता है, लेकिन इस कानून के दायरे से मुसलमानों को स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है.”
यूएससीआईआरएफ विदेश में धार्मिक स्वतंत्रता पर निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्ट करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र, द्विदलीय संघीय सरकार की इकाई है.
यूएससीआईआरएफ धार्मिक उत्पीड़न को रोकने और धर्म या आस्था की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अमेरिकी राष्ट्रपति, राज्य सचिव और कांग्रेस को विदेश नीति की सिफारिशें करता है.
गौरतलब है कि विवादित सीएए कानून शुरू से ही भारत में कानूनविदो, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों की नज़र में भेदभाव करने वाला कानून रहा है. इस कानून के बिल के रुप में आने के बाद से ही पूरे देश में इसके विरोध में आंदोलनों की लंबी श्रृंखला चली थी.
बीजेपी समर्थको को छोड़कर भारत में अब तक सभी ने इस अधिनियम से मुसलमानो को बाहर रख जाने पर सवाल उठाया है.
अब अमेरिकी आयोग यूएससीआईआरएफ ने भी सीएए की कड़ी आलोचना की है, हालांकि मोदी सरकार अपना बचाव करती नज़र आ रही है.
यूएससीआईआरएफ के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने अपने बयान में कहा, “अगर वास्तव में इस कानून का उद्देश्य उत्पीड़न झेलने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना होता, तो इसमें बर्मा (म्यांमार) के रोहिंग्या मुसलमान, पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान या अफगानिस्तान के हजारा शिया समेत अन्य समुदाय भी शामिल किए जाते. किसी को भी धर्म या विश्वास के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.”
श्नेक ने सवाल उठाते हुए ये भी कहा है कि, श्रीलंका से आने वाले तमिल शरणार्थी और चाइना में प्रताड़ित उइगर मुसलमानों को भी सीएए के माध्यम से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को दी जा रही नागरीकता से वंचित रखा गया है.
यूएससीआईआरएफ ने 25 मार्च को वाशिंगटन डीसी में टॉम लैंटोस मानवाधिकार आयोग की सुनवाई पर एक बयान जारी किया और अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों को सार्वजनिक रूप से उठाने और सरकारी समकक्षों के साथ चर्चा में धार्मिक स्वतंत्रता को शामिल करने का आग्रह किया.
यूएससीआईआरएफ ने कहा, “सीएए लागू होने के चार साल से अधिक समय बाद भी उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर और कई अन्य कार्यकर्ता शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के कारण गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत अभी भी जेल में बंद हैं.”
अपनी 2023 की वार्षिक रिपोर्ट में, USCIRF ने सिफारिश की है कि अमेरिकी विदेश विभाग भारत को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के व्यवस्थित, जारी और गंभीर उल्लंघन के लिए विशेष चिंता के देश के रूप में चिन्हित करे.
सितंबर 2023 में, USCIRF ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर सुनवाई कर चुका है कि स्वतंत्रता के अधिकारों के उल्लंघन को संबोधित करने के लिए अमेरिकी सरकार भारत सरकार के साथ कैसे काम कर सकती है.
भारत के गृह मंत्रालय का कहना है कि पाकिस्तान व म्यांमार आदि देशों के मुसलमान भी मौजूदा कानूनों के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.
हालांकि ये एक बड़ा सवाल है कि इन देशों के प्रताड़ित मुसलमानो के नागरिकता आवेदनों को मोदी सरकार द्वारा स्वीकार किया जाएगा या नहीं?
सीएए के कार्यान्वयन के नियमों को मार्च की शुरुआत में अधिसूचित किया गया था, जिससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से बिना दस्तावेज़ वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त हुआ.
इस कानून से मुसलमानों को बाहर रखने पर उठ रहे सवालों के बाद केंद्र की बीजेपी सरकार ने अपने कदम का जोरदार बचाव किया है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने हाल ही में कहा था कि सीएए “भारत का आंतरिक मामला” है और यह कानून नागरिकता देने के बारे में है, नागरिकता छीनने के बारे में नहीं.
जयसवाल ने कहा, यह प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने के मुद्दे को संबोधित करता है, मानवीय गरिमा प्रदान करता है और मानवाधिकारों का समर्थन करता है.
अतीत में, भारत ने देश में मानवाधिकार रिकॉर्ड पर टिप्पणी करने की यूएससीआईआरएफ की क्षमता को खारिज कर दिया था.