– अरशद अफ़ज़ाल ख़ान
अयोध्या | योगी आदित्यनाथ सरकार ने अवध के आखिरी नवाब शुजा-उद-दौला के आधिकारिक निवास ‘दिलकुशा’ की खस्ताहाल इमारत के जीर्णोद्धार की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अवध के आखिरी नवाब ने 1754 से 1775 तक अवध पर शासन किया और फैज़ाबाद को राजधानी व अयोध्या को एक धार्मिक शहर के रूप में विकसित किया था.
सरयू नदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक विरासत “दिलकुशा” भवन ने 1857 की क्रांति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इस इमारत ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए मुख्य आश्रय स्थल के रूप में काम किया था, अब इसका जीर्णोद्धार किया जाएगा और ढाई शताब्दी पुरानी इस इमारत को अपना मूल रुप फिर से हासिल होगा.
फैज़ाबाद की इस महान ऐतिहासिक विरासत को पहचान दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा परियोजना शुरू की गई है.
अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट नीतीश कुमार ने कहा, “हमें इस ऐतिहासिक इमारत के जीर्णोद्धार के लिए सरकारी विभागों से सभी प्रकार की एनओसी मिल गई हैं. 18वीं शताब्दी में जब फैज़ाबाद अवध की राजधानी थी तब के नवाबों द्वारा बनाए गए फैज़ाबाद के ऐतिहासिक द्वारों का भी हम नवीनीकरण करेंगे.”
नवाब शुजा-उद-दौला का आधिकारिक निवास बर्बाद हो चुका है, और आने वाली पीढ़ियों को ऐसे महान राजवंश की विरासत का नामो निशान भी नहीं मिल पाएगा, जिसने दुनिया को “अवध की संस्कृति” (अवध की तहज़ीब) दी. फैज़ाबाद का अयोध्या में परिवर्तन की प्रक्रिया के बीच, फैज़ाबाद के संस्थापक के अंतिम अवशेषों को सुरक्षा की ज़रूरत थी.
सआदत अली खान ‘बुरहानुल मुल्क’ (1722 से 1739), सफदरजंग (1739 से 1754) और शुजा-उद-दौला (1754 से 1775) सहित अवध के नवाबों की आत्माएं वाकई भाग्यशाली हैं, उनकी पहचान जल्द ही फिर से स्थापित हो जाएगी.
दो मंज़िला इमारत, दिलकुशा दस हज़ार वर्ग फुट से अधिक क्षेत्र में फैली हुई है, जिसमें प्रत्येक मंज़िल पर लगभग दस कमरे हैं. नवाब शुजा-उद-दौला अपने परिवार के सदस्यों के साथ कोठी की पहली मंज़िल पर रहते थे और भूतल पर उनका कार्यालय था जहाँ से वे अवध के साम्राज्य को चलाने का काम करते थे.
इस बंगले का निर्माण नवाब शुजा-उद-दौला ने स्वयं नवाब सआदत अली खान “बुरहानुल मुल्क” द्वारा निर्मित ‘कच्चा बंगला’ का नवीनीकरण करते हुए करवाया था. मुगल दरबार द्वारा नवाब सआदत अली खान “बुरहानुल मुल्क” को अवध प्रांत का प्रभार दिए जाने के बाद 1722 में अवध की पहली राजधानी फ़ैज़ाबाद की स्थापना की गई थी.
“बुरहानुल मुल्क” ने पहला निवास सरयू नदी के किनारे एक किले और मिट्टी की बैरक वाली छावनी के साथ बनाया, जिसका नाम “कच्चा बंगला” रखा गया. इस साम्राज्य को बाद में नवाब सफदरजंग (1739-1754) ने उत्तराधिकारी के तौर पर संभाला और अंततः 1756 में नवाब शुजा-उद-दौला ने इस पर अधिकार स्थापित कर लिया, जिन्होंने फ़ैज़ाबाद को पूर्ण राजधानी के रूप में विकसित किया.
दिलकुशा कोठी लगभग सौ बैरकों से घिरी हुई थी जिसमें नवाब की सेना के योद्धा रहा करते थे. दिलकुशा कोठी के बाहरी इलाकों में पुरानी सब्ज़ी मंडी, टकसाल, दिल्ली दरवाज़ा, रकाब गंज और हसनु कटरा जैसे कुछ इलाके थे. इन इलाकों को नवाब शुजाउद्दौला ने अपने सिविल सेवकों के लिए आवासीय क्षेत्रों के रूप में विकसित किया था.
शुजाउद्दौला ने अपनी सेना को दिलकुशा के विशाल परिसर के अंदर रखा था, लेकिन उसके नागरिक प्रशासन से जुड़े लोग दिलकुशा परिसर के बाहर स्थित इलाकों में रहते थे.
यहां दिलकुशा में नारकोटिक्स कार्यालय की स्थापना 1817 में अंग्रेज़ो द्वारा अफीम कार्यालय के रूप में की गई थी. उस समय ज़मीन का स्वामित्व “क़ैसर-ए-हिंद अफ़ीम सरकार” के पास था. स्वतंत्रता के बाद, भूमि का स्वामित्व “केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो” को हस्तांतरित कर दिया गया. आख़िरकार यह कार्यालय वर्ष 2012 में बंद हो गया.