इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | मशहूर लेखिका और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित, अरुंधति रॉय पर एक पुराने मामले में मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल ने मंज़ूरी दी है.
अरुंधति रॉय के साथ शेख शौकत हुसैन के खिलाफ भी मंगलवार को 2010 की एक पुराणी एफआईआर में मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मंज़ूरी दी.
यह मामला 2010 में एक सार्वजनिक समारोह में अरुंधति रॉय और शेख शौकत हुसैन के भाषणों से संबंधित है.
रॉय और हुसैन के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 504, 505 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), 1967 की धारा 13 के तहत अपराध के लिए दिल्ली पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 196 के तहत अभियोजन स्वीकृति मांगी थी.
रिपोर्ट के अनुसार, वीके सक्सेना ने कहा कि, “रॉय और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर डॉ. हुसैन के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक सार्वजनिक समारोह में उनके भाषणों के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, 153बी और 505 के तहत अपराध करने का प्रथम दृष्टया मामला बनता है.”
एलजी ऑफिस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि मामले में एफआईआर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, नई दिल्ली की अदालत के 27 नवंबर, 2010 के आदेश के तहत दर्ज की गई थी.
आरोप है कि सैयद अली शाह गिलानी और अरुंधति रॉय ने कार्यक्रम ने यह प्रचारित किया कि, “कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था और उस पर भारत के सशस्त्र बलों ने जबरन कब्जा कर लिया था और जम्मू-कश्मीर राज्य की भारत से आजादी के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए.”
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के कारण इस मामले में आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह) के तहत मंज़ूरी नहीं दी गई है.
एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि, “राजद्रोह मामले पर संविधान पीठ का फैसला आने तक आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह) के तहत तय किए गए आरोप के संबंध में सभी लंबित मुकदमे, अपील और कार्यवाही को तब तक स्थगित रखा जाएगा.”
ज्ञात हो कि इस मामले में दो अन्य आरोपी – सैयद अली शाह गिलानी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी – की मामले की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी.
क्या है पूरा मामला ?
साल 2010 में कश्मीर के एक सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित ने “आज़ादी – एकमात्र रास्ता” कार्यक्रम आयोजित करने और कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने को लेकर एफआईआर दर्ज करवाया था.
सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित ने 28 अक्टूबर, 2010 को ‘राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए समिति’ (सीआरपीपी) के बैनर तले 21 अक्टूबर 2010 को आयोजित एक सम्मेलन में सार्वजनिक रूप से भड़काऊ भाषण देने के को लेकर विभिन्न वक्ताओं के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाई थी.
आरोप लगाया गया था कि जिस मुद्दे पर चर्चा और प्रचार किया गया वह “भारत से कश्मीर को अलग करना” था.
शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि भाषण उत्तेजक थे, जिससे सार्वजनिक शांति और सुरक्षा खतरे में पड़ गई. शिकायतकर्ता ने बाद में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, दिल्ली की अदालत के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत शिकायत दर्ज की।
मामले में एफआईआर 29 नवंबर, 2010 को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के निर्देश पर 27 नवंबर, 2010 के आदेश के माध्यम से राजद्रोह, धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि राष्ट्रीय-एकीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आरोपों, दावों के साथ के अपराध के लिए दर्ज की गई थी.
इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), 1967 की धारा 13 के तहत भी मामला दर्ज किया गया था.