इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | मुज़फ़्फ़रनगर में एक स्कूल के टीचर द्वारा मुस्लिम छात्र को उसके सहपाठी छात्रों से थप्पड़ मरवाने के मामले में एफआईआर से आरोप हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को कड़ी फटकार लगाईं है.
कोर्ट ने पुलिस और सरकार के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह मामला राज्य की अंतरात्मा को झकझोर देना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार द्वारा मामले की जांच के तरीके पर आपत्ति जताई.
मुज़फ़्फ़रनगर में एक शिक्षक ने कथित रूप से सजा के तौर पर एक मुस्लिम सहपाठी को थप्पड़ मारने के लिए कहा जिसके बाद से सभी छात्रों ने मुस्लिम छात्र को बारी बारी से थप्पड़ मारा. वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल था.
इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में कुछ प्रमुख आरोप शामिल नहीं होने पर कोर्ट ने पुलिस के जांच के तरीके पर सवाल उठाते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाईं.
जस्टिस अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि मामले में उस प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में कुछ प्रमुख आरोप शामिल नहीं थे.
न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “जिस तरह से एफआईआर दर्ज की गई उस पर हमें गंभीर आपत्ति है. पिता ने बयान दिया था कि आरोप लगाए गए हैं और धर्म के कारण उन्हें पीटा गया है. लेकिन एफआईआर में इसका जिक्र नहीं है.”
कोर्ट ने कहा कि, “अगला सवाल यह है कि वीडियो ट्रांसक्रिप्ट कहां है? यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बारे में है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में संवेदनशील शिक्षा भी शामिल है. जिस तरह से यह हुआ है उससे राज्य की अंतरात्मा को झकझोर देना चाहिए.”
यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने अदालत को बताया कि मामले में ‘सांप्रदायिक कोण’ को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है.
उन्होंने कहा, “सांप्रदायिक पहलू को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है.”
जस्टिस ओका ने कहा, “यह सिर्फ कुछ नहीं, बहुत गंभीर है। शिक्षक ने बच्चे को उसके धर्म के कारण पीटने का आदेश दिया. यह कैसी शिक्षा दी जा रही है?”
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि मामले की जांच का नेतृत्व राज्य सरकार द्वारा नामित एक वरिष्ठ भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए.
बार एंड बेंच के अनुसार, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अधिकारी इस बात की जांच करें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए के तहत नफरत फैलाने वाले भाषण का अपराध बनता है या नहीं.
याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई मांगे:
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका महात्मा गांधी के परपोते तुषार गाँधी द्वारा दायर की गई थी. जिसमें संबंधित स्कूल शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी.
याचिकाकर्ता ने मामले की समयबद्ध और स्वतंत्र जांच के साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित बच्चों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए स्कूलों द्वारा उपचारात्मक कार्रवाई करने की मांग की गई है.
याचिकाकर्ता ने अदालत से राज्य पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया कि सभी लागू आपराधिक कानून प्रावधानों को लागू करके एक आपराधिक मामला दर्ज किया जाए, न कि केवल “अपेक्षाकृत हानिरहित” अपराधों के आधार पर.
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि अधिकारियों को “स्कूल शिक्षक की गिरफ्तारी सहित सभी परिणामी कार्रवाई करने” का निर्देश दिया जाए.
विवाद के केंद्र में शिक्षक तृप्ता त्यागी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने एक मुस्लिम छात्र के धर्म का उल्लेख किया था और मुस्लिम बच्चों के बारे में अपमानजनक बातें की थीं, जबकि अपने सहपाठियों से उसे पीटने के लिए कहा था.
क्या था मामला?
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के एक स्कूल टीचर ने मुस्लिम बच्चे को क्लास के अन्य बच्चों से बारी बारी मारने को कहा और कथित रूप से मुसलमानों पर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी भी की.
मामला मुज़फ्फरनगर में मंसूरपुर थाना क्षेत्र के खुब्बापुर गांव का है जहां नेहा पब्लिक स्कूल चलाने वाली एक टीचर तृप्ता त्यागी मुस्लिम बच्चे को अन्य बच्चों से बारी बारी थप्पड़ मारने को कह रही है और बच्चा खड़ा रो रहा है.
वीडियो वायरल होने के बाद स्कूल टीचर तृप्ति त्यागी और स्कूल के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग सोशल मीडिया पर लगातार उठाई जाने लगी.
जिस 8 वर्षीय मुस्लिम बच्चे को पीटा गया उसके पिता इर्शाद ने इस मामले पर बयान देते हुए एक वीडियो के माध्यम से कहा था कि मामले में लिखित समझौता हो गया है और मैं टीचर के खिलाफ कोई केस नहीं करूँगा क्योंकि कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना नहीं चाहता.
बाद में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए मामला दर्ज किया.
वीडियो वायरल होने के बाद कार्रवाई की मांग
मुज़फफ़नगर के खुब्बापुर गांव में निजी स्कूल में अध्यापिका और संचालक तृप्ता त्यागी ने मुस्लिम छात्र को अन्य छात्रों से थप्पड़ मारने को कहा जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
वीडियो वायरल होने के बाद जिले के खुब्बापुर गांव में संबंधित निजी स्कूल को बाद में सील कर दिया गया.
इस मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस से त्यागी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने को कहा था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी घटना का स्वत: संज्ञान लिया।
त्यागी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323 (चोट पहुंचाना) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
शिक्षण अधिकारी आरटीई अधिनियम के तहत आदेश का पालन करने में विफल रहे हैं: सुप्रीम कोर्ट
इस मामले में राज्य शिक्षा विभाग के सचिव को भी पक्षकार बनाया गया और कोर्ट द्वारा आवश्यक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है.
सोमवार की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि शिक्षण अधिकारी प्रथम दृष्टया शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई अधिनियम) के तहत आदेश का पालन करने में विफल रहे हैं.
कोर्ट ने कहा, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पीड़ित बच्चे के साथ-साथ सहपाठियों को एक पेशेवर परामर्शदाता द्वारा उचित परामर्श दिया जाए.
न्यायालय द्वारा राज्य को एक रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया गया था कि वह आरटीई अधिनियम के तहत अपराध के पीड़ित को उसकी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नए स्कूल में स्थानांतरित करने और उसकी सुरक्षा के लिए क्या सुविधाएं प्रदान करेगी.
इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी.