इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियां ज़ोरों पर हैं. कांग्रेस भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का दावा कर रही है तो भाजपा इस बार अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे के बजाय सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कर रही है.
भाजपा 2018 विधानसभा चुनाव परिणाम को देखते हुए सचेत है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़कर कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती.
भाजपा ने 2017 में उत्तर प्रदेश में अपनाई गई रणनीति को 2023 में मध्य प्रदेश में दोहराने का फैसला करते हुए यह तय किया कि पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी.
भाजपा ने सोमवार को अपने 39 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में 3 केंद्रीय मंत्रियों सहित 7 सांसदों और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तक को विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित कर अपने इरादे एक बार फिर साफ कर दिए हैं.
पार्टी ने जिन केंद्रीय मंत्रियों- नरेंद्र सिंह तोमर,फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रल्हाद पटेल के अलावा पार्टी के जिन राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है, उनमें से तीन मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, केंद्रीय मंत्री एवं मध्य प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी इसमें बड़े चेहरे होंगे.
भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को चुनावी अभियान के सेंटर पॉइंट से हटाकर अन्य नेताओं के समकक्ष खड़ा करना शुरू किया. 2023 में अपनी ही सरकार के लिए जनता का आशीर्वाद मांगने के लिए प्रदेश भर में निकाली जाने वाली जन आशीर्वाद यात्रा का इकलौता चेहरा सीएम चौहान नहीं होंगे.
पार्टी ने लोकसभा के जिन सांसदों – रीति पाठक, राकेश सिंह, गणेश सिंह और उदय प्रताप सिंह को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारा है, उनमें से एक भाजपा आलाकमान के काफी करीबी माने जाते हैं.
एक खास रणनीति के तहत राज्य में एंटी इनकंबेंसी के माहौल से पार पाने के लिए शिवराज सिंह चौहान को चुनाव प्रचार के सेंटर पॉइंट से थोड़ा अलग रखकर अन्य नेताओं को आगे किया जा रहा है.
पार्टी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे चुनाव को अपनी लोकप्रियता के आधार पर पार्टी के पक्ष में बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस लगातार उनकी नीतियों पर हमलावर है.
शिवराज सिंह चौहान को लेकर भाजपा का इतना बड़ा फैसला करने का आधार 2018 का पिछला विधानसभा चुनाव का रिजल्ट रहा है इसलिए भाजपा कोई जोखिम उठाना और पार्टी 2018 की गलती को इस बार दोहराना नहीं चाहती है.
मध्य प्रदेश में, 2003 से लगातार चुनाव जीत रही भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करारा झटका देते हुए सरकार से बाहर कर दिया था.
2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 114 पर जीत हासिल कर, कांग्रेस ने अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर भाजपा को राजनीतिक झटका दे दिया था और सरकार बनाने में सफल हुई थी.
हालांकि बाद में कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद भाजपा ने कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर करते हुए मार्च 2020 में फिर से अपनी सरकार बना ली.