अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | घोसी विधानसभा उपचुनाव में बसपा ने मतदान से ठीक पहले नया राजनीतिक दांव चला है। बसपा के इस नए दांव से भाजपा को बड़ा झटका लगा है।
यूपी के मऊ जिले के घोसी में विधानसभा का उपचुनाव हो रहा है। इस सीट पर चुनाव दारा सिंह चौहान के सपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद रिक्त हुई सीट के कारण हो रहा है। यहाँ पर चुनाव भाजपा लड़ रही है और एनडीए में शामिल सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल उसका समर्थन कर रहे हैं। भाजपा ने सपा छोड़कर आए दारा सिंह चौहान को अपना उम्मीदवार बनाया है।
सपा ने अपने पूर्व विधायक सुधाकर सिंह को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है। सपा का समर्थन कांग्रेस और रालोद कर रहे हैं। कहने को तो यहाँ पर सपा और भाजपा चुनाव लड़ रही हैं, जबकि हकीकत में यहाँ पर चुनाव एनडीए और इंडिया लड़ रहा है। दोनों राजनीतिक मोर्चों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
बसपा ने घोसी में अपना उम्मीदवार चुनावी मैदान में नहीं उतारा था। इस चुनाव में बसपा के उम्मीदवार न होने से यह कयास लगाया जा रहा था कि बसपा भाजपा का अंदरखाने समर्थन कर रही है। इसके साथ ही इस क्षेत्र में यह भी चर्चा चल रही थी कि बसपा सुप्रीमो मायावती भाजपा के साथ हैं, इसलिए दलित वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करेंगे।
यही नहीं, दलित वोटरों को यह भी समझाने का काम किया जा रहा था कि वह भाजपा को वोट दें। मायावती और बसपा चुप थी, इसलिए दलित वोटर भी भाजपा की ओर ताक रहा था। लेकिन मायावती ने मतदान से ठीक पहले नया राजनीतिक दांव चलकर राजनीति में उथल – पुथल मचा दिया है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने राजनीतिक नए दांव के रूप में दलित मतदाताओं से कहा है कि, वह घर बैठें और मतदान करने न जाएं। अगर जाएं तो नोटा दबाएं। बसपा के इस दांव से राजनीति गरमा गई है। मायावती ने इस तरह से नया राजनीतिक दांव चलकर एक तीर से कई शिकार किया है। मायावती ने दलित वोटरों से मतदान न करने या नोटा दबाने की बात कहकर, दलित वोटरों को अपने साथ साधने का प्रयास किया है।
क्योंकि अब राजनीतिक हल्के में यह कहा जाता है कि दलित मतदाताओं ने मायावती का साथ छोड़ दिया है। मायावती ने यह दांव चलकर दलित मतदाताओं को अपने साथ लाने के साथ ही उनको यह भी संदेश देने का काम किया है कि दलितों की सच्ची हितैषी हैं और उनके हित बसपा में ही सुरक्षित हैं।
इसके साथ ही मायावती ने भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दलों को भी यह संदेश देने का काम किया है कि दलित वोटर उनके साथ हैं और उनके एक इशारे पर किसी भी राजनीतिक दल को वोट दे सकते हैं। अगर दलित वोटर उनके कहने पर विधानसभा उपचुनाव में वोट नहीं देते हैं या नोटा दबाते हैं, तो मायावती एक बार फिर से दलितों की मसीहा बनकर राजनीति में उभरेंगी और भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
घोसी विधानसभा क्षेत्र में 90 हजार दलित वोटर हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को यहाँ पर 54 हजार वोट मिले थे। 90 हजार वोटर की संख्या बहुत होती है, इसलिए यह चुनाव परिणाम को हार और जीत में बदलने की क्षमता रखते हैं। यहाँ पर दलित वोटरों को लेकर भाजपा बड़ी उत्साहित थी और उसे उम्मीद थी कि मायावती की वजह से उसको दलित वोट मिल जाएंगे, जिससे वह घोसी में आसानी से जीत हाशिल कर लेगी।
हालांकि, मायावती के नए राजनीतिक दांव से भाजपा को बड़ा झटका लगा है और ऐन वक्त पर भाजपा के सपने चकनाचूर हो गए हैं। मायावती ने अपने इस नए दांव की भनक भाजपा को नहीं लगने दी। मायावती ने यह नया राजनीतिक दांव चलकर यूपी ही नहीं बल्कि देश की राजनीति और धुरंधर राजनेताओं को तक चौंका दिया है।
बसपा ने भाजपा को कटघरे में खड़ा करते हुए उस पर हमला भी बोला है। यूपी बसपा के अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा है कि, “पहले विधायकों को तोड़ने के लिए दल – बदल कानून लाया गया। पर अब नई परिपाटी शुरु हो गई है कि किसी सदस्य को इस्तीफा दिलाकर अपनी पार्टी में शामिल कर लो और फिर चुनाव लड़ा दो। इसका भार जनता पर जाता है। ऐसे चुनाव का हमारे लोग बहिष्कार करेंगे। जो लोग वोट डालने जाएंगे वो भी नोटा दबाएंगे।”
घोसी में बसपा द्वारा दलित वोटरों से मतदान न करने या नोटा दबाने की बात कहने से एक तरह से मतदान का बहिष्कार करना है।
बसपा का यह नया राजनीतिक दांव अगर सफल हो जाता है तो प्रदेश की राजनीति में फिर एक नया राजनीति समीकरण उभरेगा।