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Thursday, March 28, 2024
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महिला कांफ्रेंस में बोलते हुए JIH उपाध्यक्ष अमीनुल हसन ने कहा, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करें

इंडिया टुमारो

कोलकाता | जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) की पश्चिम बंगाल यूनिट द्वारा 22 और 23 जनवरी को कोलकाता और मुर्शिदाबाद में आयोजित दो जनसभाओं में विभिन्न धर्मों की महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ी.

इन दो जनसभाओं को संबोधित करने वालों में मुख्य वक्ता जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष एस. अमीनुल हसन और ऑल इंडिया जेआईएच (महिला विंग) की सचिव अतिया सिद्दीका शामिल थीं.

एस. अमीनुल हसन ने अपने भाषण में भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति और इस्लाम में उल्लेखित महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए मुस्लिम समाज के कर्तव्यों पर चर्चा की.

उन्होंने दिल्ली की दर्दनाक घटना से अपनी स्पीच की शुरुआत की, जहां एक अंजलि सिंह नामक युवती को पांच लोगों ने बेदर्दी से बारह किलोमीटर तक अपनी कार से घसीटा था. उन्होंने आरोप लगाया कि “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा लगाने वालों ने दिल्ली के इस मामले में सराहनीय भूमिका नहीं निभाई क्योंकि उन पांच में से एक आरोपी उनकी ही पार्टी का सदस्य है.

उन्होंने “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के नारे को महज़ जुमला करार दिया. एस. अमीनुल हसन ने विस्तार से बताया कि अगर वे लोग(सत्ताधारी) अपनी पार्टी के किसी व्यक्ति को हत्या या बलात्कार के मामले में आरोपी पाते हैं, तो वे उस मामले को कमज़ोर बना देते हैं.

उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि, “क्या बिलकीस बानो बेटी नहीं है? क्या चौदह दरिंदों ने उनका बलात्कार नहीं किया था? क्या उन्हें रिहा नहीं किया गया है? क्या आरोपियों को माला नहीं पहनाई गई थी?”

उन्होंने हाथरस मामले को भी याद किया जिसमें दलित लड़की के साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया था और उसे इतनी बेरहमी से पीटा गया था कि वह बच ही नहीं पाई?

उन्होंने कहा, “अगर पीड़ित दलित या मुस्लिम समुदाय या तथाकथित निचली जातियों से हो और अपराधी ऊंची जातियों या सत्ताधारी पार्टी से हो तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सभी मामले कमज़ोर कर दिए जाते हैं.”

अमीनुल हसन ने कहा कि, आखिर ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? आगे उन्होने उत्तर देते हुए कहा कि, “कानून बनाने वालों से अधिक अपेक्षा न करें. हाल ही में एक समाचार पत्रिका ने बताया कि सांसदों या विधायकों पर भी जघन्य अपराधों के कई मामले हैं. बीबीसी ने बताया कि पिछले साल दर्ज किए गए 10 मिलियन मामलों में से आधे मिलियन महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित थे. सैद्धांतिक रूप से हम बहुत कुछ कह सकते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से तो महिलाओं की स्थिति दयनीय ही है.”

उन्होंने ऐसे हालात की वजह स्पष्ट करते हुए कहा कि, “महिलाओं को हीन समझा जाता है. जब बेटी पैदा होती है तो खुद महिलाएं भी नाराज़गी जाहिर करती हैं. यहां तक ​​कि नवजात लड़की के पिता तो उससे मिलने आने में भी देर कर देते हैं. यह कुरीति अभी भी हमारे समाज में प्रचलित है जिसकी 1400 साल पहले पवित्र कुरान में निंदा की गई थी.”

उन्होंने अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, “यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिती मुस्लिम समाज में भी पाई जाती है जबकि कुरान तो कहता है कि पुरुष और महिला दोनों अपने अधिकारों और कर्मफलो में समान हैं.”

उन्होंने विस्तार से बताया कि जन्म, शिक्षा, नौकरी और जीवनसाथी चुनने में इस्लाम में स्त्री पुरुष के बीच उल्लेखित समानता को कोई भी देख सकता है- पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान अधिकार दिए गए हैं. हालांकि, उन्होंने कहा, “बेशक, पुरुषों और महिलाओं के कर्तव्य अलग-अलग हैं क्योंकि भूमिकाएं और जिम्मेदारियां अलग-अलग हो सकती हैं.”

उन्होंने विभिन्न स्तरों पर होने महिलाओं के शोषण की चर्चा की. उन्होंने आरोप लगाया कि, “महिलाओं के खिलाफ उनके कार्यस्थल पर मालिकों द्वारा यौन उत्पीड़न के मामले मीडिया घरानों तक में भी रिपोर्ट किए जाते हैं. महिलाओं की तस्करी बड़े शहरों में की जाती है. फिर उन्हें सम्मान के नाम पर मार दिया जाता है अगर कोई महिला अपने परिवारों की पसंद से अलग जीवनसाथी चुनने का फैसला करती है.”

उन्होंने सूरह निसा और सूरह मरयम नामक कुरान के दो अलग अलग अध्यायों का हवाला देते हुए इस्लाम में बताए गए महिलाओं की सुरक्षा के प्रावधानों को स्पष्ट किया.

जमाअत अध्यक्ष एस अमीनुल हसन, ने बंगाल के कुछ हिस्सों में होने वाले बाल विवाह का उल्लेख किया और कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लड़कियों को उनकी शिक्षा से वंचित नहीं किया जाए और उनके स्वास्थ्य से समझौता न किया जाए.
उन्होंने पुरुषों और महिलाओं दोनों से बेटियों को शिक्षित करने, उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का संकल्प लेने को कहा. उन्होंने आग्रह किया कि, “संकल्प लें कि हम अपनी बेटियों को सबसे अच्छी परवरिश देंगे. हम उन्हें भावनात्मक या किसी तरह चोट नहीं पहुंचाएंगे. यह मत भूलिए कि हमारी बेटियां भी बीबी फातिमा, बीबी खदीजा और बीबी आयशा जैसी बन सकती हैं.

उन्होंने महिलाओं को एकजुट होने और समूहों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि महिलाओं के खिलाफ कोई हिंसा न हो. उन्होंने महिलाओ से कहा कि, “ये उम्मीद न करें कि पुरुष आपके लिए लड़ेंगे. आपको अपने लिए अपने दम पर लड़ना होगा.

ऑल इंडिया जमात ए इस्लामी हिंद महिला विंग की सचिव अतिया सिद्दीक़ा ने अपने भाषण में श्रोताओं को बताया कि, महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि उनके घरों से लेकर कार्यालयों तक उनका शोषण किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि महिलाओं को उनके घरों तक सीमित करना और केवल बच्चों को जन्म देना इस्लामी नहीं है. “हमारी महिलाएं भी इन सब बातों से संतुष्ट हो जाती थीं लेकिन शिक्षित होने के बाद उन्होंने अपनी क्षमताओं को पहचाना और समाज में योगदान देना शुरू किया.”

उन्होंने विस्तार से बताया कि, “इस्लाम द्वारा बताए गए मध्य मार्ग ने किसी को भी अत्यधिक स्वतंत्रता की अनुमति नहीं दी है जो महिलाओं के स्त्रीत्व को प्रभावित करती हो, लेकिन यह मार्ग बेहतर तरीके से समाज में योगदान करने के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित करती है. महिलाओं को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जानना ज़रूरी है. इस्लाम में अधिकारों और कर्तव्यों दोनों का उल्लेख किया गया है क्योंकि हमारा निर्माता हमारा ईश्वर सबसे बेहतर ज्ञान वाला है.”

उन्होंने बताया कि, “पैगंबर मोहम्मद (सल्ल०) के समय में, हम देखते हैं कि महिलाएं व्यवसाय, शिक्षा और शिक्षण जैसे कई क्षेत्रों में सक्रिय रूप से भाग ले रही थीं. उन्होंने कहा, “महिलाओं ने युद्ध के मैदान में भी अपनी भूमिका निभाई और उन्हें मस्जिदों में अलग से जगह दी जाती थी.”

उन्होंने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि, “आज महिलाओं को हर जगह जाने की अनुमति है लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें इस्लाम सीखने के लिए अपनी मस्जिदों में जाने की अनुमति नहीं है.” उन्होंने मांग की, कि महिलाओं को इस्लाम के बारे में जानने के लिए मस्जिदों में जाने की अनुमति दी जाए और जहां भी संभव हो, हमारे पारिवारिक मुद्दों के बारे में शिक्षा प्राप्त की जाए. उन्होंने अपील की, “हमें अपने मुद्दों को अदालतों में ले जाने के बजाय अपने उलेमाओं के पास ले जाना चाहिए.”

अतिया सिद्दिका ने समझाते हुए कहा कि, “आबादी में महिलाएं आधी हैं लेकिन प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में वो मर्दों से अधिक हैं क्योंकि परवरिश में पुरुष और महिला दोनों उनसे प्रभावित होते हैं. एक महिला की गोद में बच्चे पूरी तरह से उसके नियंत्रण में होते हैं. वे एक बेटे या बेटी को बेहतरीन तरीके से ढाल सकती हैं.”

उन्होंने बेटी और बेटे के बीच भेदभाव न करते हुए दोनों पर शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से समान रूप से ध्यान देकर परवरिश करने की सलाह दी .

उन्होंने महिलाओं की प्रतिभा को बेहतर तरीके से सामने लाने और उनमें शिक्षा का प्रसार करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.

उन्होंने कहा, “हमें एक महिला के रूप में देखना होगा कि इस समाज को बेहतर बनाने के लिए हम व्यक्तिगत तौर पर क्या कर सकते हैं. यदि हर कोई व्यक्तिगत स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करता है, तो हमारे घर और समाज बेहतर बन जायेंगे.”

उन्होंने कहा कि, महिलाओं का शिक्षित होना अच्छा है और यदि किसी कारण से वे शिक्षित नहीं हैं तो वे अपनी बेटियों, बेटों और बहुओं से सीख सकती हैं.

उन्होंने आसपास में हो रही घटनाओं को जानने जागरूक रहने के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने तीन तलाक के मुद्दे का हवाला दिया, जिसके बारे में उन्होंने कहा, “इसे एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है” लेकिन हमारी राय यह है कि इस खतरे को संबोधित किया जाना चाहिए. उन्होंने विशाल सभा से कहा कि यदि तलाक से संबंधित कोई मुद्दा हो भी तो उसे अच्छे से समझे और उसके इस्लामी हल की सुविधा प्रदान करें.”

उन्होंने यह विचार प्रकट किया कि, “जो महिलाएँ इस्लामी और आधुनिक शिक्षा में पारंगत हैं, वे मोहल्ले में और फिर बड़ी जगहों पर काउंसलिंग सेंटर शुरू कर सकती हैं. उन केंद्रों पर हम पति-पत्नी और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच विवादों को हल कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोई भी अपने अधिकारों से वंचित न रहे.”

उन्होंने युवा लड़कियों के लिए विवाह से पूर्व और बाद की काउंसलिंग की व्यवस्था करने का भी सुझाव दिया, ताकि वे विवाह और तलाक और विरासत आदि के नियम कायदे और अधिकारों को जान सकें.

उन्होंने कहा कि पुरुष, महिलाओं के अधिकारों को हड़पते हैं लेकिन दुर्भाग्य से कई बार महिलाएं भी इसमें दोषी पाई जाती हैं.

उन्होंने इस्लामिक जीवन शैली वाला एक मॉडल समाज नहीं होने पर अपनी निराशा व्यक्त की, जिसे लोग एक आदर्श रूप में देख सकें, जहां महिलाओं को उनके पूर्ण अधिकार मिलते हों. उन्होंने महिलाओं और पुरुषों को ऐसा समाज स्थापित करने के लिए कहा.

जेआईएच पश्चिम बंगाल के सचिव शादाब मासूम ने बताया कि राज्य इकाई ने महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए आवाज़ उठाने के लिए सभी धर्मों की महिलाओं के लिए कोलकाता और मुर्शिदाबाद में दो सामूहिक सभाएं बुलाईं.

इस कार्यक्रम में अन्य वक्ताओं में स्थानीय विधायक, महिला महाविद्यालय के प्राचार्य, मानवाधिकार कार्यकर्ता और राज्य के जमात के पदाधिकारी शामिल थे.

जेआईएच उपाध्यक्ष और अतिया सिद्दीका के अलावा, जेआईएच पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल रफीक, कोलकाता में रेड रोड पर ईद की नमाज़ अदा करने वाले प्रसिद्ध इमाम, मौलाना कारी फज़लुर रहमान, जेआईएच के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहमत अली खान और मुहम्मद नूरुद्दीन ने भी अपनी बातें साझा कीं.

मौलाना ताहिरुल हक, शादाब मासूम, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के अब्दुल अज़ीज़, एपीसीआर के राज्य प्रमुख अब्दुस समद, सद्भावना मंच के राज्य सचिव शेख ताहेरुद्दीन, मीज़ान साप्ताहिक के संपादक मसीहुर रहमान, टीएमसी के पूर्व सांसद स. अहमद हसन इमरान, बंदी मुक्ति समिति (कैदी राहत समिति) के सचिव छोटन दास, एसआईओ और जीआईओ के प्रदेश अध्यक्ष सईद मामून, शरीफा खातून भी इस अवसर पर उपस्थित थे.

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