https://www.xxzza1.com
Tuesday, April 16, 2024
Home देश मौलवी मोहम्मद बाक़र मेमोरियल लेक्चर: वक्ताओं ने मीडिया से उनके पदचिन्हों पर...

मौलवी मोहम्मद बाक़र मेमोरियल लेक्चर: वक्ताओं ने मीडिया से उनके पदचिन्हों पर चलने को कहा

सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में बीते शुक्रवार को 19 वीं सदी के पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी मौलवी मोहम्मद बाक़र की शहादत की 165 वीं वर्षगाँठ पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए विभिन्न वक्ताओं ने युवा पत्रकारों से मौलवी बाक़र के समान ही साहसिक पत्रकारिता करने का संदेश दिया.

मौलवी बाक़र को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा 16 सितम्बर 1857 में उनके अखबार में स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन करने के आरोप में तोप के समान बंदूक से विस्फोट कर बेरहमी से मार डाला गया था.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मौलवी मोहम्मद बाक़र की शहादत पर आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से संबंध रखने वाले वक्ताओं ने अपनी बात रखी. मौलवी बाक़र भारत के पहले पत्रकार थे जो स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रीय भूमिका के लिए शहीद कर दिए गए थे.

मौलवी बाक़र दिल्ली से ‘दिल्ली उर्दू अखबार’ प्रकाशित किया करते थे, वे ब्रिटिश नीतियों के कट्टर आलोचक थे और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में क्षेत्रीय कहानियां प्रकाशित किया करते थे. अपनी पत्रकारिता में वह घटना स्थल का दौरा किया करते थे और तत्कालीन ब्रिटिश शासन के ज़ुल्मो को उजागर करने वाली प्रत्यक्ष घटनाओं की रिपोर्टिंग करते थे.

सन् 1857 में 16 सितम्बर की घटना है जब उन्हें आखिरकार दिल्ली गेट पर एक बड़ी बंदूक के मुहाने पर बांध कर ब्रिटिश सेना द्वारा इस आरोप में उड़ा दिया गया था कि उनके लेख स्थानीय लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ उकसाते हैं.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेरा ने इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए कहा कि, “देश की आज़ादी के लिए अपनी कलम की ताकत का इस्तेमाल करने के कारण मौलवी बाक़र की हत्या कर दी गई. आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया देश में पत्रकारिता की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा है.” उन्होंन आगे कहा कि “हमने अदालतों में मोहम्मद ज़ुबैर और सिद्दीक कप्पन के केस लड़े हैं.”

उन्होंने कहा कि, “कप्पन ने ऐसा क्या अपराध किया है जिसके लिए वह पिछले दो साल से जेल में है? वह एक सामूहिक बलात्कार और हत्या की शिकार मृत दलित लड़की की कहानी को कवर करने के लिए हाथरस जा रहे थे. उनके पास से कोई आतंकी साहित्य भी बरामद नहीं हुआ है. फिर भी, उनपर आतंकवाद के आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें ज़मानत दिए दस दिन से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन फिर भी उन्हें अभी तक रिहा नहीं किया गया है. हमें इस लड़ाई को एकजुट होकर लड़ना होगा.”

वरिष्ठ पत्रकार ए.यू. आसिफ ने कहा कि, “मौलवी बाकर ने अगर अपने अखबार में रिपोर्ट नहीं किया होता तो 1857 के विद्रोह के बारे में बहुत सी बातें लोगों और आने वाली पीढ़ियों तक नहीं पहुंच पातीं. मौलवी बाकर ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपना कर्तव्य निभाया. “

पत्रकार आसिफ ने कहा, “मौजूदा सरकार ने पत्रकारों के लिए समाचार कवरेज को मुश्किल बना दिया है, लेकिन हमें अपने पत्रकारिता कर्तव्यों का पालन करने और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद किसी भी घटनाक्रम को कवर करने के लिए मौलवी बाकर के नक्शेकदम पर चलने की ज़रूरत है.”

जामिया मिल्लिया इस्लामिया से हिंदी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रो. सैयद असगर वजाहत ने इस अवसर पर बोलते हुए मौलवी मोहम्मद बाकर के बलिदान और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान को आम जनमानस के बीच लोकप्रिय बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया, विशेष रूप से घटनाओं के स्पॉट कवरेज को विभिन्न भाषाओं में प्रस्तुत करके ऐसा किया जाए.

मौलवी बाकर को एक प्रतिबद्ध पत्रकार बताते हुए, जिनके लेखन ने लोगों में गतिशीलता और जीवंतता पैदा की, असग़र वजाहत ने वर्तमान पत्रकारों को मौलवी बाकर की पत्रकारिता से पेशेवर पत्रकारिता के मूल्यों को आत्मसात करने का आह्वान किया.

यह बताते हुए कि पुरानी दिल्ली में ‘दिल्ली उर्दू अखबार’ का कार्यालय आज़ादी की लड़ाई में 1857 के संघर्ष का केंद्र बन गया था, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के एक सेवानिवृत्त अधिकारी शबी अहमद ने कहा कि, “मौलवी बाकर के पास इंटरनेट और मोबाइल और टेलीफोन जैसी कोई आधुनिक तकनीक नहीं थी, बल्कि उस वक़्त अंग्रेज़ी मीडिया के पास उपलब्ध टेलीग्राफ जैसी सेवायें भी उनके पास नहीं थी. फिर भी, उन्होंने असम, बिहार और तमिलनाडु में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में समाचार प्रकाशित किए. यह एक अहम उपलब्धि थी. चूंकि मौलवी बाकर बाद में लाल किला आ गए थे, जहां अंतिम मुगल राजा बहादुर शाह ज़फर रहते थे, इसलिए उनके अखबार को ‘किला-ए-मोहल्ला’ या ‘अखबार-ए-ज़फर’ भी कहा जाता था क्योंकि इसे बहादुर शाह ज़फर का समर्थन हासिल था.”

प्रख्यात उर्दू पत्रकार मासूम मुराबादी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि, “कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान, ब्रिटिश अदालत ने कहा कि मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर और उर्दू अखबार भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साज़िश करते हैं” एक ब्रिटिश संस्था के इस प्रकार के कथन से पता चलता है कि उर्दू प्रेस ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. मौलवी बाकर का ‘दिल्ली उर्दू अखबार’ उस समय प्रकाशित होने वाले चंद उर्दू अखबारों में से एक था. यह उस वक़्त का ऐसा प्रमुख अखबार था जिसने ग्राउंड से अंग्रेज़ों के खिलाफ किये जा रहे विद्रोह की कहानियाँ प्रकाशित कीं.”

मासूम मुराबादी ने कहा कि, इलाहाबाद से प्रकाशित एक उर्दू समाचार पत्र के नौ संपादकों को ब्रिटिश सरकार की आलोचना करने के लिए एक के बाद एक करके गिरफ्तार किया गया और सभी को कुल 99 साल की जेल की सज़ा दी गई. इनमें से एक को 30 साल की जेल हुई थी. उन सभी को अंडमान और निकोबार की जेल भेज दिया गया, जिसे उस समय “काला पानी” कहा जाता था.

प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के महासचिव विनय कुमार ने कार्यक्रम के अंत में सभी का आभार व्यक्त किया.

- Advertisement -
- Advertisement -

Stay Connected

16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe

Must Read

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट रद्द करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित करने के इलाहाबाद उच्च...
- Advertisement -

मदरसा बोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागतयोग्य, हाईकोर्ट का फैसला राजनीति से प्रेरित था: यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस

इंडिया टुमारो लखनऊ | सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित करने...

2014 के बाद से भ्रष्टाचार के मामलों में जांच का सामना कर रहे 25 विपक्षी नेता भाजपा में शामिल

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर काफी समय से ये आरोप लगते रहे हैं...

गज़ा में पिछले 24 घंटों में 54 फिलिस्तीनियों की मौत, अब तक 33,091 की मौत : स्वास्थ्य मंत्रालय

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | गज़ा में पिछले 24 घंटों में इज़रायली हमलों के दौरान कम से कम 54...

Related News

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट रद्द करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित करने के इलाहाबाद उच्च...

मदरसा बोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागतयोग्य, हाईकोर्ट का फैसला राजनीति से प्रेरित था: यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस

इंडिया टुमारो लखनऊ | सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित करने...

2014 के बाद से भ्रष्टाचार के मामलों में जांच का सामना कर रहे 25 विपक्षी नेता भाजपा में शामिल

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर काफी समय से ये आरोप लगते रहे हैं...

गज़ा में पिछले 24 घंटों में 54 फिलिस्तीनियों की मौत, अब तक 33,091 की मौत : स्वास्थ्य मंत्रालय

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | गज़ा में पिछले 24 घंटों में इज़रायली हमलों के दौरान कम से कम 54...

IIT मुंबई के 36 प्रतिशत छात्रों को नहीं मिला प्लेसमेंट, राहुल गांधी ने BJP को बताया ज़िम्मेदार

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने एक रिपोर्ट को साझा करते हुए केंद्र सरकार और...
- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here