इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सोमवार को ज्ञानवापी मस्जिद से सम्बंधित एक मामले में वाराणसी की जिला अदालत के उस फैसले को ‘निराशाजनक’ बताया है जिसमें वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा करने की मांग के लिए दायर मुकदमे को चुनौती देने वाली अंजुमन इस्लामिया मसाजिद समिति की याचिका खारिज कर दिया.
वाराणसी में 5 महिलाओं ने 18 अगस्त 2021 को एक याचिका दायर कर पूजा करने की इजाजत देने की मांग की थी. मुस्लिम पक्ष ने इस याचिका पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के 1991 के पूजा स्थल कानून का हवाला देकर कोर्ट का रुख किया था. हालांकि, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा करने को लेकर दाखिल की गई याचिका को वाराणसी जिला जज की अदालत ने सुनवाई योग्य माना है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी ने मीडिया को जारी अपने बयान में कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के संबंध में जिला जज कोर्ट का प्रारंभिक निर्णय निराशाजनक और दुःखद है.
मौलाना रहमानी ने अपने बयान कहा कि, “1991 ई0 में बाबरी मस्जिद विवाद के बीच संसद ने मंजूरी दी थी कि बाबरी मस्जिद को छोड़कर सभी धार्मिक स्थल 1947 ई0 में जिस स्थिति में थे उन्हें यथास्थिति में रखा जाएगा और इसके ख़िलाफ़ कोई विवाद मान्य नहीं होगा.”
उन्होंने कहा कि, “बाबरी मस्जिद मामले के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1991 ई0 में धार्मिक स्थलों से संबंधित क़ानून की पुष्टि की और इसे अनिवार्य घोषित कर दिया; लेकिन इसके बावजूद जो लोग देश में घृणा परोसना चाहते हैं और जिन्हें इस देश की एकता की परवाह नहीं है.”
बयान में आगे कहा गया है कि, “उन्होंने बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा उठाया और अफ़सोस की बात है कि स्थानीय जिला जज कोर्ट ने 1991 ई0 के क़ानून की अनदेखी करते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया और अब यह दुःखदायी दौर भी सामने आ रहा है कि कोर्ट ने शुरू में हिंदू चरमपंथी समूह के दावे को स्वीकार कर लिया और उनके लिए रास्ता आसान बना दिया है.”
उन्होंने कहा कि, “यह देश और क़ौम के लिए एक दुखद है, इससे देश की एकता प्रभावित होगी, सामुदायिक सद्भाव को क्षति पहुंचेगी, उग्रवाद और हिंसा को मज़बूती मिलेगी और शहरों में टकराव उत्पन्न होगा.”
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी ने कहा है कि, “सरकार को 1991 ई0 के क़ानून को पूरी ताक़त से लागू करना चाहिए, सभी पक्षों को इस क़ानून का पाबन्द बनाया जाए और ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने दें कि अल्पसंख्यक न्याय व्यवस्था से निराश हो जाएं और महसूस करें कि उनके लिए न्याय के सभी दरवाज़े बंद हैं.”
PDP प्रमुख और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने वाराणसी अदालत के फैसले पर चिंता जताई हिया. उन्होंने कहा है, “कोर्ट के ज्ञानवापी के निर्णय पर मुझे अफसोस है क्योंकि कोर्ट अपने फैसलों को नहीं मान रही जिसमें उन्होंने 1947 के बाद सारे धार्मिक जगहों की यथास्थिति को बनाए रखने के लिए कहा था.”
उन्होंने कहा कि, “कोर्ट भाजपा के नरेटिव को आगे बढ़ा रही है.”