इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | भारत के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक- सामाजिक संगठन जमाअत इस्लामी हिंद (JIH) ने शनिवार को प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में गुजरात सरकार द्वारा रिहा किए गए दोषियों को फिर से जेल भेजा जाए.
जमाअत इस्लामी की महिला विंग ने इस सम्बंध में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र भी भेजा है. पत्र में प्रधानमंत्री, गुजरात के राज्यपाल और कानूनी विशेषज्ञों की एक तत्काल बैठक बुलाकर बलात्कारियों की रिहाई के मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की गई है. पत्र में यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि बलात्कार जैसे संगीन अपराध के मामले में पीड़ितों को इंसाफ मिल सके और हमारी शासन प्रणाली को पंगु और अप्रभावी होने से कैसे बचाया जा सकता है.
इसके साथ ही जमाअत इस्लामी हिन्द ने सरकार की गलत नीतियों की वजह पनप रही दिहाड़ी मजदूरों, किसानों, खेत मजदूरों और कम आय वाले लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की है.
शनिवार को यहां मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए, जमाअत के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद सलीम इंजीनियर और जेआईएच (महिला शाखा) की राष्ट्रीय सचिव अतिया सिद्दीका ने कहा कि बिलकिस बानो मामले में सामूहिक बलात्कार के दोषियों को रिहा करने का उद्देश्य “एक निर्वाचन क्षेत्र के वर्ग विशेष को खुश करके राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है, और यह घोर आपत्तिजनक है.
उन्होंने कहा कि गुजरात में विधानसभा चुनाव अगले कुछ महीनों में होने हैं और बहुसंख्यक समुदाय के एक वर्ग को खुश करने से विधानसभा चुनावों में भाजपा को भारी राजनीतिक लाभ मिल सकता है.
राज्य सरकार के फैसले की निंदा करते हुए, जमाअत इस्लामी हिंद के इन दोनों नेताओं ने उम्मीद जताई है कि “सरकार की आधिकारिक नीति की आड़ में किए गए इस गंभीर अन्याय को वापस बदलने के लिए शीर्ष अदालत ज़रूर मामले में हस्तक्षेप करेगी.”
इस मामले में गुजरात सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाएं पहले ही शीर्ष अदालत में दायर की जा चुकी हैं. उन्होंने कहा कि “छोटे मोटे अपराधों के लिए जेलों में बंद लोगों पर सज़ा में छूट नीति लागू की जानी चाहिए, न कि बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के लिए.”
उन्होंने कहा कि अगर इसी प्रकार राज्य सरकारों को बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने के बावजूद छूट नीति के माध्यम से अपनी पसंद के अपराधियों को मुक्त करने की अनुमति दी जाती रही, तो इससे हमारी न्याय व्यवस्था का मज़ाक बनकर रह जायेगा और नागरिकों के कानून की सर्वोच्चता में विश्वास को भी आघात पहुंचेगा.
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की छूट से अपराधियों और उनके मास्टरमाइंड को प्रोत्साहन भी मिलेगा क्योंकि उन्हें सबसे जघन्य अपराध करने के बावजूद जल्द ही सिस्टम द्वारा रिहाई मिलने का भरोसा होगा.
जमाअत के दोनों पदाधिकारियों ने कहा कि जिस तरह से इन दोषियों का स्वागत और सम्मान किया जा रहा है, वह काफी निंदनीय है. उन्होंने कहा कि जमाअत इस्लामी हिन्द ने भारत की राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने और गुजरात सरकार को पीएम और गृह मंत्री के माध्यम से उन दोषियों को रिहा करने के फैसले को विचार करने का निर्देश देने की अपील की है ताकि न्याय और शासन व्यवस्था को पंगु व अप्रभावी होने से बचाया जा सके.
समय के साथ सभी अपीलें निष्प्रभावी हो गयी हैं यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बाबरी मस्जिद के विध्वंस और 2002 के गोधरा मुस्लिम विरोधी दंगा मामलों से सम्बंधित सभी केसों को बंद कर दिए जाने पर भी जमात के इस्लामी हिंद ने चिंता व्यक्त की.
सुप्रीम कोर्ट की संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित अवमानना याचिका पर विचार नहीं किया गया.
प्रो सलीम ने कहा कि इन मामलों की सुनवाई न करने के लिए कौन ज़िम्मेदार है और अब सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि बहुत समय बीत चुका है और इसलिए उन्हें सुनने की कोई आवश्यकता नहीं है. अदालत में मामलों की सुनवाई करना किसका काम है? न्याय व्यवस्था लोगों को न्याय दिलाने में विफल हो रही है. न्यायपालिका से लोगों का विश्वास उठ रहा है.
कृषि संकट और आत्महत्याएं
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि स्वरोजगार करने वाले लोगों, छात्रों, किसानों और खेतिहर मज़दूरों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए प्रो. सलीम ने मांग की है कि किसानों को ब्याजमुक्त लोन दिए जाने चाहिए चाहिए और योग्य और हाशिए के किसानों के लिए ऋण माफी की योजनाएं होनी चाहिए.
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से किसानों की आय दोगुनी करने के वादे को पूरा करने और भारत के कृषि संकट को हल करने की योजना पर एक ‘श्वेत पत्र’ लाने का भी आग्रह किया.