– परवेज़ बारी
भोपाल | हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अरसे से लंबित सन 1984 की भोपाल गैस आपदा से सम्बंधित क्यूरेटिव पिटीशन की सुनवाई की घोषणा की गई है. सुप्रीम कोर्ट की इस पहल का आपदा पीड़ितों के पांच संगठनों द्वारा स्वागत किया गया है.
हालांकि, यहां मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए सम्बंधित संगठनों के नेताओं ने यह भी आशंका व्यक्त की है कि भोपाल की गैस त्रासदी में पीड़ितों को मुआवज़े से वंचित किया जा सकता है क्योंकि अमेरिकी कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित यूनियन कार्बाइड, जहां से 2-3 दिसंबर, 1984 की अर्द्ध रात्रि को ज़हरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक होने के कारण हुई मौतों और घायलों की संख्या सरकार द्वारा कम आंकी गयी है.
BGPMSKS (भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ) की अध्यक्ष रशीदा बी ने बताया कि, “हम भी, इस मामले में राज्य और केंद्र सरकारों के साथ याचिकाकर्ता हैं.”
उन्होंने कहा कि, “हम सरकार से अतिरिक्त मुआवज़े के रूप में 646 अरब रुपये मांग रहे हैं जबकि सरकारें केवल 96 अरब रुपये कह रही हैं. समय आ गया है कि भोपाल के पीड़ित अपने कानूनी अधिकारों पर किये गए इस हमले के खिलाफ सक्रिय हों.”
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने बताया कि, “सरकार वास्तविक मौतों की तुलना में बहुत कम आंकड़ा पेश कर रही है और आपदा में घायल या प्रभावित लोगों में से 93 प्रतिशत लोगों को अस्थाई रूप से घायल बताकर अपना दावा प्रस्तुत कर रही है. वैज्ञानिक रिपोर्ट और आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि मौतों का सही आंकड़ा 23 हज़ार के लगभग है और एक बड़ी आबादी मिथाइल-आइसोसाइनेट गैस के संपर्क में आने के कारण स्थायी रूप से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हुई हैं.”
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने बताया कि, “विगत कुछ वर्षों में कम से कम चार मौकों पर राज्य और केंद्र सरकारों के मंत्रियों और अधिकारियों ने इस तथ्य पर सहमति व्यक्त की है कि क्यूरेटिव पिटीशन में प्रस्तुत भोपाल आपदा से हुए नुकसान के आंकड़े गलत हैं और उन्हें ठीक करने के लिए कदम उठाने का वादा भी उन्होंने किया था. अब याचिका पर जल्द ही सुनवाई होनी है और उन्होंने अभी तक कोई सुधार नहीं किया है.”
गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव के अनुसार, “यदि राज्य और केंद्र सरकारें सुनवाई से पहले क्यूरेटिव पिटीशन में अपने वादे के अनुसार सुधार नहीं करती हैं, तो वे जानबूझकर शीर्ष अदालत को गुमराह करते हुए न्याय को असम्भव बनाने का काम करेंगे.”
चिल्ड्रन अगेंस्ट डॉव कार्बाइड की नौशीन खान ने गैस त्रासदी पीड़ितों की अगली पीढ़ी से अपील की है कि वे अपने माता-पिता के ज़हरीले गैस के संपर्क में आने के कारण अगली पीढ़ी को पहुंचे स्वास्थ्य नुकसान के लिए पर्याप्त मुआवज़े के अपने अधिकारों पर जोर दें.
उन्होंने कहा, “क्योंकि कई साइंटिफिक पब्लिकेशन्स ने अपने शोध में स्पष्ट किया है कि ज़हरीली गैस के संपर्क में आने वाले माता-पिता के बच्चों में ग्रोथ रिटार्डेशन, बर्थ डिफेक्ट्स, और इम्यून डिसऑर्डर आदि उत्पन्न हुए हैं, राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा दायर क्यूरेटिव पिटीशन इस मामले पर चुप है. केवल सामूहिक विरोध ही इस चुप्पी को तोड़ सकता है.”