सैयद ख़लीक अहमद
नई दिल्ली | हज़ारो की तादाद में भारत में शरण लेने वाले म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है. 2017 में रोहिंग्या मुसलमानों पर आतंकवाद फैलाने का आरोप मढ़कर म्यांमार सेना द्वारा उनका नरसंहार शुरू कर दिया गया था जिसके बाद एक लाख से अधिक रोहिंग्याओं ने म्यांमार छोड़ दिया और पड़ोसी देशों में शरण ली.
बौद्ध-बहुल राष्ट्र म्यांमार में सरकार रोहिंग्याओं को म्यांमार के मूल निवासी के रूप में स्वीकार नहीं करती है, बल्कि म्यांमार में बसने वाले बंगाली जाति के लोगों के रूप में मानती है. रोहिंग्या, जिनमें से अधिकांश रखाइन राज्य में केंद्रित हैं, को म्यांमार में नरसंहार करने से पहले ही मताधिकार से वंचित कर दिया गया और उनकी नागरिकता भी रद्द कर दी गई.
म्यांमार सरकार द्वारा की गई एक सैन्य कार्रवाई के बाद, लगभग नौ लाख रोहिंग्या पड़ोसी देश बांग्लादेश चले गए जहां वे अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रदान किए गए तंबू में रह रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, उनमें से लगभग 15,000 पश्चिम बंगाल से लेकर जम्मू और कश्मीर तक विभिन्न राज्यों में बिखरे हुए हैं. उनमें से कुछ सौ ने दिल्ली में शरण ली है.
रोहिंग्या के बारे में हाल ही में विवाद केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा 17 अगस्त को ट्वीट किए जाने के बाद पैदा हुआ था. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि झोपड़ियों में और खराब परिस्थितियों में रहने वाले रोहिंग्या प्रवासियों को पश्चिमी दिल्ली में रोहतक ज़िले की सीमा से लगे नांगलोई के पास बक्करवाला में ईडब्ल्यूएस फ्लैटों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें 24 घंटे सुरक्षा प्रदान की जाएगी और शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) पहचान पत्र भी प्रदान किए जाएंगे.
लेकिन उनके आधिकारिक ट्विटर हैंडल से की गई मात्र एक ट्वीट के माध्यम से की गई उनकी घोषणाओं ने दिल्ली में भाजपा के साथ-साथ आम आदमी पार्टी (आप) में भी तूफान खड़ा कर दिया. बीजेपी के नेता पुरी की घोषणाओं का तुरंत विरोध करते हुए खुलकर सामने आए. चूंकि रोहिंग्या मुस्लिम होते हैं, इसलिए उन्हें नए स्थान पर चौबीसों घंटे सुरक्षा के साथ फ्लैट आवंटित करना भाजपा की मुस्लिम विरोधी राजनीति के लिए निश्चित रूप से असहनीय था, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने प्रस्ताव का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि रोहिंग्या भारत में अवैध रूप से घुसे हैं और उन्हें वापस उनके देश में निर्वासित किया जाना चाहिए. भाजपा और उसके नेताओं के साथ-साथ मोदी सरकार का भी रोहिंग्याओं के संबंध में एक ही रुख है और वे समय-समय पर म्यांमार में उनके निर्वासन पर ज़ोर देते रहे हैं.
चूंकि यह पुरी की ये घोषणा उनकी खुदकी पार्टी के राजनीतिक मापदंडों में फिट नहीं थी और पूरे देश में इसके कारण बीजेपी के समर्थकों में भारी गुस्सा पैदा होने की संभावना थी, अतः पुरी के ट्वीट के कुछ घंटों के भीतर ही गृह मंत्रालय (एमएचए) ने एक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि “एमएचए ने नई दिल्ली के बक्करवाला में रोहिंग्या अवैध प्रवासियों को ईडब्ल्यूएस फ्लैट उपलब्ध कराने का कोई निर्देश नहीं दिया है.
गृह मंत्रालय ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि “दिल्ली सरकार ने रोहिंग्याओं को एक नए स्थान पर स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा था और इस तरह रोहिंग्याओं को फ्लैट आवंटित करने के प्रस्ताव का दोष दिल्ली सरकार के सिर पर डाल दिया गया. इस पर सिसोदिया ने यह कहते हुए पलटवार किया कि रोहिंग्याओं को ईडब्ल्यूएस फ्लैटों के आवंटन को मंजूरी देने वाली 29 जुलाई की बैठक में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को लूप में रखे बिना दिल्ली के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में केंद्र और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने भाग लिया था. सिसोदिया के अनुसार, दिल्ली के मुख्य सचिव को बैठक की रिपोर्ट दिल्ली के उपराज्यपाल को सरकार को भेजनी थी जो सीधे एमएचए के अधीन है.
एमएचए के बयान में आगे कहा गया है कि, “एमएचए ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि अवैध प्रवासी रोहिंग्या विदेशी कंचन कुंज, मदनपुर खादर में वर्तमान स्थान पर ही रहेंगे क्योंकि एमएचए पहले ही संबंधित देश के साथ अवैध विदेशियों के निर्वासन का मामला विदेश मंत्रालय के माध्यम से उठा चुका है.”
गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को यह भी सूचित किया कि, अवैध विदेशियों को कानून के अनुसार उनके निर्वासन तक डिटेंशन सेंटर में रखा जाना चाहिए. यह स्पष्ट करते हुए कि “चूंकि दिल्ली सरकार ने रोहिंग्या के वर्तमान स्थान को डिटेंशन सेंटर घोषित नहीं किया है, मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स ने दिल्ली सरकार को रोहिंग्याओं के स्थान को तुरंत डिटेंशन सेंटर घोषित करने का निर्देश दिया.”
एमएचए के बयान के बाद यह कहते हुए पुरी ने तुरंत अपनी घोषणा वापस ले ली कि “अवैध प्रवासी रोहिंग्या के मुद्दे के संबंध में गृह मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति सही स्थिति बताती है.”
गृह मंत्रालय के बयान और पुरी द्वारा अपनी घोषणाओं को वापस लेने से संकेत मिलता है कि मोदी सरकार रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा नहीं देना चाहती है. इसलिए उन्हें किसी भी तरह के कोई भी फ्लैट आवंटित नहीं किये जाएंगे.
भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है
मोदी सरकार ने बार-बार कहा है कि भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और इसलिए, रोहिंग्याओं को आश्रय देना और उन्हें शरणार्थी का दर्जा भारत के लिए अनिवार्य नहीं है. वहीं बीजेपी नेता रोहिंग्याओं पर देश की सुरक्षा के लिए खतरा होने का आरोप लगाते रहे हैं. जब सत्ता में पार्टी और सरकार की नीतियां बहुत स्पष्ट हैं, तो दिल्ली सरकार के अधिकारियों और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने रोहिंग्याओं को फ्लैट आवंटित करने के प्रस्ताव को मंजूरी देने के बारें में क्यों सोचा? दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने मामले की जांच की मांग की है.
रोहिंग्याओं का निर्वासन
सरकार ने रोहिंग्याओं को निर्वासित करने के लिए अतीत में कई प्रयास किए हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के निर्वासन के आदेश पर रोक लगा दी थी. रोहिंग्या भी उत्पीड़न के डर से अपने देश लौटने को तैयार नहीं हैं क्योंकि म्यांमार सरकार उन्हें अपने नागरिक के रूप में मान्यता नहीं देती है.
चूंकि भारत सरकार ने शरणार्थियों पर 1951 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए भारत में विदेशी शरणार्थियों के मुद्दा विदेशी अधिनियम-1946, नागरिकता अधिनियम-1955, विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम-1939, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम द्वारा देखा जाता है.
हालांकि, यह अवैध विदेशी प्रवासियों के सम्बंध में अलग-अलग देशों से आने वाले प्रवासियों से अलग व्यवहार करता है. यह तिब्बतियों को उनके मूल स्थान पर लौटने के लिए मजबूर नहीं करता है और भारत में तिब्बती प्रवासियों के लिए पट्टे के आधार पर ज़मीन की बिक्री और घरों और दुकानों को किराए पर लेने के लिए एक नीति भी तैयार की गयी है, रोहिंग्याओं के लिए ऐसी कोई नीति नहीं है.
भारत सरकार श्रीलंकाई तमिल अवैध प्रवासियों और अफगानों (जो मुस्लिम नहीं हैं) के प्रति भी बहुत उदार है, जो तालिबान द्वारा उत्पीड़न के डर से अपना देश छोड़कर आ गए हैं. लेकिन भारत सरकार रोहिंग्याओं के साथ बहुत सख्त है. भारत में एक लाख से अधिक तिब्बती अवैध प्रवासी हैं, और लगभग डेढ़ लाख श्रीलंकाई तमिल सयुंक्त राष्ट्र द्वारा दिये गए शरणार्थी के दर्जे के बिना ही यहां रह रहे हैं. हालांकि, सरकार उनके साथ बहुत सख्त नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत में लगभग 15,000 रोहिंग्या UNHCR के साथ पंजीकृत हैं और उन्हें पहचान पत्र जारी किए गए हैं. हालांकि, गृह मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि यूएनएचसीआर कार्ड जारी कर सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत सरकार उन्हें शरणार्थी के रूप में स्वीकार करेगी और उन्हें शरणार्थी अधिकार प्रदान करेगी.
इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ें: Rohingya Muslims: Housing Ministry Offers Flats, Home Ministry Scraps