https://www.xxzza1.com
Thursday, March 28, 2024
Home देश भाजपा संसदीय बोर्ड में बदलाव के बहाने क्या योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक...

भाजपा संसदीय बोर्ड में बदलाव के बहाने क्या योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक क़द छोटा किया गया?


अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | भाजपा संसदीय बोर्ड में बदलाव के बहाने पीएम मोदी ने योगी आदित्यनाथ के कद को छोटा कर दिया है। इससे योगी आदित्यनाथ भावी प्रधानमंत्री पद की रेस से बाहर हो गए हैं। अब आरएसएस और मोदी में टकराव होना तय हो गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनता के बीच घटती लोकप्रियता और जनता से जुड़े हुए मुद्दों पर केंद्र सरकार की असफलता को लेकर आरएसएस काफी चिंतित है। इसी को लेकर आरएसएस नरेंद्र मोदी का विकल्प तलाशने में जुटा हुआ था। वह यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ में भावी प्रधानमंत्री की छवि देख रहा था। यूपी विधानसभा चुनाव में दोबारा राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद आरएसएस ने योगी आदित्यनाथ को नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने का मन बना लिया था।

संघ यह मानकर चल रहा था कि योगी आदित्यनाथ उसके हिंदुत्ववादी एजेंडे पर खरा उतर सकते हैं और वह आरएसएस के एजेंडे को पूरा कर सकते हैं। योगी आदित्यनाथ भविष्य में आरएसएस के सपने “हिन्दू राष्ट्र” को पूरा कर सकते हैं। इसी सबको ध्यान में रखकर आरएसएस ने फायरब्रांड राजनेता योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में उनको प्रधानमंत्री बनाने का मन बना लिया था। आरएसएस ने भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को इस संबंध में इशारा भी कर दिया था।

भाजपा नेतृत्व को योगी आदित्यनाथ के लिए राष्ट्रीय राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए जमीन तैयार करनी थी यानी योगी आदित्यनाथ को भाजपा के संसदीय बोर्ड में शामिल किया जाना था। लेकिन हुआ इसके विपरीत। यकायक 17 अगस्त को भाजपा के संसदीय बोर्ड में बदलाव कर दिया गया और नया संसदीय बोर्ड बना दिया गया। इसमें यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को शामिल नहीं किया गया। जबकि योगी आदित्यनाथ को हर हाल में पार्लियामेंट बोर्ड का सदस्य बनाया जाना था।

भाजपा के संसदीय बोर्ड में बदलाव कर योगी आदित्यनाथ को शामिल नहीं किया गया बल्कि एक तरह से नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ के कद को छोटा कर दिया। भाजपा का संसदीय बोर्ड सबसे ताकतवर इकाई है। इसके जरिए ही भाजपा में महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं। अब जब योगी आदित्यनाथ पार्लियामेंट बोर्ड के सदस्य ही नहीं बनाए गए हैं तो वह भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति कैसे कर सकते हैं।

पार्लियामेंट बोर्ड के सदस्य बनकर वह राष्ट्रीय राजनीति में आगे बढ़ सकते थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर उनको संसदीय बोर्ड का सदस्य नहीं बनाया गया। 11 सदस्यीय पार्लियामेंट बोर्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस यदुरप्पा, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया, इकबाल सिंह लालपुरा और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को बोर्ड का सदस्य बनाया गया है।

पार्लियामेंट बोर्ड से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी हटा दिया गया है। इस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ के भावी प्रधानमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया है और योगी आदित्यनाथ भावी प्रधानमंत्री बनने की रेस से बाहर हो गए हैं।

दरअसल नरेंद्र मोदी खुद 2024 में प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। इसके बाद वह अपने उत्तराधिकारी के रूप में गृह मंत्री अमित शाह को प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहते हैं। जबकि यूपी के सीएम और फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ भावी प्रधानमंत्री के रूप में आरएसएस की पहली पसंद हैं। योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी में आपस में नहीं बनती है। योगी आदित्यनाथ की यूपी की पिछली सरकार के समय से ही इनमें नहीं बन रही है। इनके बीच में छत्तीस के रिश्ते हैं। यह सत्ता के खातिर आपस में मजबूरी में एक -दूसरे का साथ निभा रहे हैं।

इस बार दूसरी बार यूपी का सीएम बनने के बाद योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक ताकत में काफी इजाफा हुआ है। नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी यूपी की सरकार को और भाजपा की राजनीति को अपने हिसाब से चलाना चाहती है लेकिन योगी आदित्यनाथ उनके रास्ते में रोड़ा बन कर खड़े हुए हैं। इस दफा यूपी की भाजपा सरकार में योगी आदित्यनाथ का एक भी अपना समर्थक मंत्री नहीं है। सारे मंत्री मोदी-शाह के समर्थक हैं।

हालांकि, इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ नरेंद्र मोदी और अमित शाह को चुनौती देते हुए नज़र आते हैं। यूपी में भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में 75 प्लस सीटें जीतने की बात करती है लेकिन अब बदली हुई परिस्थितियों में भाजपा का यह सपना पूरा होना मुश्किल है। योगी आदित्यनाथ भाजपा संसदीय बोर्ड का सदस्य न बनाए जाने से बहुत नाराज हैं, क्योंकि उन्हें राजनीतिक सफर पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है। ऐसे हालात में यूपी भाजपा में आने वाले समय में बड़ी रार होने की संभावना बलवती हो गई है। योगी आदित्यनाथ यह क्यों चाहेंगे कि भाजपा अधिकतम लोकसभा सीटें जीते और नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बने।

योगी आदित्यनाथ को भाजपा संसदीय बोर्ड का सदस्य न बनाए जाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आरएसएस बेहद खफा है। योगी आदित्यनाथ को पार्लियामेंट बोर्ड का सदस्य न बनाकर नरेंद्र मोदी ने संघ को एक तरह से ठेंगा दिखाया है। आरएसएस ने इस मामले को गम्भीरता के साथ लिया है। संघ नरेंद्र मोदी के इस मनमानी को अपने लिए चुनौती मान रहा है। अब आने वाले वक्त में आरएसएस और नरेंद्र मोदी के बीच टकराव का होना तय माना जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को भी भाजपा पार्लियामेंट बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से हटा दिया गया है। नरेंद्र मोदी ने नितिन गडकरी को इसलिए हटवाया है, क्योंकि गडकरी नरेंद्र मोदी के गलत फैसलों का खुलकर विरोध करते हैं। नरेंद्र मोदी को यह लगता है कि नितिन गडकरी भी भावी प्रधानमंत्री की रेस में शामिल हैं और उनसे मोदी को खतरा महसूस होता है।

इसकी वजह यह है कि नितिन गडकरी मोदी सरकार में एकमात्र ऐसे मंत्री हैं, जिनका काम सबसे अच्छा है। इसके साथ ही नितिन गडकरी नागपुर से लोकसभा सदस्य हैं और नागपुर में आरएसएस का मुख्यालय है तथा गडकरी की आरएसएस से बड़ी नजदीकियां हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गडकरी को अपनी कुर्सी के लिए खतरा मानते हुए हटवाया है। जबकि आरएसएस को मोदी की ओर से यह बताने का काम किया जा रहा है कि नितिन गडकरी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के करीब हैं।

उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व नितिन गडकरी ने कहा था कि देश में सत्ता के साथ मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है और मजबूत विपक्ष के लिए कांग्रेस को मजबूत होना चाहिए। यही नहीं, गडकरी ने यहां तक कहा था कि कांग्रेस के नेताओं को पार्टी नहीं छोंड़ना चाहिए। राजनीति में हैं, तो सत्ता आती-जाती रहती है। नितिन गडकरी की इस बात को तोड़ -मरोड़कर आर एस एस को मोदी की ओर से यह समझाने का काम किया जा रहा है कि नितिन गडकरी भाजपा विरोधी हैं।

नितिन गडकरी को राजनीतिक रूप से खत्म करने के लिए मोदी -शाह की जोड़ी ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को गडकरी की जगह संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनवाया है। देवेंद्र फडणवीस भी नितिन गडकरी की तरह नागपुर के रहने वाले हैं और दोनों ही ब्राम्हण हैं। इसी प्रकार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी भाजपा संसदीय बोर्ड से हटाया गया है।

शिवराज सिंह चौहान भी मोदी विरोधी हैं। इनको भी मोदी राजनीति में हाशिये पर डालना चाहते है। नितिन गडकरी की तरह शिवराज सिंह चौहान भी आरएसएस के काफी करीब हैं। इस तरह अब नरेंद्र मोदी आरएसएस के करीबी नेताओं को राजनीतिक रूप से खत्म करने का काम कर रहे हैं, जो आरएसएस के लिए खुली चुनौती है। अब वह समय दूर नहीं है, जब आरएसएस अपने अस्तित्व को बचाने के लिए नरेंद्र मोदी के पर कतर सकता है।

- Advertisement -
- Advertisement -

Stay Connected

16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe

Must Read

पूर्व विधायक मुख़्तार अंसारी का निधन, सुनवाई के दौरान धीमा ज़हर देने का लगाया था आरोप

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो लखनऊ | उत्तर प्रदेश के बांदा जेल में बंद राजनेता और पूर्व विधायक मुख़्तार...
- Advertisement -

भारत में बढ़ते टीबी के मामले चिंताजनक, पिछले वर्ष 25 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए

-स्टाफ रिपोर्टर नई दिल्ली | हाल में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार टीबी के मामलों में काफ़ी तेज़ी...

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी रिपोर्ट का दावा, ‘भारत में लगभग 83 प्रतिशत युवा बेरोज़गार’

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) द्वारा जारी एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024...

अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भारत में नागरिकता के धार्मिक आधार पर सवाल उठाया

-स्टाफ रिपोर्टर नई दिल्ली | भारत में मोदी सरकार द्वारा विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू किए जाने पर...

Related News

पूर्व विधायक मुख़्तार अंसारी का निधन, सुनवाई के दौरान धीमा ज़हर देने का लगाया था आरोप

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो लखनऊ | उत्तर प्रदेश के बांदा जेल में बंद राजनेता और पूर्व विधायक मुख़्तार...

भारत में बढ़ते टीबी के मामले चिंताजनक, पिछले वर्ष 25 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए

-स्टाफ रिपोर्टर नई दिल्ली | हाल में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार टीबी के मामलों में काफ़ी तेज़ी...

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी रिपोर्ट का दावा, ‘भारत में लगभग 83 प्रतिशत युवा बेरोज़गार’

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) द्वारा जारी एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024...

अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भारत में नागरिकता के धार्मिक आधार पर सवाल उठाया

-स्टाफ रिपोर्टर नई दिल्ली | भारत में मोदी सरकार द्वारा विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू किए जाने पर...

दुनिया को ‘इस्लामोफोबिया’ के ख़िलाफ एकजुट होना चाहिए: एंटोनियो गुटेरेस, UN महासचिव

इंडिया टुमारो नई दिल्ली | संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दुनिया को याद दिलाया है कि मुसलमानों...
- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here