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Wednesday, April 24, 2024
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जमाअत इस्लामी हिन्द के सेमिनार में वक्ताओं ने कहा- ‘भारत भावना को बचाने की ज़रूरत’

–मसीहुज़्ज़मा अंसारी

नई दिल्ली | भारत के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक-सामाजिक संगठन, जमाअत इस्लामी हिन्द ने रविवार को दिल्ली के इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर में ‘प्रिज़र्विंग आइडिया ऑफ़ इंडिया’ के विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जिसमें देश के गणमान्य बुद्धजीवी, पूर्व राजनायिक, विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, धर्मगुरु और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अपने विचार साझा किए.

वक्ताओं ने देश में संवैधानिक संकट और लोकतांत्रिक भावना पर हो रहे निरंतर हमले पर चिंता जताते हुए भारत के मूल विचार को संरक्षित करने की बात कही. सभी वक्ताओं ने एकमत होकर ज़ोर देते हुए कहा कि ‘भारत भावना’ को बचाना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है और सभी संविधान प्रेमियों को इसके लिए अपने-अपने स्तर पर काम करना चाहिए.

इस नेशनल सेमिनार में वक्ता के रूप में भारत सरकार के पूर्व विदेश सचिव और FDCA के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो० मुचकुंद दुबे, आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. राम पुनियानी, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो० अपूर्वानंद, भारतीय सर्वधर्म संवाद और धार्मिक जनमोर्चा के अध्यक्ष गोस्वामी सुशील जी महाराज, नीति आयोग की पूर्व सदस्य सैयदा सैयेदैन हमीद, और जमाअत इस्लामी हिन्द के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी मौजूद रहे.

दिल्ली के इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित नेशनल सेमिनार में आए सभी अतिथियों को जमाअत इस्लामी हिन्द ने उनके सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित भी किया.

जमाअत इस्लामी हिन्द के जनसम्पर्क विभाग के सह सचिव लईक अहमद ख़ान ने इस राष्ट्रीय सेमिनार का संचालन किया.

जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद सलीम ने सेमिनार के स्वागत भाषण में वक्ताओं का परिचय कराते हुए सेमिनार के उद्देश्य पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि देश में संवैधानिक संस्थानों का दुरूपयोग, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश, लोकतान्त्रिक संरचना पर हमला कर देश की पहचान और इसकी मूल भावना को नुकसान पहुँचाया जा रहा है.

प्रो. मुचकुंद दुबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि, “भारत में देशव्यापी नफरत पहली बार देखने को मिला है जिसका असर समाज में साफ़ दिख रहा है. पूर्व में ऐसा क्षेत्र विशेष में होता था लेकिन संगठित और राष्ट्रीय स्तर पर नफरत फ़ैलाने का खेल पहली बार दिख रहा है.”

उन्होंने कहा, “उत्तर भारत में अगर मुस्लिम शासकों द्वारा बनवाई गई इमारतों को हटा लिया जाए तो विदेशी पर्यटकों को दिखाने के लिए कुछ नहीं बचेगा. सभी का इतिहास में अपना योगदान होता है उसे मिटाया नहीं जा सकता.”

प्रो० दुबे ने संविधान में निहित नागरिकों के अधिकारों पर संक्षेप में चर्चा करते हुए कहा, “भारतीय संविधान में सदियों की परंपरा और मूल्यों का निचोड़ है, संविधान में सभी के अधिकारों को संरक्षित किया गया है इसलिए किसी को भी मूल अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. किसी को भी अपने धर्म के अनुसार आचरण करने से रोका नहीं जा सकता है.”

उन्होंने कहा कि, “भारतीय संविधान में सभी धर्मों और देश की परम्पराओं का सार है, संविधान में भाईचारा बढ़ाने के लिए प्रयास हैं, समान अवसर की समानता का अधिकार है और सभी विचारों की अभिव्यक्ति का हक़ हासिल है. देश में गरीबी हटाने और नागरिकों की न्यूनतम आवश्यकता को पूरा करने की ज़रूरत है.”

प्रो० दुबे ने वर्तमान में धार्मिक आज़ादी पर अंकुश लगाए जाने को लेकर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि, ‘भारत की भावना’ का बचाव ज़रूरी है. सरकार से अब कोई उम्मीद नहीं है, विपक्ष से भी कोई उम्मीद नहीं है और विपक्षी पार्टियां ख़ुद भारत की भावना के विरूद्ध काम कर रही हैं. देश का विपक्ष भी सत्ताधारी पार्टी की तरह बर्ताव कर रहा है. सत्ताधारी पार्टी के लोगों से भारत में किसी भी बदलाव की उम्मीद बेकार है.”

प्रो० मुचकुंद दुबे ने मीडिया के बर्ताव पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा कि, मीडिया से भी किसी बदलाव की उम्मीद नहीं है क्योंकि मीडिया में समाज के प्रति जवाबदेही की भावना ख़त्म हो चुकी है. जो बदलाव के लिए काम कर रहे हैं वे स्वयं को बड़ी दुविधा में पाते हैं, पहले हम प्रर्दशन करते थे, कोर्ट जाते थे, घेराव करते थे लेकिन अब इसकी गुंजाइश नहीं है.”

उन्होंने कहा कि सरकार की इस नीति के कारण लोगों ने स्वयं पर अंकुश लगा लिया है और देश में एक गंभीर ख़ामोशी है और देश में अस्थिरता की नीव डाली जा रही है जिसे सही करने में 25 से 30 वर्षों तक का समय लगेगा

नीति आयोग की पूर्व सदस्य सैयदा सैयेदैन हमीद ने सेमिनार में अपनी बात साझा करते हुए कहा कि, देश की संस्कृति को इसके मूल स्वरुप को बदलने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे हम सभी को मिलकर संविधान की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि, “देश के बनाने वालों ने जो पैगाम दिया था उसको बचाए रखना देश की सबसे बड़ी ज़रूरत क्योंकि देश की मिली जुली संस्कृति को एक बड़ा ख़तरा है. हमें मिलकर एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना है और एकता और भाईचारे को क़यम रखना है.”

आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. राम पुनियानी ने अपने वक्तव्य में सामाजिक समरसता पर प्रकाश डाला और इतिहास के कालखंड में हुई घटनाओं को उधेड़ कर उसकी बुनियाद पर नफरत को फ़ैलाने की साज़िश से बचने और देश को बचाने का आह्वान किया.

प्रो. राम पुनियानी ने कहा कि एक वर्ग विशेष द्वारा नफरत को बढ़ावा देने के लिए जब कोई एतिहासिक घटना को सामने लाया जाये और नफरत का आधार बनाया जाये तो उसे तर्क, विज्ञान और इतिहास की बुनियाद पर परखिये तो अधिकांश मामले बेबुनियाद साबित होंगे. किसी घटना में सच्चाई भी हुई तो उसका धर्म से सम्बन्ध न होकर राजनीति और राज्य विस्तार से होगा.

उन्होंने कहा कि इतिहास का सही ज्ञान हमें बहुत से फर्जी तथ्यों को जिसे नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है उसे गलत साबित कर सकते हैं और देश की बड़ी आबादी को गुमराह होने से बचा सकते हैं.

भारतीय सर्वधर्म संवाद और धार्मिक जनमोर्चा के अध्यक्ष गोस्वामी सुशील जी महाराज सेमिनार में बोलते हुए सौहार्द, सहिष्णुता और एकता पर प्रकाश डालते हुए सभी धर्मों के लोगों को मिलकर रहने के विचार को प्रमुखता से रखा. उन्होंने कहा कि देश में विभिन्न समुदायों के बीच एकता, इस देश के विश्व में बहुत आगे ले जाएगी लेकिन धर्म के नाम पर नफरत फैलाने पर अंकुश लगाना होगा और इसके लिए हम सभी को आगे आना होगा.

गोस्वामी सुशील जी महाराज ने कहा कि, “किसी भी सौहार्द के प्रयास में मैं हमेशा साथ हूँ और जमाअत इस्लामी जैसा संगठन जो कि कई दशकों से देश में सद्भाव और एकता के लिए काम कर रहा है जब भी मुझे आवाज़ देगा मैं हमेशा उपस्थित रहूंगा.”

उन्होंने कहा कि, “देश में जमाअत इस्लामी जैसे ही और बहुत से संगठनों को शांति और सद्भाव के प्रयास के लिए आगे आना चाहिए.” उन्होंने यह भी कहा कि, “देश में कई दशकों से जमाअत इस्लामी हिन्द आपसी भाईचारे के लिए सार्थक और निःस्वार्थ कार्य कर रहा है जिसके साथ मैं भी जुड़ा हुआ हूँ. हम मिलकर देश के लोकतांत्रिक भावना को संरक्षित रखेंगे.”

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो० अपूर्वानंद ने अपनी बात रखते हुए कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यानाकर्षित किया. उन्होंने कहा कि, “देश में हिन्दू मुस्लिम का झगड़ा नहीं है बल्कि मुसलामनों पर हमले हो रहे हैं, देश में मंदिर मस्जिद का कोई झगड़ा नहीं है बल्कि सामूहिक और संगठित रूप से मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं और ये सब हिन्दू चरमपंथी संगठनों द्वारा किया जा रहा है.”

उन्होंने कहा कि भारत भावना को बचाने की ज़रूरत है जिसका श्रोत हमारे लिए भारत का संविधान और उसकी प्रस्तावना में निहित है. देश में हर उस प्रतिबिम्ब को नुकसान पहुंचाया जा रहा है जो हिन्दू-मुस्लिम के लिए साझा संस्कृति का प्रतीक हो. नागरिकों की आज़ादी पर अंकुश लगाया जा रहा है जिसे संविधान ने हमें दिया है.

प्रो० अपूर्वानंद ने बिहार के सीमंचल के एक स्कूल का हालिया उदाहरण देते हुए कहा कि हमारी प्रार्थना को निशाना बनाया जा रहा है जिसे बच्चे हमेशा से करते आए हैं. स्कूल की प्रार्थना को विवाद का कारण बनाया जा रहा जहाँ सभी धर्मों को पढ़ाया जा रहा है.

अपूर्वानंद ने कहा कि, “यह आज़ादी का अमृत काल या 75वां स्वतंत्रा दिवस नहीं बल्कि यह मातम के समान है. किसी भी ईमानदार शख्स के दिल में किसी भी तरह की ख़ुशी नहीं है. प्रो० दुबे जो एक राजनायिक और विदेश सचिव रहे हैं वह यदि कहते हैं कि अब किसी सरकार या पार्टी से बदलाव की कोई उम्मीद नहीं है, अगर कपिल सिब्बल जिन्होंने अपने जीवन का 50 वर्ष न्यायालय में बिताया है यह कहते हैं कि हिंदुस्तान की आदाल से कोई उम्मीद नहीं है तो यह मायूसी की बात है. यह बिलकुल भी अमृत काल नहीं है.”

प्रो० अपूर्वानंद ने कहा कि, “हिंदुस्तान की सत्ता से तो कोई उम्मीद नहीं है लेकिन यहाँ के विपक्षी दल भी हालात की गंभीरता से अंजान दिखाई पड़ते हैं. ऐसा लगता है कि 2014 के पहले के हिंदुस्तान से और उसके बाद के हिंदुस्तान में विपक्षी पार्टियों को कोई फर्क नज़र नहीं आता. हिंदुस्तान की दो सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी के सामने जो संकट खड़ा हो गया है उसका ज़रा भी एहसास इन विपक्षी दलों को है या नहीं इसका कोई सुबूत नज़र नहीं आता.”

उन्होंने कहा कि, “इस देश में मुसलमान असुरक्षित महसूस कर रहा है. उसे लग रहा है कि उसके लिए रास्ता बंद हो रहा है. अगर ऐसा है तो इस देश की चुनौती का सामना नहीं कर सकते हैं. हमें ये समझना होगा कि हम किस चीज़ के लिए लड़ रहे हैं, निश्चितरूप से वह सेक्युलर आइडिया है जिसमें हम सभी एक दूसरे के साथ एक दूसरे का सम्मान करते हुए रह सकें.”

उन्होंने कहा कि, “लोकतंत्र और साझेपन के दारे को और विस्तार देना होगा जिसे कुछ लोग तंग करना चाहते हैं. हमें इस दायरे को और बड़ा करना चाहिए और अधिक अवसर तलाशना चाहिए ताकि हम मिलजुल कर रहने के दायरे को बढ़ा सकें. हिन्दुस्तान के अधिकांश हिन्दुओं को अभी भी यह नहीं पता कि देश के मुसलमानों के दिलों में क्या बीत रही है इसलिए उनसे बात करना होगी.”

प्रो० अपूर्वानंद ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अक्सर हम संतुलनवादी ज़बान का इस्तेमाल करते हैं और लोगों को भ्रम में रखते हैं. हमें अपनी भाषा में बहुत ही स्पष्ट होना चाहिए ताकि हम देश के लोगों तक हालात को सही तरीके से पहुंचा सके. अगर हालात बुरे हैं तो स्पष्ट रूप से बताइए कि हालात सही नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “पिछले 8 वर्षों में मैंने देखा है कि जिस हिम्मत और जिस धैर्य का मुसलमानों ने परिचय दिया है उस पर आने वाले समय में चर्चा होगी और इसे याद किया जाएगा. हालात बद से बदतर हुए लेकिन मुसलमानों ने धीरज नहीं खोया.”

जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि, सभी अनुभवी वक्ताओं ने आइडिया ऑफ़ इंडिया को बनाये रखने को लेकर बहुमूल्य विचार यहां प्रस्तुत किया है.

सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि, “हम सभी आइडिया ऑफ़ इंडिया को बचाना चाहते हैं और इसी लिए एकत्रित होकर इसपर बात कर रहे हैं. हमारा देश यूरोप की तरह एक भाषा और संस्कृति का देश नहीं है बल्कि यहाँ बहुत सी भाषा, संस्कृति, धर्म के लोग रहते हैं. यहाँ एक भाषा और संस्कृति को थोपा नहीं जा सकता. हमारा देश यूरोपीय राष्ट्रों से बिलकुल अलग है.”

सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि, “यह बात हम सभी को समझने की ज़रूरत है कि जिस आइडिया ऑफ़ इंडिया को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की जा रही है उससे नुकसान सिर्फ मुसलमानों को नहीं होगा या किसी एक तबके को नहीं होगा बल्कि इस देश की पहचान और मुल्क के बुनियादी विचार को सबसे बड़ा नुकसान होगा. किसी को ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए कि उसे इसका नुकसान नहीं होगा. आज नहीं तो कल हर व्यक्ति प्रभावित होगा. भारत का वजूद इसका नुकसान उठाएगा.”

उन्होंने कहा कि जब तक आप आइडिया ऑफ़ इंडिया को बचाए रखेंगे तब तक भारत के बजूद को बचाए रखेंगे क्योंकि भारत का वजूद भारत भावना और आइडिया ऑफ़ इंडिया से ही है. इस विचार को निचले स्तर तक हमें पहुँचाना होगा.

जमाअत अध्यक्ष ने एक दार्शनिक के कथन का हवाला देते हुए कहा कि, “कभी कोई सभ्यता मरती नहीं है बल्कि सभ्यता हमेशा आत्महत्या करती है और उसका कारण लोगों का आपस में लड़ना होता है.”

जमाअत अध्यक्ष ने कहा कि आइडिया ऑफ़ इंडिया को बचाने की हर स्तर पर कोशिश करना होगा. बच्चों में, महिलाओं में बुद्धजीवियों में और समाज के अलग-अलग तबकों में हमें इस विचार को बचाने की ज़रूरत है. इस काम में जमाअत इस्लामी हिन्द जो सहयोग कर सकती है करेगी.

जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद अहमद ने सेमिनार के वक्ताओं का धन्यवाद देते हुए सभी अतिथियों का अतिथियों का आभार जताया.

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