सैयद ख़लीक अहमद
नई दिल्ली | भारत के मुस्लिम देशों के साथ हमेशा से ही अच्छे संबंध रहे हैं, खासकर अरब देशों के साथ, और इसकी वजह भारत की धर्मनिरपेक्ष नीति यानी सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार और बहु-संस्कृतिवाद रही है, जो सभी धर्मों के अनुयायियों को अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने का समान अवसर प्रदान करती है. एक वक्त ऐसा भी आया जब 57 मुस्लिम देशों के एक समूह, ऑर्गनाईज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस(ओआईसी) ने उस पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देश की निंदा की, जब पाकिस्तान ने भारत के राष्ट्रीय हितों के ख़िलाफ कुछ मुद्दों को उठाया था.
बाबरी मस्जिद को जब कट्टरपंथी हिंदुओं द्वारा ध्वस्त किया गया था तब भी मुस्लिम देशों ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई थी, और तब भी जब सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार करते हुए कि, ‘बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी हिन्दू मंदिर को तोड़ कर नहीं किया गया था और 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस अवैध और एक आपराधिक कृत्य था’ बाबरी मस्जिद को राम मंदिर के निर्माण के लिए सौंप दिया था, तब भी मुस्लिम देशों ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई.
हालाँकि बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा की गई पैगंबर मुहम्मद साहब को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी पर मुस्लिम देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज करवाई और कुछ अरब देशों ने अपने-अपने देशों में भारतीय राजदूतों को बुलाकर भारत सरकार से माफी की मांग भी की, जबकि भारतीय मुसलमान तो शुरू से ही यही मांग कर रहे थे लेकिन न तो भाजपा और न ही केंद्र सरकार ने उन भारतीय मुस्लिम नागरिकों की शिकायतों पर ध्यान दिया जिन्होंने नुपुर शर्मा ने के खिलाफ कार्यवाही की मांग की थी.
बीजेपी ने मुस्लिम देशों की निंदा के तुरंत बाद कार्रवाई की और नूपुर शर्मा को पार्टी से छह साल के लिए निलंबित कर दिया और एक अन्य वरिष्ठ बीजेपी पदाधिकारी नवीन जिंदल को पार्टी से निष्कासित कर दिया.
मोदी की अकस्मात यूएई यात्रा पर वहां के राष्ट्राध्यक्ष की ठंडी प्रतिक्रिया
नूपुर शर्मा मामले में मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया सत्तारूढ़ गुट के लिए आश्चर्यजनक हो सकती है क्योंकि मुस्लिम दुनिया ने अतीत में कभी भी सांप्रदायिक दंगों के दौरान भारतीय मुसलमानों पर अत्याचार, बाबरी मस्जिद के विध्वंस या विभिन्न मामलों में उनके खिलाफ भेदभाव को लेकर कभी भी आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी. शायद यही कारण हो सकता है कि सत्ताधारी पार्टी और उसकी सरकार ने नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर वैश्विक मुस्लिम प्रतिक्रिया की उम्मीद भी नहीं की की होगी.
इस्लाम के पैगंबर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी और भारतीय मुस्लिमों की मस्जिद के विध्वंस या मुस्लिम विरोधी दंगे के बीच के अंतर को समझने को लेकर बीजेपी के थिंक टैंक और भाजपा नेताओं में समझ की कमी रही है. एक मस्जिद को नष्ट करना या तोड़फोड़ करना, सांप्रदायिक दंगे या मुसलमानों की मॉब लिंचिंग, या मुसलमानों के नरसंहार की धमकी देना, किसी देश का आंतरिक मामला हो सकता है लेकिन इस्लाम और उसके पैगंबर (सल्ल०) पर आपत्तिजनक टिप्पणी करना आंतरिक मामला नहीं माना जा सकता है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा है. यह अकेले भारतीय मुसलमानों का मसला नहीं है. पैगंबर का अपमान करके आरोपी व्यक्ति ने केवल भारतीय मुसलमानों की भावना को ठेस नहीं पहुंचाई बल्कि दुनिया भर के मुसलमानों को, सांस्कृतिक और धार्मिक अर्थों में पूरे मुस्लिम कौम को तकलीफ़ पहुंचाई. इसलिए, भारत सरकार को इस बात को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे को समझने और उसके अनुसार मामले में उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता है.
क्या नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के खिलाफ की गई कार्रवाई से मुस्लिम राष्ट्र संतुष्ट हैं? वरिष्ठ पत्रकार हसन कमाल ने अपने साप्ताहिक कॉलम “नुक़ता-ए-नज़र” में उर्दू दैनिक द इंकलाब के 13 जुलाई के संस्करण में टिप्पणी की है कि भारत सरकार के खिलाफ अरब जगत का गुस्सा अब भी कम नहीं हुआ है. अख़बार के संपादकीय पृष्ठ पर अपने लंबे लेख में वह लिखते हैं कि, हाल ही में जर्मनी से लौटने के दौरान संयुक्त अरब अमीरात की अपनी अनिर्धारित यात्रा के दौरान यूएई राष्ट्राध्यक्ष की तरफ से पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर ठंडी प्रतिक्रिया का कारण नूपुर शर्मा मुद्दे पर नाराज़गी थी.
हसन कमाल अपने निजी श्रोतों का उल्लेख किए बिना उनका ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि, मोदी तब दंग रह गए जब हवाई अड्डे पर उन्हें लेने आने वाले यूएई के शासक शेख ज़ैद बिन नाहयान की तरफ से कोई गर्मजोशी नहीं देखी. यूएई के राष्ट्राध्यक्ष के हाव-भाव से इस बात का अहसास होने के बाद मोदी दोनों हाथ फैलाकर शेख ज़ैद की ओर चल पड़े लेकिन शेख ज़ैद के व्यवहार से अभिवादन की ऐसी कोई गर्म अभिव्यक्ति न तो दिखाई दे रही थी और न ही महसूस की जा सकती थी.
हसन कमाल के अनुसार, यूएई के शासक से मुलाकात के दौरान गर्मजोशी या मित्रता की कमी को न तो भारतीय टीवी चैनलों पर दिखाया गया और न ही भारतीय मीडिया द्वारा चर्चा की गई. भारतीय मीडिया ने इस प्रकरण को ऐसे दबा दिया जैसे मोदी के साथ कुछ हुआ ही नहीं या पीएम अबू धाबी गए ही नहीं.
हसन कमाल का कहना है कि, संयुक्त अरब अमीरात के शासक की कथित उदासीन प्रतिक्रिया को भांपते हुए मोदी ने कुछ भी बोलने से परहेज़ किया जो भारत और संयुक्त अरब अमीरात में मीडिया के लिए चर्चा का विषय हो सकता था.
भारत सरकार के खिलाफ आक्रोश में तेज़ी
हसन कमाल की मानें तो ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मुहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी और सुप्रीम कोर्ट की बेंच द्वारा नूपुर शर्मा को उनकी टिप्पणी के बाद हुए हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराने वाली टिप्पणी के बाद भी नूपुर शर्मा को आज़ाद घूमने देने के बाद से दुनिया के मुसलमानों का गुस्सा भारत सरकार के खिलाफ बढ़ गया है. ज़ुबैर ने सिर्फ नुपुर शर्मा के कमेंट को ट्वीट किया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विदेशी राजधानियों में भारतीय राजदूतों को विदेश की सरकारों को यह समझाने का निर्देश दिया गया है कि नूपुर शर्मा ने जो टिप्पणी की है, वह भारत सरकार का नज़रिया नहीं है. लेकिन मौजूदा भारतीय कानूनों के तहत नूपुर के खिलाफ सरकार द्वारा कार्रवाई की कमी विश्व समुदाय को एक मज़बूत संदेश नहीं देती है, और शायद यही वजह है कि भारत के पीएम का संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्राध्यक्ष द्वारा गर्मजोशी से स्वागत नहीं किया गया.
हालांकि, नूपुर शर्मा प्रकरण विश्व मुस्लिम समुदाय में भारत के खिलाफ बढ़ी नकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए ज़िम्मेदार है, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि पिछले आठ वर्षों में अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ घटनाओं की एक श्रृंखला ने विदेशों में भारत की छवि को प्रभावित किया है. संयुक्त राष्ट्र ने भी मुहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी की निंदा की है और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है.