अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | यूपी में लोकसभा उपचुनाव के परिणाम आ चुके हैं और रामपुर एवं आज़मगढ़ दोनों सीट भाजपा ने जीता है। लेकिन चुनाव परिणाम पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं और चुनाव परिणाम सवालों के घेरे में हैं। यूपी विधानसभा चुनाव में करहल सीट से जीत हासिल करने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ लोकसभा से और सपा नेता आजम खां ने रामपुर से जीत हासिल करने के बाद रामपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था।
रिक्त हुई सीटों पर चुनाव आयोग ने उपचुनाव करवाया था। 23 जून को यहां पर मतदान हुआ था। मतदान के दौरान ही रामपुर में जिला प्रशासन ने सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के एजेंट के रूप में कार्य किया था और पुलिस बल के जरिए मुस्लिम मतदाताओं को वोट देने से रोका और आरोप लगा कि मुस्लिम महिलाओं को वोट नहीं डालने दिया गया था।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने और आजम खां ने चुनाव आयोग से शिकायत दर्ज कराई थी और कार्यवाही करने की मांग की थी। लेकिन चुनाव आयोग ने इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं किया। परिणाम यह हुआ कि रामपुर में 37 प्रतिशत के लगभग ही मतदान हुआ। मतदान कम होने के बाद ही यह लगभग मान लिया गया था कि रामपुर में सपा उम्मीदवार आसिम रज़ा की हार निश्चित हो गई है।
26 जून को चुनाव परिणाम आया और रामपुर से सपा उम्मीदवार आसिम रज़ा चुनाव हार गए। भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी ने आसिम रज़ा को 42192 वोटों से हराकर रामपुर सीट जीत ली। घनश्याम सिंह लोधी के जीतने के बाद सपा नेता आज़म खां ने इस पर सवाल खड़े किए और उन्होंने कहा कि, “इस चुनाव में सिर्फ एक ही वर्ग के साथ इतना अपमानजनक और इतना जालिम रवैय्या, महिलाओं को गन्दी-गन्दी गालियां देना, हाथ-पैर तोड़ देना, गला दबाना, अभद्र व्यवहार करना ऐसे में घर से भला कौन निकलेगा। इससे यह तो साबित हो गया न कि रामपुर के लोग बहुत शरीफ हैं। अब उनकी शराफत को बुजदिली समझ लिया गया, तो ये ही सही। अगर शरीफ बुज़दिल होता है, तो हम बुजदिल ही सही।”
आजम खां ने कहा कि, “जिस जगह पर सिर्फ मुस्लिम आबादी है ऐसे मुहल्ले में जो 1500 वोट का बूथ था, वहां सिर्फ 9 वोट पड़े। पांच सौ वोट वाली पोलिंग बूथ पर सिर्फ 1 वोट पड़ा। हम ही मुल्जिम बने और हमारे ही खिलाफ फैसला हुआ। जब ज़ालिम ही मुंसिफ बन जाए तो इंसाफ कहां से मिलेगा।”
सपा नेता आज़म खां ने चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा को खुली चुनौती दी और उन्होंने कहा कि, “खुली बैठक में भाजपा चुनाव लड़े तो उसकी असलियत पता चल जाएगी। अगर कोई अंतरराष्ट्रीय संस्था चुनाव कराए तो भाजपा को हार और जीत का मतलब पता लग जायेगा।”
चुनाव परिणाम आने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी भाजपा के ऊपर सत्ता के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि, “रामपुर और आज़मगढ़ में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सत्ता का जमकर दुरुपयोग किया है। छलबल के ज़रिए जनमत को प्रभावित करने का काम किया गया है। भाजपा की सत्ता लोलुपता ने प्रदेश में सभी लोकतांत्रिक मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है। रामपुर और आज़मगढ़ में सपा पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ी और जनता का रुझान भी सपा की ओर था। भाजपा ने अपने पक्ष में जबरन मतदान के लिए सभी अलोकतांत्रिक और निम्न स्तर के हथकंडे अपनाए। मतदाताओं को वोट देने से रोका गया और उनको धमकाया गया। पुलिस ने पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं को थानों में जबरन अवैध तरीके से बैठा लिया। पोलिंग एजेंटों को मतदान केंद्र से जबरिया बाहर कर दिया।”
अखिलेश यादव ने कहा कि, “भाजपा की मनमानी का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि जिस मुस्लिम बहुल क्षेत्र में पोलिंग बूथ पर 900 वोट थे, वहां पर 6 वोट पड़े। 500 वोटर वाले बूथ पर सिर्फ 1 वोट पड़ा। यह लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का खुला मजाक है। लोकसभा उपचुनाव में जीत का जश्न मनाना जनता का उपहास करना है। 2024 के लोकसभा चुनाव में जनता भाजपा के अहंकार को तोड़कर रख देगी, तब भाजपा को उसकी जमीन का पता लगेगा।”
आज़मगढ़ में भी सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव, भाजपा उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ से चुनाव हार गए। भाजपा उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ को 312768 वोट मिले और सपा के धर्मेंद्र यादव को 304089 मत मिले तथा बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 266210 वोट मिले। भाजपा उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ 8679 वोटों से सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव से जीते। धर्मेंद्र यादव की हार का कारण आज़मगढ़ में मुस्लिम समुदाय के वोटरों का बंटवारा हो जाना है।
बसपा सुप्रीमो मायावती शुरू से ही सपा को हराने के लिए कमर कस कर मैदान में डटी हुई थीं और सपा को हराने की बात कर रही थीं। उन्होंने सपा को हराने के लिए ही आज़मगढ़ में शाह आलम के रूप में मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव में उतारा। वह यह मानकर चल रही थीं कि अगर शाह आलम के पीछे मुस्लिम समुदाय का वोटर खड़ा हो जाएगा, तो मुस्लिम वोट बंट जाएगा और सपा उम्मीदवार हार जाएगा। मायावती जैसा चाह रही थीं, ठीक वैसा ही हो गया और मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव बहुत कम अंतर से चुनाव हार गए।
मायावती, शाह आलम के चुनाव प्रचार के लिए आज़मगढ़ नहीं गईं, लेकिन सोशल मीडिया के ज़रिये आज़मगढ़ के मतदाताओं को यह समझाती रहीं कि दलितों के साथ मुस्लिम समुदाय के वोटों के आने से शाह आलम जीत सकते हैं। कहा जा रहा कि मुस्लिम वोट बिखर गया और भाजपा जीत गई। सपा को आजमगढ़ में यादव और मुस्लिम समुदाय का परम्परागत वोट खूब मिला, लेकिन मुस्लिम वोटों के बंटवारे से बसपा के साथ भी मुस्लिम समुदाय का वोटर चला गया। यही कारण था कि सपा आज़मगढ़ में हार गई। सपा के पाले से मुस्लिम समुदाय के वोटों को खिसकाने का काम ओवैसी की पार्टी ने भी किया। ओवैसी द्वारा शाह आलम को समर्थन देने से कुछ मुस्लिम वोटर शाह आलम के साथ चला गया। इसका भी नुकसान सपा उम्मीदवार को हुआ, जिससे उसकी हार हो गई।
यूपी में लोकसभा के उपचुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका भी संदिग्ध रही है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि चुनाव आयोग का काम निष्पक्ष तरीके से चुनाव करवाना और पूरी ईमानदारी से चुनाव परिणाम घोषित करना होता है। इसके साथ ही चुनाव से संबंधित कोई शिकायत होने पर उसका ईमानदारी एवं निष्पक्षता के साथ निराकरण करना होता है। लेकिन इधर देखने में यह नज़र आ रहा है कि चुनाव आयोग अपनी भूमिका सही तरीके से नहीं निभा रहा है। अगर सही तरीके से वह काम करे, तो उसके ऊपर कोई उंगली न उठाये।
यूपी में रामपुर और आजमगढ़ में लोकसभा के उपचुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रही है। चुनाव के दौरान ही रामपुर में मतदाताओं को वोट न डालने देने और मतदाताओं को डराने एवं धमकाने की शिकायतें चुनाव आयोग से की गई थीं। लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं किया। परिणाम क्या हुआ, यह अब सबके सामने है। चुनाव आयोग अब चाहे जितनी सफाई क्यों न दे, लेकिन उसकी भूमिका संदिग्ध है। चुनाव आयोग सत्ता के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया है। चुनाव आयोग लोकतंत्र का गला घोंटने में सत्तारूढ़ भाजपा की मदद कर रहा है।