इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश राज्य के अधिकारियों द्वारा प्रदर्शनकारियों के घरों को गिराए जाने और लोगों को हिरासत में लिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया है.
12 पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में न्यायालय से उत्तर प्रदेश में “बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति” पर हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया है.
पत्र के हस्ताक्षरकर्ता हैं:
- जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी (पूर्व जज, सुप्रीम कोर्ट)
- जस्टिस वी. गोपाल गौड़ा (पूर्व जज, सुप्रीम कोर्ट)
- जस्टिस ए.के. गांगुली, (पूर्व जज, सुप्रीम कोर्ट)
- जस्टिस एपी शाह (पूर्व मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली हाईकोर्ट)
- जस्टिस के चंद्रू (पूर्व न्यायाधीश, मद्रास उच्च न्यायालय)
- जस्टिस मोहम्मद अनवर (पूर्व न्यायाधीश, कर्नाटक उच्च न्यायालय)
- शांति भूषण (वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट)
- इंदिरा जयसिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट)
- चंद्र उदय सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट)
- श्रीराम पंचू (वरिष्ठ अधिवक्ता, मद्रास उच्च न्यायालय)
- प्रशांत भूषण (अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट)
- आनंद ग्रोवर (वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट)
पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि हाल ही में पैगंबर मोहम्मद स० पर कुछ भाजपा प्रवक्ताओं (निलंबित) द्वारा की गई टिप्पणियों के परिणामस्वरूप देश के कई हिस्सों में और विशेष रूप से यूपी में विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पूर्व जजों द्वारा चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में कहा गया है, “प्रदर्शनकारियों को सुनने और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का मौका देने के बजाय, यूपी राज्य प्रशासन ने ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने की मंजूरी दे दी है.”
पत्र में आगे कहा गया है कि, मुख्यमंत्री की टिप्पणी ने पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से और गैरकानूनी तरीके से प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहित किया है. मुख्यमंत्री ने आधिकारिक तौर पर प्रशासन को “दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया है ताकि कोई भी अपराध न करे या भविष्य में कानून अपने हाथ में न ले.”
पुलिस कार्रवाई पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि, “यूपी पुलिस ने 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है और विरोध करने वाले नागरिकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है. पुलिस हिरासत में युवकों को लाठियों से पीटा जा रहा है, प्रदर्शनकारियों के घरों को बिना किसी नोटिस या कार्रवाई के ध्वस्त किया जा रहा है, अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को पुलिस द्वारा पीटा जा रहा है जो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा है, यह देश की अंतरात्मा को झकझोर रहा है.”
पूर्व जजों ने कहा है, “एक सत्तारूढ़ सरकार द्वारा इस तरह का क्रूर दमन अस्वीकार्य है जो नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है, और संविधान और राज्य द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का मजाक बनाता है.”
पत्र में कहा गया है, “पुलिस और अधिकारियों ने जिस तरीके से कार्रवाई की है, उससे स्पष्ट निष्कर्ष निकलता है कि विध्वंस गैर क़ानूनी और सामूहिक दण्ड का एक रूप है.”
वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पूर्व जजों ने कहा है कि, “ऐसे समय में न्यायपालिका की क्षमता का परीक्षण किया जाता है और अतीत में भी इसकी ज़रूरत पड़ी है. पत्र में कहा गया है कि, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी श्रमिकों के मामले में स्वत: कार्रवाई की और पेगासस मामले में आदेश भी पारित किए.”
पत्र में कहा गया है, “संविधान के संरक्षक के रूप में ऐसे समय में आप की भूमिका महत्वपूर्ण है, हम इसलिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय से उत्तर प्रदेश में बिगड़ती कानून और व्यवस्था की स्थिति पर तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं, विशेष रूप से पुलिस और राज्य के अधिकारियों और नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर क्रूर कार्रवाई के मामले में.”
पत्र में सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास जताते हुए कहा गया है कि, “हम आशा करते हैं और हमें पूरा विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय इस मौके पर संज्ञान लेते हुए उचित कार्रवाई करेगा और नागरिकों की सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों को संरक्षित करेगा.”