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Friday, March 29, 2024
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मुशावरत के कार्यक्रम में वक्ताओं ने मुसलमानों से की डर और मायूसी से बाहर निकलने की अपील

सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत (AIMMM) द्वारा ‘देश की वर्तमान स्थिति: हमारी प्रतिक्रिया’ के विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ. इस दो दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन सेशन में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, “भारत 1947 के बाद से अपने इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. बहुसंख्यक समुदाय में बढ़ते कट्टरपंथ और साम्प्रदायिकता के कारण देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता खतरे में आ गई है.”

उन्होंने कहा कि, “ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अगर बढ़ती हुई साम्प्रदायिकता का विरोध नहीं किया गया तो यह फासीवाद में बदल सकता है. जहां सरकार की जनविरोधी नीतियों से जनता बुरी तरह प्रभावित हुई है, वहीं अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लिए जीवन बेहद कठिन हो गया है. भारत ने आज़ादी के बाद से अपने 70 वर्षों के इतिहास में कभी भी इतनी गंभीर स्थिति का सामना नहीं किया जैसी स्थिति का सामना अब कर रहा है.”

डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानन्द ने दुहराते हुए कहा कि, “यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे गंभीर क्षण है.”

ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में 18 राज्यों के मुस्लिम बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने भाग लिया. एआईएमएमएम भारतीय मुसलमानों के विभिन्न वैचारिक संगठनों का एक प्रतिनिधि समूह है.

प्रो. अपूर्वानन्द ने केंद्र सरकार को दोष देते हुए कहा कि, “यदि हम विगत कुछ वर्षों में विभिन्न राज्यों में, विशेषकर भाजपा शासित प्रदेशों और केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियंत्रण वाले राज्यों के घटनाक्रमों को देखें, तो हम पाएंगे कि मुस्लिम समुदाय के खिलाफ लगभग युद्ध ही छेड़ दिया गया है और इस युद्ध की घोषणा राज्य ने ही की है.”

उन्होंने कहा कि, “शोभा यात्रा”, या धार्मिक जुलूस जो पहले हिंदू धर्म के पर्वों का जश्न मनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे, अब ये सार्वजनिक रूप से मुसलमानों को आतंकित करने और अपमानित करने का साधन बन गए हैं, और पुलिस व राज्य की अन्य एजेंसियां ​​​​बस मौन धारण करके सब देखती हैं.

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्ला हुसैनी 20 मई को नई दिल्ली में इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर में एआईएमएमएम सम्मेलन को संबोधित करते हुए

मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले में दो महीने पहले जब एक मुस्लिम युवक ने एक वयस्क हिंदू लड़की से उसकी रज़ामन्दी से शादी की, तो उस युवक के माता-पिता के घर और दुकानों पर एक हिंदू महिला से शादी करने की सज़ा के तौर पर बुलडोजर चलवा दिया गया था, हालांकि मौजूदा कानून के तहत इसकी अनुमति नहीं है. ज़िला कलेक्टर रत्नाकर झा ने उक्त मुस्लिम युवक के घर और दुकानों पर बुलडोज़र चलाने के गैरकानूनी कृत्य पर गर्व करते हुए एक ट्वीट किया.

भाजपा के राज्य के मुख्यमंत्री मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने और सड़कों और सार्वजनिक मैदानों पर ईद और बकरीद की नमाज़ पर रोक लगाकर गर्व महसूस कर रहे हैं. फरवरी 2020 में दिल्ली में मुस्लिम विरोधी दंगों के दौरान, हिंदू भीड़ ने “दिल्ली पुलिस तुम डंडा चलाओ, हम तुम्हारे साथ हैं” के नारे लगाए, पुलिस से भीड़ के साथ मुसलमानों पर हमला करने की अपील भी की गई थी.

मुस्लिम महिलाओं की आज़ादी के बहाने, नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन तलाक जैसे सिविल मामले का अपराधीकरण किया, जिससे मुस्लिम पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं के लिए भी भारी समस्याएँ पैदा हो गईं. मोदी सरकार ने मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को यह संदेश देने के लिए निरस्त किया कि मुसलमान अब किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री बनने के बारे में नहीं सोच सकते. गोहत्या के नाम पर पूरे देश में मुसलमानों को प्रताड़ित किया जा रहा है. बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को गुपचुप तरीके से निशाना बनाने के लिए कई कोड वर्ड बन गए हैं.

मीडिया मुसलमानों के खिलाफ दिन-रात दुष्प्रचार कर रही है. हिंदू कट्टरपंथी समूह मुस्लिम घरों में प्रवेश कर सकते हैं और उन्हें बेदखल कर सकते हैं. अदालतें भी मुसलमानों को राहत देती नहीं दिख रही हैं. 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियों को रात के अंधेरे में गुपचुप तरीके से स्थापित किया गया था. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्वीकार किया कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक अपराध था, फिर भी अन्यायपूर्ण तरीके से बाबरी मस्जिद की ज़मीन विध्वंस में शामिल आरोपियों की पार्टी को सौंप दी.

भारत में स्थिति अब इतनी बिगड़ चुकी है कि ज्ञानवापी मस्जिद की स्थिति को दिन के उजाले में बदल दिया गया और मामला अदालतों में विचाराधीन होने के बावजूद 1991 के पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उल्लंघन करके मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और दिल्ली के कुतुब मीनार को मंदिरों में बदलने की मांग पूरी करने के लिये सरकारी स्तर पर काम किया जा रहा है. 1991 का अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है और रखरखाव का प्रावधान करता है. इस कानून के तहत 15 अगस्त, 1947 को जो पूजा स्थल जिस रूप मे था उसे बदला नहीं जा सकता. लेकिन अब इस कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.

जहां एक ओर आरएसएस देश के धर्मनिरपेक्ष स्वभाव को बदलने के लिए मुसलमानों और ईसाइयों को निशाना बना रहा है, दूसरी तरफ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को चौड़ा करने का भी प्रयास किया जा रहा है ताकि दोनों समुदाय एकजुट न हो सकें. नफरत पर आधारित राजनीति करने वाले कट्टरपंथियों को लगता है कि अगर मुसलमान और हिंदू, दो सबसे बड़े धार्मिक समुदाय एकजुट रहेंगे, तो वे अपने बुरे मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाएंगे और इसलिए, मुस्लिमों से घृणा का प्रोपेगैंडा लगातार चलाया जा रहा है.

ऐसा लगता है कि इन घटनाओं की वजह से मुस्लिम समुदाय में भय और निराशा बढ़ रही है, क्योंकि अब तो विपक्षी दल भी मुसलमानों के उत्पीड़न पर चुप हैं. कोई भी राजनीतिक दल वर्तमान ध्रुवीकरण की राजनीतिक परिस्थितियों में मुस्लिमों के लिए खुलकर खड़ा नहीं होना चाहता. विपक्षी दलों को डर है कि अगर उनकी पहचान मुस्लिमों के लिए खड़े होने वालों के रूप में बन गई तो वे चुनाव में बहुसंख्यक समुदाय का समर्थन खो सकते हैं. कोई भी समुदाय तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक वह हमेशा भय और निराशा से बाहर न निकल पाए. भारत में मुसलमान खुद को मंझधार में तूफान में फंसा हुआ पा रहे हैं.

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्ला हुसैनी

इसलिए मुस्लिम समुदाय के नेताओं और बुद्धिजीवियों के सामने बड़ा सवाल यह है कि भय और निराशा के इस “चक्रव्यूह” को कैसे तोड़ें, मुसलमानों को सामाजिक और राजनीतिक अलगाव से कैसे मुक्त करें, मुसलमानों के लिए परिस्थितियां बेहतर बनाकर देश को वर्तमान स्थिति से कैसे बाहर निकालें? हालांकि एआईएमएमएम के कार्यक्रम में अलग-अलग वक्ताओं ने अलग-अलग सुझाव दिए, लेकिन सबसे अच्छा सुझाव जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी द्वारा दिया गया. उन्होंने तीन सुझाव दिए. सबसे पहली अपील उन्होंने यह की कि “मुसलमानों के बीच से डर को दूर किया जाए और हिंसा फैलाने वालों से शांतिपूर्ण तरीके से लड़ने के लिए आत्मविश्वास और साहस की भावना पैदा की जाए.”

कुरान की शिक्षाओं का उदाहरण पेश करके उन्होंने कहा कि, “यह शैतान है जो भय पैदा करता है और इसलिए, मुसलमानों को किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है.” उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने 1857 में भी इसी तरह की या इससे भी बदतर स्थिति का सामना किया था, लेकिन उन्होंने 160 साल पहले अपने साहस और हौसले के दम पर मुश्किलों पर जीत हासिल की थी.”

यह कहते हुए कि यह संघर्ष कभी-कभी बढ़ सकता है या कम भी हो सकता है, उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समुदाय को इस स्थिति से बाहर निकालना है. “अगर हम डरते रहेंगे तो छोटी से छोटी मुश्किल से भी खौफ पैदा होगा.”

लेकिन वर्तमान में हो रहे उत्पीड़न का विरोध करने के लिए डर को कैसे दूर किया जाए और आत्मविश्वास कैसे विकसित किया जाए? जमाते इस्लामी के अध्यक्ष ने इस पर कुरान में सुझाई गई “इस्तकामत” या दृढ़ता की आदत विकसित करने की सलाह दी, जिसका अर्थ है कठिनाइयों के बावजूद प्रयास करना और कार्य बहुत कठिन होने पर भी इसे अंत तक करते रहना. हालांकि, उन्होंने कहा कि यह केवल ईमान पर चलने और इस्लामी सिद्धांतों का पालन करने से ही प्राप्त किया जा सकता है.”

कुछ हफ्ते पहले अपने ईद संदेश में, जमाअत इस्लामी हिन्द के प्रमुख ने कहा था कि, “भय ईमान का दुश्मन है, इसलिए मुसलमान न तो डरता है और न ही अपने आस-पास की परिस्थितियों से निराश होता है क्योंकि कुरान के अनुसार डर और मायूसी शैतान की चालें हैं. मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन डर और मायूसी है, जो लोग मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं, वे चाहते हैं कि मुस्लिमों में खौफ़ पैदा हो, उन्हें हालात से इतना मायूस कर दिया जाए कि वो किसी भी प्रकार की उम्मीद छोड़ दें.”

दुर्भाग्य वश, कुछ मुसलमान भी जानबूझकर या अनजाने में समुदाय में डर और मायूसी पैदा करने में लगे हुए हैं. किसी समुदाय के विनाश का सबसे बड़ा कारण डर पैदा हो जाना और उम्मीदों का खत्म हो जाना होता है. मुश्किल वक़्त हमेशा अस्थायी होता है, आज का समय भले ही हमारे लिए मुश्किल भरा हो सकता है. लेकिन यह निश्चित रूप से बाद में बेहतर हो जाएगा. लेकिन, अगर डर और नाउम्मीदी हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन गए, तो यह पूरे समाज पर लंबे समय तक रहने वाला नकारात्मक प्रभाव छोड़ेगा. यह जीवन के उत्साह को खत्म करके हमें नाउम्मीद बना देगा.

“इसलिए, हमें समुदाय के मन से डर और मायूसी को दूर करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना चाहिए.”

जमाअत प्रमुख ने दूसरी सिफारिश करते हुए कहा कि, “बहुसंख्यक समुदाय के लोगों के दिल जीतने के लिए प्रयास किये जायें क्योंकि बस एक छोटा समूह है जो नफरत का पोषक है.”

उन्होंने कहा, “हमें लोगों को बताना चाहिए कि ये मुट्ठीभर लोग देश को बहुत खतरनाक रास्ते पर ले जा रहे हैं और उन्हें हराने की ज़रूरत है.”

उन्होंने कहा कि, “AIMMM का गठन दशकों पहले हुआ था, जब देश को इसी तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, उस समय एआईएमएमएम के बैनर तले मुस्लिम नेताओं ने देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया, मुसलमानों और हिंदुओं से मुलाकातें की जिससे स्थिति में सुधार हुआ.”

उन्होंने श्रोताओं से कहा, “इस तरह के अभियान को अब शुरू करने की ज़रूरत है ताकि लोगों में साम्प्रदायिक तत्वों की गतिविधियों के खतरों के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके और समाज में एकता और सद्भाव की अपील की जा सके.”

उनके द्वारा दिया गया तीसरा प्रस्ताव यह था कि विभिन्न मुस्लिम संगठनों और अलग अलग वैचारिक संगठनों के बीच एकता स्थापित करना और समुदाय के सामने मौजूद इस विकट स्थिति का सामना करने का तरीका जानने के लिए सप्ताह में कम से कम एक बार एक बैठक आयोजित करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि “केवल इस तरह की पहल से मुस्लिम समुदाय को उम्मीद मिलेगी और देश में मौजूद शक्तियों को भी एक संदेश जाएगा.”

एआईएमएमएम के अध्यक्ष नावेद हामिद ने अपने समापन भाषण में कहा कि, “भारत में मुसलमानों को बिल्कुल भी मायूस नहीं होना चाहिए. मुसलमानों का भविष्य भारत का भविष्य है. यदि आप मुसलमानों को परेशान करते हैं, तो आप देश के दुश्मन हैं.”

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना यासीन उस्मानी ने भी मुसलमानों में से डर और निराशा को दूर करने की आवश्यकता बताई.

वक्ताओं में तौकीर रज़ा खान, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सैयद कासिम रसूल इलियास और बसपा सांसद कुंवर दानिश अली भी शामिल थे.

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