अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की 36 सीटों के लिए चुनावी जंग शुरू हो गई है। भाजपा विधान परिषद की अधिकतम सीटें जीतकर बहुमत पाना चाहती है और इसके लिए वह साम, दाम, दंड-भेद की नीति अपना रही है। जबकि सपा विधान परिषद में अपने बहुमत को बरकरार रखने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।
उत्तर प्रदेश में अभी विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए हैं और नई सरकार ने अभी तक शपथ ग्रहण कर कार्यभार नहीं संभाला है। इसी बीच विधान परिषद के चुनाव शुरू हो गए हैं। इस चुनाव को पहले विधानसभा चुनाव के साथ कराया जा रहा था। इसके लिए नामांकन पत्र भी दाखिल होने शुरू हो गए थे, लेकिन अचानक चुनाव को रोक दिया गया। अब नए सिरे से इस चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
पहले यह चुनाव दो चरणों में होना था, किन्तु अब एक ही चरण में 9 अप्रैल को मतदान होगा। मतों की मतगणना 12 अप्रैल को होगी। इसके लिए नामांकन प्रक्रिया फरवरी में जहां से रोकी गई थी, वहीं से आगे शुरू की गई है। इसके लिए पहले जो नामांकन पत्र दाखिल किए जा चुके हैं, वह सभी मान्य होंगे। 15 मार्च से नामांकन प्रक्रिया शुरू की गई है।
यह नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया 15 से 19 मार्च तक रखी गई थी, जिसको अब चुनाव आयोग ने 21 तारीख तक बढ़ा दिया है।यह नामांकन प्रक्रिया 30 सीटों के लिए है। शेष 6 सीटों के लिए गोंडा, फैजाबाद, बस्ती -सिद्धार्थनगर, गोरखपुर- महराजगंज, देवरिया और बलिया में नामांकन प्रक्रिया 15 मार्च से 22 मार्च तक रखी गई है।
विधान परिषद की इन 36 सीटों की जंग शुरू हो गई है और इनको जीतने के लिए भाजपा और सपा मुख्य रूप से जोर आज़माइश कर रहे हैं। इस चुनाव में धनबल और बाहुबल का जमकर प्रयोग होगा। भाजपा इस चुनाव में 36 सीटों में से अधिकतर सीटों पर कब्जा करने का मन बनाए हुए है। मौजूदा समय में विधान परिषद में भाजपा के पास बहुमत नहीं है और उसको विधेयक पारित कराने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं। इसलिए वह इस चुनाव में अधिकांश सीटें जीतने के लिए हर दांव आजमा रही है।
भाजपा इसके लिए साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपना रही है। इस चुनाव में भाजपा की कड़ी परीक्षा है, क्योंकि इस चुनाव में सांसद, विधायक, नगरीय निकायों, कैंट बोर्ड के निर्वाचित सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य और ग्राम प्रधान मतदान करेंगे। इनमें से जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य और ग्राम प्रधान के अधिकांश पदों पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ज्यादातर सपा के कार्यकताओं ने जीत हासिल की थी। इस लिहाज से भाजपा के लिए यह चुनाव जीतना आसान नहीं है।
विधानसभा चुनाव की परिस्थितियों का आंकलन करके सपा ने इस चुनाव में अपने ऐसे उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं, जो चुनाव में हर परिस्थिति का मुकाबला कर सकें। मज़ेदार बात यह है कि सपा ने अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतार दिया है, जबकि भाजपा के उम्मीदवारों के नामों पर अभी तक पार्टी ने कोई फैसला नहीं किया है। हालांकि भाजपा विधान परिषद चुनाव जीतने के लिए जुट गई है।
विधान परिषद चुनाव में भाजपा को जिताने के लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार के इशारे पर उत्तर प्रदेश में कई जिलों में सपा कार्यकर्ताओं के ऊपर मुकदमें दर्ज किए गए हैं। यह मुकदमें विधानसभा चुनाव के बाद वाराणसी, बरेली, सोनभद्र और कई अन्य जिलों में ईवीएम के पकड़े जाने के मामले के सामने आने से संबंधित हैं, जिनको योगी आदित्यनाथ की सरकार के इशारे पर सरकारी कर्मचारियों ने दर्ज कराया है। इन मुकदमों में यह दर्शाया गया है कि सपा कार्यकर्ताओं ने सरकारी काम मे बाधा उत्पन्न करने का काम किया है। सपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ राज्य में इस तरह के बहुत से मुकदमों को दर्ज कराया गया है
वाराणसी, हरदोई बलिया और बस्ती से इस तरह के मामले सामने आए हैं, जहां पर सरकारी कर्मचारियों ने सपा कार्यकर्ताओं के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया है। दरअसल भाजपा को सपा कार्यकर्ताओं का डर बहुत ही ज्यादा सता रहा है कि वह भाजपा को विधान परिषद के चुनाव में मनमानी नहीं करने देंगे। इसलिए भाजपा सपा कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ने यानि कमजोर कर डराने के लिए यह सब कर रही है, जिससे सपा के कार्यकर्ताओं में डर बैठ जाए और वह भाजपा की मुखालिफत न करें, जिससे भाजपा विधान परिषद चुनाव मनमाने तरीके से जीत सके।
कार्यकर्ता राजनीतिक पार्टियों की रीढ़ होते हैं और इनके कमजोर होने से राजनीतिक पार्टियां कुछ नहीं कर पाती हैं। इसलिए भाजपा ने सुनियोजित तरीके से सपा कार्यकर्ताओं को डराने के लिए अदर्ब में लेने का काम कर रही है, जिससे सपा कार्यकर्ताओं में डर बैठ जाए और वह मैदान में न आएं तथा भाजपा आसानी से विधान परिषद की अधिकांश सीटें जीत जाए।
यहां यह ज्ञात हो कि ईवीएम के पकड़े जाने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी कार्यकर्ताओं से यह कहा था कि वह मतगणना स्थल पर चुनाव परिणाम आने तक जाएं और मतगणना स्थल से न हटें। यही कारण है कि सपा कार्यकर्ताओं के मतगणना स्थल पर डटे रहने से ही सपा को इतनी ज्यादा सीटों पर जीत हासिल हुई है। इसीलिए भाजपा साम, दाम, दंड – भेद की नीति अपना रही है, जिससे सपा कार्यकर्ता मैदान छोंड़ दें और वह मनमाने तरीके से विधान परिषद चुनाव जीत ले।
सपा विधानसभा चुनाव में सारी परिस्थितियों से अच्छी तरह से वाकिफ हो गई है, इसलिए वह विधान परिषद चुनाव रणनीति बनाकर लड़ रही है। उसने ऐसे जीतने वाले समर्थ लोगों को उम्मीदवार बनाया है, जो भाजपा को हर हाल में पराजित कर सकें और भाजपा का चुनाव में डट कर मुकाबला कर सकें।
विधान परिषद में अभी तक सपा का बहुमत रहा है। उसके पास चुनाव होने वाली 36 में से 33 सीटें थीं। विधानसभा चुनाव के समय इन 33 में से 7 सदस्य सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। सपा ने इन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित करते समय सभी जातियों के लोगों को मौका दिया है। इसके साथ ही सपा ने अपने पुराने विधान परिषद सदस्यों को भी चुनाव में उतारा है। सपा भाजपा की हर चाल पर नजर रखे हुए है।
सपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ बस्ती जिले में मुकदमा दर्ज कराए जाने के विरुद्ध बस्ती के नवनिर्वाचित 3 विधायकों ने जिला प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात कर दर्ज मुकदमों को वापस लेने के लिए कहा है अन्यथा भारी पैमाने पर आंदोलन करने की चेतावनी दी है।
सपा विधान परिषद में अपने बहुमत को बरकरार रखना चाहती है, जिससे राज्य सरकार जनता के हितों के खिलाफ कोई काम न कर सके। जिस प्रकार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सपा को बहुमत मिला था, उससे यह संभव है कि सपा विधान परिषद के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सके और अपने बहुमत को कायम रख सके।