इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने को लेकर हुए हाल के विरोधों ने भारत में सांप्रदायिकता की गहरी होती जड़ों को दर्शाया है. यह कहना है ह्यूमन राइट्स वाच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली का. उन्होंने कहा है कि, “विभाजनकारी राजनीतिक अभियानों से ये दरारें तेजी से चौड़ी हो रही हैं. ये इतनी गहरी हैं कि राज्य में स्कूलों को अस्थायी तौर पर बंद करना पड़ा.”
भाजपा शासित कर्नाटक और केंद्र की भाजपा सरकार में इस प्रकार के मुद्दे तेज़ी से बढ़े हैं. मिनाक्षी गांगुली ने कहा है कि, “सांप्रदायिक राजनीति में लिप्त होने के बजाय, भारतीय सरकारी तंत्र को चाहिए कि धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं शिक्षा के अधिकारों समेत सभी महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान दे.”
अपने एक लेख के माध्यम से गांगुली लिखती हैं, “सरकार द्वारा स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन है. यह कानून व्यक्ति को बगैर किसी दवाब के अपने धार्मिक विश्वासों को प्रकट करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बिना किसी भेदभाव के शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है.”
ज्ञात हो कि कर्नाटक की एक अदालत प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम छात्राओं के स्कूल और क्लास में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध का समर्थन किया है. साथ ही सरकार का यह कहना है कि “यह सार्वजनिक सुरक्षा के लिए जरुरी है.”
ह्यूमन राइट्स वाच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली अपने लेख में कहती हैं, “छात्राओं के परिधानों की पसंद के बारे में चर्चाओं को भारत में महिलाओं और लड़कियों, चाहे वे किसी भी धर्म की हों, को अधिकारों से वंचित करने के एक अन्य तरीके के रूप में देखा जाना चाहिए. धार्मिक परिधानों के उपयोग पर रोक लगाना या फिर महिलाओं और लड़कियों को एक विशेष तरीके से कपड़े पहनने के लिए मजबूर करना, दोनों ही अपने परिधान चुनने के उनके अधिकारों को कमजोर करते हैं.”
उन्होंने कहा है कि, “अनेक लोग जो हिजाब प्रतिबंध का मुखर समर्थन कर रहे हैं, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थक हैं, जिसके कुछ नेताओं ने पहले जींस और स्कर्ट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, या कहा था कि जहां लोग “पारंपरिक मूल्यों” का पालन करते हैं, वहां बलात्कार नहीं होते हैं.”
गांगुली ने कहा है कि, “सांप्रदायिक राजनीति में लिप्त होने के बजाय, भारतीय सरकारी तंत्र को चाहिए कि धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं शिक्षा के अधिकारों समेत सभी महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान दे.”