सैयद ख़लीक अहमद
हरिद्वार | दिसंबर 17 से 20 के बीच हरिद्वार में एक धर्मसंसद आयोजित होती है, और इस धर्मसंसद में तथाकथित साधु-संतों द्वारा एक समुदाय विशेष (मुसलमानों) के नरसंहार का आह्वान किया जाता है, इस पूरे मामले और इस पर हुई कार्रवाई पर कई प्रकार के सवाल खड़े हो रहे हैं लेकिन सबसे पहला प्रश्न तो यह खड़ा होता है कि किसी समुदाय के सामूहिक नरसंहार के खुले आह्वान के बाद भी हरिद्वार पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेकर एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की?
मुसलमानों के सामूहिक नरसंहार के आह्वान की इस घटना के अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आने और कई सेवानिवृत्त अधिकारियों, प्रमुखों सहित लोगों द्वारा बड़े स्तर पर निंदा किये जाने के बाद पुलिस हरकत में आई.
पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल हुए नफरत भरे भाषणों के वीडियो के आधार पर भी स्वयं किसी को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया.
ज्वालापुर कस्बे के निवासी एलएलबी द्वितीय वर्ष के छात्र गुलबहार खान की शिकायत के आधार पर 23 दिसंबर को प्राथमिकी दर्ज की गई थी. हरिद्वार शहर की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत मुसलमान हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या गुलबहार खान ने स्वयं या कुछ राजनीतिक दलों के कहने पर प्राथमिकी दर्ज की है, गुलबहार ने इंडिया टुमारो को बताया कि, “मैंने पुलिस के निर्देश पर प्राथमिकी दर्ज करवाई है.”
गुलबहार खान ने इंडिया टुमारो को बताया कि, “मैंने हरिद्वार में धार्मिक नफरत फैलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए, गंगा नदी पर बने जटवाड़ा पुल पर लगातार तीन दिनों तक विरोध प्रदर्शन किया था. प्रदर्शन में हर दिन मुसलमानों की एक बड़ी भीड़ उमड़ रही थी. देहरादून के कुछ मुस्लिम नेताओं ने भी इन विरोध प्रदर्शनों को संबोधित किया था.”
गुलबहार ने आगे बताया कि, “इसके बाद, मुझ से एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने संपर्क किया, जिन्होंने मुझे धर्म संसद में नफरत भरे भाषण देने वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए कहा.”
गुलबहार ने प्राथमिकी दर्ज करने से संबंधित घटनाओं को क्रमवार बताते हुए कहा, “मैंने हिंदी में शिकायत का मसौदा तैयार किया, जिसमें नौ लोगों के नाम थे, जिन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए, और देश में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान भी किया.”
25 वर्षीय छात्र ने कहा, “मेरी शिकायत दर्ज करने के बाद, मुझे एक कागज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया, और उस कागज़ पर क्या लिखा है यह मुझे पढ़ने नहीं दिया गया.”
गुलबहार ने कहा, “अगली सुबह, मैं अखबारों में यह खबर देखकर दंग रह गया कि पुलिस ने वसीम रिज़वी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी और अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के लिए प्राथमिकी दर्ज की थी.” उन्होंने कहा कि हालांकि मैंने अपनी शिकायत में नौ लोगों के नाम का उल्लेख किया था.
गुलबहार ने कहा कि वह फिर पुलिस के पास गए और उनसे पूछा कि उन्होंने उन सभी लोगों का नाम को क्यों शामिल नहीं किया जिनके नाम उन्होंने शिकायत में उल्लेख किए थे. उसके बाद पुलिस ने फिर दो अन्य अपराधियों के नाम जोड़े और बाद में अन्य सभी के नाम जोड़े. हालांकि इसके लिए गुलबहार को दोबारा उनके नाम लिखित में देने पड़े.
अब यहां यह प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर पुलिस ने गुलबहार को एफआईआर दर्ज करने के लिए क्यों कहा? इंटरनेट पर वीडियो साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद पुलिस ने खुद मामला दर्ज क्यों नहीं किया? जबकि वीडियो के सबूत के आधार पर ही गुलबहार ने पुलिस में शिकायत की थी क्योंकि वह उस भड़काऊ भाषण वाले कार्यक्रम में खुद मौजूद नहीं था.
यदि पुलिस किसी छात्र द्वारा दिए गए वीडियो भाषण के आधार पर शिकायत दर्ज कर सकती है और मामला दर्ज कर सकती है, तो वह खुद भी वीडियो के आधार पर मामला दर्ज कर सकती थी. अगर कोई मुसलमान इस तरह का अपराध करता तो तब भी क्या पुलिस किसी की शिकायत दर्ज करने का इंतजार करती? दिल्ली पुलिस ने मार्च 2020 में कोरोना महामारी को लेकर स्वत संज्ञान लेकर हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित बंगलेवाली मस्जिद के तब्लीगी जमात के मरकज़ और उसके मुखिया मुहम्मद साद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. पुलिस ने इस संबंध में किसी के द्वारा शिकायत दर्ज कराने का इंतजार नहीं किया था.
हरिद्वार ज़िला प्रशासन के सूत्रों से मालूम हुआ है कि राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से कट्टरपंथी हिंदू धर्मगुरुओं के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू करके उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहती थी.
उत्तराखंड में 14 फरवरी से 10 मार्च 2022 के बीच चार अन्य राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. सूत्रों ने कहा कि स्वत: संज्ञान लेने से यह कार्रवाई सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के हितों के खिलाफ जाती. इसलिए, राज्य की प्रतिनिधि पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए एक मुस्लिम को चुना.
आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए के तहत आरोप तय किये गए हैं. धारा 153 ए धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य, शत्रुता, या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने और सामाजिक सद्भाव के विरुद्ध कार्य करने के अपराध से संबंधित है.
पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में कहीं यह उल्लेख नहीं है कि आरोपी व्यक्तियों ने मुसलमानों के नरसंहार की अपील की थी. इससे आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मामला हल्का हो जाता है. आखिर पुलिस ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मामले को हल्का बनाने का प्रयास क्यों किया जबकि आरोपी व्यक्तियों ने भारत में मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान किया था?
गुलबहार का कहना है कि उन्होंने अपनी शिकायत में कहा था कि आरोपी व्यक्तियों ने मुसलमानों के नरसंहार की अपील की थी.
पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि, “वसीम रिज़वी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी और अन्य ने अपने भाषणों में एक पूर्व नियोजित साज़िश के तहत इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद (स०अ०) के खिलाफ भड़काऊ और आपत्तिजनक बयान दिए. इससे शिकायतकर्ता और इस्लाम के अन्य अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है. और इस कार्यक्रम का फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सीधा प्रसारण भी किया गया था. इसलिए, आपसे अनुरोध है कि पैगंबर मुहम्मद और इस्लाम धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक भाषण देने वालों और इसे सोशल मीडिया पर लाइव करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाए.”
“धर्म संसद” में मुसलमानों के सामूहिक नरसंहार के आह्वान के भाषणों को लेकर एक और प्राथमिकी 2 जनवरी को ज्वालापुर निवासी एक्टिविस्ट नदीम अली द्वारा दर्ज करवाई गई थी. लगाए गए आरोप आईपीसी की धारा 153 ए और 298 के तहत हैं. धारा 298 किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द आदि का उच्चारण करने से संबंधित है. इस प्राथमिकी में भी आरोपी व्यक्तियों द्वारा मुसलमानों के नरसंहार की अपील का ज़िक्र किया गया है.
गिरफ्तारी में की गई देरी
पहली एफआईआर 23 दिसंबर, 2021 को दर्ज करवाई गई थी, इसके 22 दिन बाद वसीम रिज़वी को 14 जनवरी, 2022 को गिरफ्तार किया गया था. रिज़वी के खिलाफ हरिद्वार जिले में दो मामले दर्ज थे. एक मामला हरिद्वार प्रेस क्लब में उनके आपत्तिजनक बयानों से संबंधित है और दूसरा हरिद्वार “धर्म संसद” में उनके भाषण से संबंधित है.
इसी तरह, यति नरसिंहानंद को 15 जनवरी को तीन मामलों के संबंध में गिरफ्तार किया गया था- एक “धर्म संसद” को लेकर, दूसरा इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ हरिद्वार प्रेस क्लब में आपत्तिजकनक टिप्पणी पर एक पत्रकार दिलशाद कुरैशी द्वारा मामला दर्ज करवाया गया था. तीसरा मामला एक महिला रुचिका ने मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी किये जाने पर दर्ज करवाया था.
हालांकि, ये गिरफ्तारियां सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तराखंड राज्य सरकार को एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी करने के बाद की गईं, जिसमें हरिद्वार में नफरत फैलाने वाले भाषण और दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में पुलिस की निष्क्रियता का आरोप लगाया गया था. बीबीसी के पूर्व पत्रकार क़ुर्बान अली ने जनहित याचिका दायर की थी.