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Friday, April 19, 2024
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ED के ज्वाइंट डायरेक्टर ने लिया VRS, BJP से चुनाव लड़ने की चर्चा के बीच उनकी जांच पर उठते सवाल

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

लखनऊ | ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह ने सरकारी सेवा से वीआरएस ले लिया है और उनके भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है। भाजपा के टिकट पर राजेश्वर सिंह के चुनाव लड़ने से उनकी द्वारा की गई जांचों पर सवालिया निशान लग गया है?

ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह ने अपनी सरकारी नौकरी से वीआरएस ले लिया है और उनके अब भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है। राजेश्वर सिंह मूलतः यूपी के सुल्तानपुर जिले के रहने वाले हैं। यह अभी तक ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर रहे हैं। इन्होंने सरकारी नौकरी से वीआरएस ले लिया है और अब राजनीति करने का फैसला किया है। यूपी विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही इनके वीआरएस की मंजूरी हो गई है।

8 जनवरी 2022 को जैसे ही यूपी समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने घोषणा की, वैसे ही शाम तक राजेश्वर सिंह के ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर के पद से वीआरएस लेने और भाजपा के टिकट पर गाजियाबाद के साहिबाबाद क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ने का समाचार सामने आया।इसे संयोग कहें या पूर्व नियोजित योजना कि एक तरफ विधानसभा चुनाव कराए जाने की घोषणा होती है और इसी दिन तुरंत ही शाम तक राजेश्वर सिंह के वीआरएस मंजूर होने और भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने का समाचार सामने आ जाता है।

राजेश्वर सिंह द्वारा वीआरएस लेकर विधानसभा चुनाव लड़ना इतना महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि इसके पहले भी कई अधिकारी सरकारी नौकरी छोंड़कर राजनीति में उतर कर चुनाव लड़ चुके हैं। राजेश्वर सिंह द्वारा ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर के पद से वीआरएस लेकर भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ना बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर रहते हुए कई ऐसी जांच किए हैं, जो भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं से संबंधित हैं।ऐसे में भाजपा के टिकट पर उनका विधानसभा चुनाव लड़ना उन्हें संदेह के घेरे में रखता है।

ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह ने देश के कई महत्वपूर्ण मामलों की जांचें की हैं।जिन महत्वपूर्ण जांचों को इन्होंने किया है, उनमें टूजी घोटाला, जगन रेड्डी केस, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर डील केस, गोमती रिवर फ्रंट घोटाला, स्मारक घोटाला, खनन घोटाला व बाईक बोट घोटाला प्रमुख हैं।

इसके अलावाराजेश्वर सिंह ने सपा नेता और पूर्व मंत्री एवं रामपुर के सांसद मोहम्मद आजम खां से जौहर यूनिवर्सिटी के लिए निर्माण के लिए हुई फंडिंग, डोनेशन, सम्पत्तियों की खरीद फरोख्त को लेकर भी जांच की है। राजेश्वर सिंह ने आजम खां के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज कर भी जांच की है। इन जांचों के जरिए राजेश्वर सिंह ने भाजपा के इशारे पर कांग्रेस और सपा को घेरने या बदनाम करने का काम किया है।

राजेश्वर सिंह ने ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर के पद से वीआरएस लेकर राजनीति करने का जो फैसला किया है, वह फैसला उनका है। उन्हें भी अगर राजनीति करने का शौक है, तो वह बेशक तौर पर राजनीति कर सकते हैं। लेकिन अगर वह भाजपा के टिकट पर यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, तो यह निश्चित है कि ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर के रूप में काम करते हुए भी उनकी निष्ठा और आस्था भाजपा के प्रति थी और उन्होंने ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर के रूप में जो भी काम/जांच किया है।

उन्होंने हर जांच में भाजपा के हितों का ख्याल रखा है और भाजपा को खुश करने का काम किया है। ऐसे में उनके द्वारा ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर के रूप में की गई जांचों पर सवालिया निशान लगना लाजिमी है। इसका बेहतर जवाब राजेश्वर सिंह ही दे सकते हैं, लेकिन उनके भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा और समाचार से उनकी ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर की भूमिका पर उंगली उठना लाजिमी है।

राजेश्वर सिंह की पत्नी लक्ष्मी सिंह आईपीएस अधिकारी हैं और वह यूपी में ही तैनात हैं। वह यूपी में लखनऊ रेंज की आईजी हैं।योगी आदित्यनाथ के विश्वासपात्रों में हैं। लखीमपुर खीरी कांड के समय उनको हटाए जाने की बात उठी थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने उनको उनके पद पर बरकरार रखा था। लक्ष्मी सिंह के आईजी पुलिस रहते हुए राजेश्वर सिंह अगर विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, तो पुलिस की निष्पक्षता संदेह के घेरे में रहेगी।

यूपी में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही कानपुर में पुलिस कमिश्नर के पद पर बैठे असीम अरुण ने पुलिस सेवा से वीआरएस ले लिया हैऔर भाजपा में शामिल हो गए हैं। असीम अरुण अब कन्नौज से भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।

असीम अरुण मूल रूप से कन्नौज के रहने वाले हैं। इनके पिता श्रीराम अरुण यूपी के डीजीपी रहे हैं। असीम अरुण 1994 बैच के आईपीएस अफसर हैं। बताया जाता है कि असीम अरुण की विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पूर्व यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात हुई और योगी आदित्यनाथ ने उन्हें राजनीति में आने एवं भाजपा में शामिल होकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऑफर दिया। असीम अरुण ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया और वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिया। विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही उनका वीआरएस मंजूर हो गया और उन्होंने कन्नौज से भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।

असीम अरुण को एक ईमानदार अफसर के रूप में जाना जाता रहा है। लेकिन उनके भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा से यह साबित हो गया है कि वह पुलिस कमिश्नर के रूप में नहीं बल्कि भाजपा के एजेंट के रूप में काम करते रहे हैं।

यही नहीं असीम अरुण के भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा से यह साबित होता है कि वह भाजपा के प्रति निष्ठावान रहे हैं और भाजपा के प्रति उनकी आस्था है। वह केवल ईमानदारी का ढोंग करते रहे हैं। अगर वह वाकई में ईमानदार थे, तो उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ना था और जनता उनका समर्थन करती।

असीम अरुण के वीआरएस लेने और भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा जरूर अचानक हुई है, लेकिन इसका तानाबाना बहुत पहले से ही बुना जा रहा था। अचानक चुनाव के वक्त वीआरएस लेना और भाजपा के टिकट पर कन्नौज से विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करना यकायक नहीं हो सकता है।

असीम अरुण भाजपा समर्थक पुलिस अफसर रहे हैं, इसका खुलासा उनके वीआरएस लेने और विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा से हो गया है। असीम अरुण जैसे पुलिस अफसर को वीआरएस दिलाकर एवं पार्टी में शामिल कर विधानसभा चुनाव लड़ाने का फैसला कर भाजपा अफसरशाही और दलितों को यह संदेश देने का प्रयास कर रही है कि अफसरशाही और दलित वर्ग में भाजपा को पसंद करता है और भाजपा उनकी हितैषी है।

दरअसल इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि बसपा सुप्रीमो मायावती और भाजपा की अंदरूनी मिलीभगत से दलित वर्ग के मतदाता सपा के साथ खड़े होते यानी सपा के साथ जाते दिख रहे हैं। इससे सपा को मजबूती मिलती दिख रही है, इससे भाजपा बहुत ही परेशान है। भाजपा इसी की काट के लिए यह सारा दांव- पेंच चल रही है। भाजपा इस प्रकार से दलित वर्ग के वोटरों को सपा के साथ जाने से रोकने का प्रयास कर रही है। इसमें उसे कितनी सफलता प्राप्त होती है, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

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