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Thursday, April 25, 2024
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“बुल्ली बाई” ऐप मामले को सुलझा कर मुम्बई पुलिस ने दिल्ली पुलिस को पीछे छोड़ा

सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी के अपराध में शामिल चार आरोपियों को गिरफ्तार करके मुम्बई पुलिस ने “बुल्ली बाई” ऐप मामले का काफ़ी हद तक पर्दाफाश कर ही दिया है. इसके विपरीत दिल्ली, नोएडा और कोलकाता पुलिस “सुल्ली डील” ऐप मामले की जांच करने में बुरी तरह विफल रही है, हालांकि बुल्ली बाई एप्प के विरुद्ध मामला इन राज्यों में छह महीने पहले ही दर्ज करवा दिया गया था.

मुस्लिम महिलाओं के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाले इस अपराध को सुलझाकर, मुंबई पुलिस ने साबित कर दिया है कि वे अपने समकक्ष दिल्ली, यूपी और पश्चिम बंगाल पुलिस की तुलना में ज़्यादा पेशेवर है. इससे यह भी पता चलता है कि मुंबई पुलिस किसी मामले की जांच के सम्बंध में सत्तारूढ़ पार्टियों से अप्रभावित रहती है.

अगर मुंबई पुलिस डिजिटल और फोरेंसिक जांच का उपयोग करके किसी मामले को सुलझा सकती है तो उसी मामले में दिल्ली पुलिस और यूपी और पश्चिम बंगाल की जांच एजेंसियां को समान जांच तकनीकों का उपयोग करके “सुल्ली डील” ऐप मामले के पीछे के रहस्य को सुलझाने से कौन रोक रहा है?  इससे पता चलता है कि “सुल्ली डील” मामले को लेकर दिल्ली पुलिस कितनी कम गंभीर है.

साइबर अपराध की दोनों घटनाओं में आरोपियों ने गिटहब प्लेटफॉर्म पर बने ऐप का इस्तेमाल करते हुए मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों का इस्तेमाल कर उनकी ऑनलाइन नीलामी की.  दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसने गिटहब पर इसे होस्ट करने वाले ऐप मालिकों की पहचान साझा करने के लिए अमेरिका में गिटहब को लिखा था, लेकिन उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था. दिल्ली पुलिस ने कहा कि जब तक गिटहब ऐप उपयोगकर्ताओं की पहचान उजागर नहीं करता तब तक आरोपी व्यक्तियों तक पहुंचना संभव नहीं है. यह असल में अपनी विफलता और अयोग्यता को छिपाने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा बनाया गया एक कमज़ोर बहाना मालूम होता है क्योंकि उसी मामले में मुंबई पुलिस ने न सिर्फ गिटहब की मदद के बिना मामले को सुलझाया बल्कि आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया.

दोनों ही मामलों में आरोपियों ने ऐप के माध्यम से दर्जनों मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी और बिक्री करने की कोशिश करके महिलाओं का ऑनलाइन उत्पीड़न किया.  दोनों ही मामलों में अभियुक्तों ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से मुस्लिम महिलाओं के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया, इस घटना ने विक्टिम महिलाओं को गहरे मानसिक सदमे में पहुंचा दिया.

“बुली बाई” ऐप मामले में कौन हैं आरोपी?

पुलिस अब तक इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है.

1. आरोपियों में से एक है नीरज बिश्नोई, जो असम के जोरहाट का रहने वाला है. वह भोपाल, मध्य प्रदेश में वेल्लोर प्रौद्योगिकी संस्थान में द्वितीय वर्ष का छात्र है.  पुलिस का दावा है कि वह मुख्य साज़िशकर्ता है. और बिश्नोई ही हैं जिसने गिटहब प्लेटफॉर्म पर “बुल्ली बाई” ऐप बनाया है. वह “बुल्ली बाई” का प्राथमिक ट्विटर अकाउंट होल्डर भी है, उसे 6 जनवरी को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की इंटेलिजेंस फ्यूज़न एंड स्ट्रेटेजिक ऑपरेशंस (IFSO) यूनिट ने गिरफ्तार किया था.

2. मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तार दूसरी आरोपी 19 वर्षीय श्वेता सिंह है.  उसे इस मामले का दूसरे नम्बर का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है. पुलिस की अब तक की जांच से पता चला है कि श्वेता के पिता की मृत्यु हो चुकी है और परिवार के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है इसलिए उसने आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपराध को अंजाम दिया. लेकिन इस बात की गहराई से जांच करने की ज़रूरत है कि एक कम उम्र की नौजवान लड़की को पैसे देकर ये अपराध अंजाम देने के पीछे कौन लोग हैं. क्या “सुल्ली” और “बुल्ली” जैसे मुस्लिम विरोधी अपराधों के पीछे  कुछ कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े लोग हैं? जैसा कि गुजरात और अन्य जगहों पर सीरियल बम धमाकों के मामले में हुआ था, जिसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और मुंबई के दक्षिणपंथी नेता और भारतीय सेना के एक अधिकारी शामिल पाए गए थे.

श्वेता मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की रहने वाली हैं, लेकिन उनका परिवार उत्तराखंड के उधम सिंह नगर में बसा हुआ है. उसके पिता सौर ऊर्जा उत्पादन से संबंधित उपकरणों के निर्माण करने वाली एक कंपनी में काम करते थे.

श्वेता के पिता की कोविड 19  में मौत हो गई थी. उसकी दो बहनें और एक छोटा भाई है. उसने 2011 में अपनी मां को भी कैंसर से खो दिया था. मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि उसके परिवार को उत्तराखंड में कोविड अनाथों के लिए वात्सल्य योजना से  3,000 रुपये प्रति माह मिलते हैं. पुलिस के मुताबिक निर्माण इकाई , जहां उसके पिता काम करते थे, वहां से श्वेता के परिवार को 10,000 रुपये प्रति माह मिलते है.

हालांकि, पुलिस द्वारा यह ज़रूर पता लगाना चाहिए कि यह दस हज़ार रुपये प्रति माह श्वेता के परिवार को उनके दिवंगत पिता के नियोक्ता से मिलते हैं या हिंदुत्ववादी कट्टरपंथी समूह  मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए श्वेता का इस्तेमाल करने के लिए इस रकम का भुगतान कर रहे थे?

पुलिस जांचकर्ताओं ने कहा कि श्वेता लंबे अरसे से बहुत आपत्तिजनक मुस्लिम विरोधी कंटेट सोशल मीडिया पर पोस्ट किया करती थी. और सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी. श्वेता ने अपने पिता की मृत्यु के बाद अपनी सोशल मीडिया की इन मुस्लिम विरोधी गतिविधियों को और तेज़ कर दिया था, उसने अपने पिता की पहचान का उपयोग करके एक सिम कार्ड भी लिया था.

पुलिस ने शुरुआती जांच में पाया कि नेपाल में अपने एक दोस्त के निर्देश पर फ़र्ज़ी अकाउंट बनाया था. इससे पता चलता है कि एक अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध रैकेट ने भारत में मुसलमानो और मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ इस अपराध को अंजाम दिया.

श्वेता का नेपाल कनेक्शन

बताया जाता है कि श्वेता ने नेपाल स्थित एक ट्विटर यूज़र ‘गियौ’ से मिले निर्देश पर इस अपराध में साथ दिया था. श्वेता की गिरफ्तारी के बाद  @giyu44 नामक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया कि “आपने गलत व्यक्ति को गिरफ्तार किया है, मुंबई पुलिस. मैं #BulliBaiApp का निर्माता हूं. जिन दो बेगुनाहों को तुमने गिरफ्तार किया, उनका इससेसे कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें जल्द से जल्द रिहा करो.”

हालाँकि कथित रूप से नेपाल में रहने वाले व्यक्ति का यह ट्वीट असली दोषियों से ध्यान हटाने की चाल भी हो सकता है. पुलिस को इसका पता लगाना चाहिये. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो स्पष्ट हो ही गई है कि मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाकर किये गए इस अपराध का अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन है, और पुलिस को इसके पीछे मौजूद मुख्य दोषियों का पता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए.

इसके अलावा बुल्ली बाई मामले में एक और गिरफ्तारी विशाल कुमार झा की हुई.

विशाल कुमार झा को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया. वह बेंगलुरु के एक प्रसिद्ध कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग द्वितीय वर्ष का छात्र है. उसके परिवार के सदस्यों ने मुंबई पुलिस को बताया कि वह भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आईईएस) में शामिल होना चाहता है. उसके पिता द्वितीय श्रेणी के रेलवे अधिकारी हैं.

पुलिस के अनुसार, झा कुछ लोगों के निर्देशों का पालन करता था और बुल्लीबाई ऐप से मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक सामग्री पोस्ट किया करता था. उन्होंने कई ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल किया. वह अन्य आरोपियों से व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के ज़रिए संपर्क में था. उनका गिटहब पर एक अकाउंट भी था जहां उन्होंने बुल्ली बाई ऐप को बनाया.

पुलिस ने कहा कि झा छह ट्विटर अकाउंट, दो इंस्टाग्राम अकाउंट और सात जीमेल अकाउंट संचालित किया करता था. झा का एक Youtube अकाउंट भी था जिसका इस्तेमाल उसने एक बार बाबरी मस्जिद विध्वंस का वीडियो अपलोड करने के लिए किया था. ये सारी बातें उसकी कट्टरपंथी मानसिकता की ओर इशारा करती हैं.  अगर गहराई से जांच की जाए तो पुलिस मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ नफरत फैलाने वाले अभियान के पीछे मौजूद लोगों तक आसानी पहुंच सकती है.

4. इसी मामले में एक ओर साज़िशकर्ता उत्तराखंड के मयंक रावत (21)की भी गिरफ्तारी हुई है. मयंक के पिता प्रदीप रावत भारतीय सेना में सूबेदार हैं.  मयंक दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से रसायन विज्ञान की पढ़ाई कर रहा है. उसने पुलिस को बताया कि वह इस अपराध को अंजाम देने वाले ग्रुप में शामिल हुआ और 31 दिसंबर को अपने ट्विटर हैंडल पर एक लिंक प्राप्त करने के बाद मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें साझा की.

असल मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए “बुली बाई” मामले में सिख कनेक्शन होने की बात फैलाई गई

पुलिस की जांच से पता चला है कि बुल्ली बाई ऐप से तस्वीरें साझा करने के लिए लिए सिख नामों वाले ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल किया गया, ऐसा असल आरोपियों की पहचान के बारे में गुमराह करने के लिए किया गया था. आरोपियों द्वारा इस्तेमाल किए गए सिख नामों वाले ट्विटर हैंडल में @Sikh_khalsa11, @jatkhalsa, @jatkhalsa7, आदि शामिल हैं. मुंबई पुलिस ने एप्प के बारे जो जानकारी दी उसके अनुसार, बुल्ली बाई खालसा सिख फोर्स द्वारा बनाया गया एक कम्युनिटी ड्रिवन ओपन-सोर्स एप है.  ऐप मुंबई पुलिस अब इस बात की जांच कर रही है कि आरोपी ने ट्विटर हैंडल के स्टेटस पर उपनामों ​​का इस्तेमाल क्यों किया.

मुंबई पुलिस के पास दर्ज की गई “बुली बाई” एफआईआर क्या कहती है?

मुंबई पुलिस में दर्ज एक प्राथमिकी के अनुसार, आरोपियों ने सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म गिटहब पर होस्ट किए गए “बुल्ली बाई” ऐप पर ऑनलाइन “नीलामी” के लिए 100 से अधिक प्रबुद्ध मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करके अपलोड किया था. मुंबई पुलिस ने ऐप के अज्ञात डेवलपर्स और इसे प्रोमोट करने वाले ट्विटर हैंडल के खिलाफ भी मामले दर्ज किए हैं. एफआईआर दर्ज होने के कुछ ही दिनों बाद मुंबई पुलिस ने इस मामले का पर्दाफाश कर दिया.

दिल्ली, नोएडा और कोलकाता पुलिस के पास दर्ज “सुल्ली डील्स” ऐप मामले में कोई प्रगति नहीं हुई

“बुल्ली बाई” मामले की तुलना यदि दिल्ली, यूपी और कोलकाता पुलिस से करें तो मालूम होता है कि “सुल्ली डील्स” मामले में मुस्लिम महिला पीड़ितों ने जुलाई 2021 में दिल्ली, नोएडा और कोलकाता में “सुली डील्स” ऐप पर मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी के खिलाफ के बारे में  प्राथमिकी दर्ज करवाई थी, सुल्ली डील्स को भी  संयुक्त राज्य में स्थित गिटहब पर होस्ट किया गया था.

हालांकि, तीनों राज्यों की पुलिस ”सुल्ली डील्स” एप मामले में कोई प्रगति नहीं कर पाई है. वे मामले में शामिल किसी भी आरोपी को गिरफ्तार करने में विफल रही.  यहां तक ​​कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस भी मामले को सुलझाने में पूरी तरह विफल साबित हुई. गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस को देश के सबसे पेशेवर पुलिस बलों में से एक माना जाता है.

दिल्ली पुलिस से संपर्क करने पर दिल्ली पुलिस ने मीडियाकर्मियों से कहा कि उन्होंने एप्लिकेशन बनाने वाले लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए गिटहब से संपर्क किया था,लेकिन यूएस-आधारित कंपनी ने इस संबंध में जानकारी प्रदान करने से इनकार कर दिया. एक वकील के अनुसार, दिल्ली पुलिस को आपराधिक मामलों में “म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस” के आधार पर भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक संधि के तहत कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से गिटहब से विवरण मांगना चाहिए था. हालाँकि, दिल्ली पुलिस ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत GitHub से संपर्क किया था, जिसे GitHub ने अस्वीकार कर दिया था.

लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर मुंबई पुलिस ऐसे मामलों को डिजिटल रूप से सुलझा सकती है और “बुल्ली बाई” ऐप मामले में शामिल आरोपियों को गिरफ्तार कर सकती है, तो दिल्ली पुलिस “सुली डील” मामले को क्यों नहीं सुलझा सकती और आरोपियों को गिरफ्तार क्यों नहीं कर सकती? नोएडा और कोलकाता पुलिस भी “सुल्ली डील” ऐप मामले को सुलझा सकती थी, जैसा कि मुंबई पुलिस ने “बुल्ली बाई” मामले में किया था. दिल्ली, नोएडा और कोलकाता पुलिस की नाकामी इस बात की ओर इशारा देती हैं कि इस मामले को उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया. ऐसा प्रतीत होता है मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी में शामिल आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करना इन राज्यों की पुलिस की प्राथमिकता में है ही नहीं.

पुलिस “सुल्ली डील” मामले को हेट क्राइम के रूप में दर्ज नहीं किया

“सुल्ली डील्स” मामले में नोएडा पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत “एक महिला का अपमान करने” और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की 66 और 67 के तहत एक महिला कमर्शियल पायलट की शिकायत के आधार पर अश्लील सामग्री स्थानांतरित करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की, वहीं दिल्ली पुलिस ने यौन उत्पीड़न को लेकर आईपीसी की धारा 354-ए के तहत प्राथमिकी दर्ज की.

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस को सुल्ली डील्स मामले में धारा 153-ए, 295-ए और 298 भी जोड़नी चाहिए थी ताकि मामले को एक समुदाय विशेष  की महिलाओं के खिलाफ घृणा अपराध के रूप में वर्गीकृत किया जा सके.

लेकिन पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ हेट क्राइम के आरोप लगाने से परहेज़ किया, भले ही पूरा अपराध मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ नफरत पर आधारित था. क्या इसका यह अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि पुलिस अभी तक आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी से बचना चाह रही है? एक सवाल यह भी उठता है कि क्या पुलिस मामले की जांच में भी इतनी ही सुस्त होती अगर पीड़ित महिलाएं हिन्दू होतीं?

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