नई दिल्ली | भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना ने शनिवार को एक सभा में बोलते हुए कहा कि विवादों को सुलझाने के लिए अदालतों में जाने के बजाय मध्यस्थता एवं सुलह जैसे वैकल्पिक समाधान का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि अदालतों में जाना अंतिम उपाय के रूप में होना चाहिए.
उन्होंने कहा, “यह याद रखना उचित होगा कि मध्यस्थता की विफलता के विनाशकारी परिणाम हुए हैं.”
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने विवादित पक्षों को मुकदमे को अंतिम उपाय के रूप में मानने और मध्यस्थता और सुलह जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान के के बाद ही अदालतों का रुख करना चाहिए.
यह बातें मुख्य न्यायाधीश ने हैदराबाद इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (एचआईसीसी) में द इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन एंड मध्यस्थता केंद्र, हैदराबाद के कर्टन रेज़र एंड स्टेकहोल्डर्स कॉन्क्लेव में बोलते हुए कहीं.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संघर्ष के कई कारण हो सकते हैं. गलतफहमी, अहंकार, विश्वास, लालच और अन्य छोटे-छोटे विवाद के कारण हो सकते हैं.
उन्होंने आश्वासन दिया कि एक दूसरे को समझने और सही दृष्टिकोण रखने के कुछ प्रयासों से बड़े संघर्षों को भी सुलझाया जा सकता है.
बार एंड बेंच के अनुसार, उन्होंने कहा कि, “सही दृष्टिकोण से मेरा मतलब है कि हमें अपने अहंकार, भावनाओं, अधीरता को छोड़ देना चाहिए और व्यावहारिकता को अपनाना चाहिए. क्योंकि एक बार जब ये विवाद अदालत में प्रवेश कर जाते हैं, तो अभ्यास और प्रक्रिया में बहुत कुछ खो जाता है.”
CJI ने मुकदमें में मध्यस्थता और इसके कुछ लाभों की निशानदही की जो विवाद समाधान के पसंदीदा तरीके हैं और इसे महत्वपूर्ण बताया.
उन्होंने कहा कि इन कारणों में कम देरी, कम लागत, प्रक्रिया में पार्टियों की अधिक भागीदारी, अधिक पार्टी पसंद, अधिक नियंत्रण और पार्टियों के लिए अधिक आरामदायक वातावरण शामिल हैं.