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Wednesday, April 24, 2024
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दिल्ली: कोर्ट ने कुतुब मीनार परिसर में मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को खारिज किया

सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को दायर की गई एक याचिका को खारिज कर दिया जिसमें यह दावा किया गया था कि कुतुब मीनार परिसर के भीतर कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद का निर्माण जैन और हिंदू मंदिरों के मलबे पर किया गया था, और उन्हें इसके अंदर मूर्तियों को रखने और पूजा करने का अधिकार दिया जाए.

अदालत ने तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव द्वारा दायर की गई याचिका पर फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता की तरफ से संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आदि को पक्ष बनाया गया था.

इस दावे का विरोध दिल्ली के एक गैर सरकारी संगठन लीगल एक्शन फॉर जस्टिस ने किया था. इसके सचिव एडवोकेट अनवर सिद्दीकी हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता मीर अख्तर हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट के वकील फुजैल अहमद अयूबी की अगुवाई में ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व किया.

मस्जिद पर दावा करने वाली याचिका दिसंबर 2020 में अदालत में दायर की गई थी.

हिंदू और जैन पक्षों के दावों का विरोध करते हुए, ट्रस्ट ने मस्जिद के पक्ष में यह तथ्य प्रस्तुत किया कि याचिका का कोई कानूनी आधार नहीं है.

ट्रस्ट ने मांग की कि याचिका को खारिज कर दिया जाए, क्योंकि यह याचिका प्राचीन स्मारक अधिनियम 1904 और 1958 की धारा 39 और पूजा स्थल अधिनियम,1991 का सीधे तौर पर उल्लंघन करता है.

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मुहम्मद गौरी की सेना ने कुतुब मीनार परिसर के भीतर जैन और हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया था, और उनके मलबे पर कुतुब मीनार के अलावा एक मस्जिद भी बनाई गई थी.

याचिकाकर्ताओं ने एक ट्रस्ट बनाने की अनुमति देने और मस्जिद के अंदर मूर्तियों रखकर वहां पूजा करने का अधिकार देने की मांग की.

याचिकाकर्ताओं के दावों को चुनौती देते हुए मुस्लिम ट्रस्ट ने सबूतों के साथ एक लंबा जवाब पेश किया.

मुस्लिम पक्ष ने कुतुब मीनार के पक्ष में यह तथ्य प्रस्तुत किया कि 16 जनवरी, 1914 को भारत सरकार द्वारा एक गजट अधिसूचना के माध्यम से कुतुब मीनार को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था.

इस अधिसूचना में घोषित किया गया है कि अपने अस्तित्व के पिछले 700-800 वर्षों में मस्जिद सहित इस परिसर में मुसलमानों के अलावा किसी अन्य धर्म के अनुयायियों द्वारा कभी भी कोई पूजा नहीं की गई थी.

कुतुब मीनार और कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने वाली गजट अधिसूचना पर मौजूदा कानून के तहत तीन साल के भीतर आपत्ति दर्ज की जानी थी परंतु न तो किसी संगठन और न ही किसी व्यक्ति कोई आपत्ति दर्ज करवाई थी.

ट्रस्ट के अधिवक्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा बिंदु यह था कि 1914 की गजट अधिसूचना में परिसर के अंदर किसी धार्मिक स्थान या मूर्तियों की उपस्थिति का उल्लेख नहीं था.

ट्रस्ट ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने कुतुब मीनार और कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने वाली राजपत्र अधिसूचना के 104 साल बाद परिसर के अंदर एक ट्रस्ट और पूजा के अधिकार को पंजीकृत करने की अनुमति के लिए अदालत का रुख किया है. अतः याचिकाकर्ताओं के पास कोई कानूनी आधार नहीं है.

ट्रस्ट ने अन्य तथ्य यह प्रस्तुत किया कि 1191 से पहले जब कुतुब मीनार और कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद का निर्माण किया गया था और 1191 के बाद, परिसर के अंदर किसी भी मंदिर का कोई सबूत नहीं है.

ट्रस्ट ने बताया कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधान कुतुब मीनार और उसके अंदर स्थित मस्जिद जैसे मामलों में किसी भी कानूनी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देते हैं.

ट्रस्ट ने कहा कि, 1991 का अधिनियम 15 अगस्त, 1947 के समय मौजूद धार्मिक स्थलों को उनकी यथास्थिति प्रदान करता है और उनमें किसी भी बदलाव की अनुमति नहीं देता है. चूंकि कुतुब मीनार को 1904 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, इसलिए 1958 के अधिनियम के प्रावधान इसपर लागू नहीं होते हैं. ट्रस्ट ने तर्क दिया कि इस मामले में केवल पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत प्रावधान लागू होंगे जोकि याचिकाकर्ता द्वारा मांग की गई किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं देते हैं.

चौथा, ट्रस्ट ने तर्क दिया कि याचिका ने ‘स्वीकृति के सिद्धांत’ और 1963 के सीमा अधिनियम का उल्लंघन किया है.

इन तर्कों के आधार पर ट्रस्ट के अध्यक्ष मोहम्मद असद हयात और इसके सचिव एडवोकेट अनवर सिद्दीकी ने भी केंद्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को एक ज्ञापन सौंपकर याचिकाकर्ता के दावों को खारिज करने की मांग की थी.

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