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Thursday, March 28, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश की गलत व्याख्या करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट से नाराज़गी जताई

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों के विरुद्ध चल रहे लंबित मामलों की सुनवाई करने के लिए अदालतों के गठन में अपने आदेश की गलत व्याख्या करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी सख्त नाराज़गी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों के विरुद्ध चल रहे लंबित मामलों की सुनवाई में देरी होने के कारण पूर्व समय में नई अदालतों को गठित करने का एक आदेश दिया था। इस आदेश के मुताबिक विशेष अदालतों को गठित किया जाना था।

यूपी के मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विशेष अदालतों के गठन में सर्वोच्च अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं किया बल्कि सर्वोच्च अदालत के आदेश की गलत व्याख्या की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माननीयों के लंबित मामलों की सुनवाई के लिए एम पी-एमएलए कोर्ट के रूप में विशेष अदालतों का गठन तो कर दिया, लेकिन मजिस्ट्रेट स्तर की अदालतों को नहीं गठित किया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिए गए आदेश में विशेष अदालतों के गठन के साथ मजिस्ट्रेट स्तर की अदालतों के गठन का भी आदेश दिया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करने का मामला तब सामने आया, जब यूपी के सपा नेता आजम खां ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा गठित विशेष अदालतों की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। आज़म खां ने विशेष अदालतों के गठन की अधिसूचना को यह चुनौती सुप्रीम कोर्ट में इसलिए दिया, क्योंकि आजम खां के विरुद्ध मजिस्ट्रेट द्वारा सुने जाने वाले मुकदमें को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की विशेष अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट में आज़म खां की याचिका पर 24 नवम्बर 2021 को सुनवाई हुई। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना की पीठ में हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट को खूब खरी- खोटी सुनाया। सर्वोच्च अदालत की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी नाराज़गी जताई। चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने कहा कि, “हमारे आदेश की गलत व्याख्या की गई। आपने विशेष अदालतों के गठन के नाम पर सिर्फ सत्र न्यायाधीश की अदालतों का गठन किया, जबकि हमने सत्र न्यायाधीश के साथ-साथ ज़रूरत पड़ने पर मजिस्ट्रेट स्तर पर भी विशेष अदालतें गठित करने का भी आदेश दिया था। ऐसे तो वर्षों लग जाएंगे माननीयों के विरुद्ध मामलों की सुनवाई पूरी होने में। क्या हमारा यही उद्देश्य था ?”

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील ने जब अपना पक्ष रखा, तो उसके पक्ष को सुनकर सर्वोच्च अदालत ने अपनी कड़ी नाराजगी जताई। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील ने पीठ से कहा कि, “यूपी में मौजूदा व पूर्व सांसदों एवं विधायकों के खिलाफ करीब 13000 मामले लंबित हैं। इनकी सुनवाई के लिए 63 विशेष अदालतें गठित की गईं हैं। सभी सत्र न्यायालय के स्तर पर हैं।” सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा ऐसा क्यों? इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील ने जवाब दिया कि, ऐसा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील की इस बात को सुनकर सर्वोच्च अदालत की पीठ बहुत नाराज़ हुई और पीठ ने कहा कि, “हमें हमारा आदेश न बताएं। ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि सिर्फ सत्र न्यायाधीशों की विशेष अदालतें बनाई जाएं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में स्पष्ट था कि अगर ज़रूरत पड़े तो मजिस्ट्रेट स्तर की विशेष अदालतों का गठन किया जाए।”

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने इस मामले की सुनवाई के समय केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से पूछा, क्या आप दोषी ठहराए जाने वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने के इच्छुक हैं?इस पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि, वह सरकार का पक्ष पूँछकर बताएंगे।

इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में पीठ के समक्ष पेश हुए न्याय मित्र विजय हंसारिया ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सांसदों और विधायकों के विरुद्ध मामलों की सुनवाई के लिए एक मजिस्ट्रेट को विशेष अदालत की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने आदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट के गलत व्याख्या करने के प्रकरण के सामने आने से उसको खरी-खोटी सुनाने और नाराज़गी जताने से इलाहाबाद हाईकोर्ट को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न्यायिक क्षेत्र में हलचल मची हुई है। इस संबंध में प्रसिद्ध एडवोकेट लाखन सिंह का कहना है कि, “विशेष अदालतों को राज्य सरकार के इशारे पर गठित किया जाता है। राज्य सरकारें अपने समर्थक राजनेताओं को बचाने के लिए और विरोधी राजनेताओं को फंसाने के लिए विशेष अदालतों के गठन में बड़ी भूमिका निभाने का काम करती हैं।”

उन्होंने कहा कि, “आज के हालात में सही और गलत राजनेताओं के दम पर ही राज्यों में सरकारों को बनाया जाता है। इसलिए इस तरह के मामलों में राज्य सरकारों की मनमानी चलती है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले पर यह फैसला किया है, वह एक निष्पक्ष फैसला है। मैं इस फैसले की तारीफ करता हूं। इसी के साथ मेरा मानना है कि विशेष अदालतों के गठन में निष्पक्षता बरती जानी चाहिए, जिससे सबको सही न्याय मिले और किसी को कोई परेशान न कर सके। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला गलत काम करने वालों को एक सबक है।”

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