अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | शामली के सलाउद्दीन को न्याय मिला मगर 26 साल की लड़ाई के बाद। इसे कानून की नज़र में न्याय कहा जा सकता है, लेकिन हकीकत में यह न्याय नहीं अन्याय है। क्योंकि सलाउद्दीन को अपने को बेगुनाह साबित करने में अपना वह सब कुछ खोना पड़ा, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती है और गुजरा हुआ समय वापस नहीं आ सकता है। लेकिन पुलिस की कार्य प्रणाली ने एक बेगुनाह की जिंदगी बर्बाद कर दी।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक सलाउद्दीन को मुज़फ्फरनगर जिले की पुलिस ने 1995 में गिरफ्तार किया था। इनके ऊपर पुलिस ने आरोप लगाया था कि तलाशी के दौरान इनके पास से एक तमंचा और चार कारतूस बरामद किए गए थे। तत्कालीन समय में शहर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक पी एन सिंह को मुखबिर से सूचना मिली थी कि अवैध हथियार लेकर एक व्यक्ति आ रहा है, जिस पर उन्होंने उप निरीक्षक युवराज सिंह को भेजा था। युवराज सिंह ने सलाउद्दीन को रोक कर तलाशी ली थी और सलाउद्दीन के पास से 12 बोर के 4 कारतूस बरामद किए थे।
इसके पश्चात सलाउद्दीन को गिरफ्तार कर धारा 25 शस्त्र अधिनियम के तहत उनका चालान कर दिया था। इस पर सलाउद्दीन 20 दिन जेल में रहे और बाद में ज़मानत होने पर रिहा हुए थे। इसके बाद जिलाधिकारी से शस्त्र अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति लेकर इस मामले की विवेचना की गई थी और बाद में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस मामले की मुकदमे की सुनवाई सीजेएम कोर्ट में हुई। हैरत की बात है कि इस मामले में 20 साल में भी कोर्ट में पुलिस सबूत नहीं पेश कर सकी। पेश की गई चार्जशीट पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए 17 जुलाई 1999 को कोर्ट ने सलाउद्दीन पर आरोप तय कर दिए। इसके बाद फाइल सबूत में चली गई।
इसके बाद कोर्ट ने अभियोजन पक्ष को सलाउद्दीन के विरुद्ध सबूत पेश करने के लिए समय दिया। कई बार पर्याप्त अवसर दिए जाने के बावजूद अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ सबूत नहीं जुटा सका। कोर्ट ने 20 साल बाद 8 अगस्त2019 को सबूत देने का समय समाप्त किया। इस प्रकार 20 साल में भी आरोपी के विरुद्ध कोर्ट में सबूत पेश नहीं किया जा सका।
अभियोजन साक्ष्य का समय समाप्त होने के बाद सीजेएम कोर्ट में आरोपी के धारा 313 के तहत बयान लिया गया। सलाउद्दीन ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को निराधार बताया। इसके बाद दोनों पक्षों की सुनवाई कर सीजेएम मनोज कुमार जाटव ने आरोपी सलाउद्दीन को संदेह का लाभ देते हुए 10 नवम्बर 2021 को बरी कर दिया और सलाउद्दीन साक्ष्य के अभाव में छूट गए।
मुज़फ्फरनगर का बनत गांव आज शामली जिले का बनत गांव हो गया है। शामली जिला बनने से बनत गांव मुज़फ्फरनगर से शामली में चला गया है और यह आज शामली का गांव है। सलाउद्दीन पुत्र फरजू, बनत गांव के निवासी हैं। सलाउद्दीन का मुकदमा लड़ने वाले एडवोकेट ठाकुर जगपाल सिंह का कहना है कि, “कल के मुज़फ्फरनगर और आज के शामली जिले के बनत गांव के निवासी सलाउद्दीन हैं। इनको 1995 में मुजफ्फरनगर की पुलिस ने पकड़ा था और इनके ऊपर पुलिस ने आरोप लगाया था कि इनके पास से 12 बोर के 4 कारतूस बरामद किए गए हैं।”
सलाउद्दीन के अधिवक्ता ने आगे बताया कि, “इतने लंबे वक्त तक मुकदमा चलने के बाद भी पुलिस और अभियोजन पक्ष आरोपी सलाउद्दीन के खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं कर सकी। 26 साल तक चलने वाले मुकदमे से कुछ भी हासिल नहीं हुआ। केवल बेगुनाह सलाउद्दीन के जीवन का अमूल्य समय बर्बाद हो गया और वह कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल छोड़ गया।”
12 बोर के 4 कारतूस बरामद होने के आरोप में जेल की सजा भुगत चुके और अपने जीवन के सुनहरे 26 साल बेगुनाह साबित करने में गंवाने वाले सलाउद्दीन को सीजेएम कोर्ट ने बरी कर दिया है। लेकिन उनका सब कुछ इस दौरान खत्म हो गया है। उनके जीवन का अमूल्य समय बर्बाद हो गया है। पैसा खत्म हो गया है। वे चार कारतूसों के मुकदमें में अपना सब कुछ खो चुके हैं। वे अपने परिवार के लिए भी कुछ नहीं कर सके हैं।
पुलिस द्वारा चार कारतूसों के बरामद होने के आरोप में जेल जा चुके और अपने जीवन के 26 साल बर्बाद कर चुके सलाउद्दीन अदालत से बरी होकर छूट गए हैं। लेकिन इन्हें अपराधी बनाने वाले पुलिस कर्मियों और अभियोजन पक्ष के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
सलाउद्दीन को अपराधी बनाने और उनके जीवन का लंबा समय बर्बाद करने वाले पुलिस और अभियोजन पक्ष के लोग प्रमोशन पाकर ऊंचे पद पर पहुंच कर जिंदगी का सुख भोग रहे हैं। सलाउद्दीन के हिस्से में बर्बादी और तबाही आई है, इसकी भरपाई कौन करेगा?
सलाउद्दीन के बीते हुए वक्त को कौन लौटाएगा? सलाउद्दीन के पास से 4 कारतूस बरामद कर उसको अपराधी बनाने वाले और उसके खिलाफ अदालत में सबूत नहीं पेश कर पाने वाले पुलिस कर्मियों और अभियोजन पक्ष के खिलाफ भी क्या कार्यवाही की जाएगी? सलाउद्दीन को बर्बादी की एवज़ में क्या सरकार मदद करेगी?
यह ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब सलाउद्दीन के साथ इस देश और यहां रहने वाले लोगों को चाहिए। इसके साथ ही साथ आज के बदलते परिदृश्य में कानूनी प्रक्रिया में बदलाव करने की ज़रूरत है, जिससे किसी सभ्य नागरिक को बदले की भावना या दुर्भावना से पुलिस उसे अपराधी न बना सके। इसके साथ ही पुलिस कर्मियों की भी ज़िम्मेदारी तय की जाए, जिससे वह कानून का बेजा इस्तेमाल न कर सकें।
सलाउद्दीन की उम्र इस समय 62 साल है। 4 कारतूस बरामद होने के आरोप से मुक्त होने के लिए मुकदमा लड़ते-लड़ते उनके 26 साल गुज़र गए हैं। अपने को बेगुनाह साबित करने में उनकी उम्र के सुनहरे 26 साल गुजर गए हैं। उम्र के इस पड़ाव में उनका समय ही नहीं बल्कि पैसा भी खत्म हो गया है।आज उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। वे छोटे किसान हैं और इसीसे उनके परिवार का गुजर-बसर होता है।
वह कहते हैं कि, “मुझे अपना मुकदमा लड़ते हुए 26 साल गुजर गए हैं। मुकदमें में 250 से अधिक बार पेशी लगी है। मुकदमें को लड़ने के लिए शुरुआत में 1500 रुपए खर्च करके वकील किया था। हर तारीख पर 50 रुपए खर्च होते थे। इसके बाद जब महंगाई बढ़ी तो यह खर्च प्रति पेशी 500 रुपए हो गया।”
उन्होंने बताया कि, “इस तरह मुकदमें की पैरवी करने में जिंदगी की आधी कमाई खर्च हो गई। हमें अब किसी से कोई शिकवा -गिला नहीं है। किस्मत को जो मंजूर था, वही हुआ। लेकिन किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होनी चाहिए। मेरा सरकार से केवल यह कहना है कि अब कानून को बदलना चाहिए, जिससे कोई गलत तरीके से मुजरिम न बनाया जाए।”