सैयद ख़लीक अहमद
नई दिल्ली | गुरुग्राम (गुड़गांव) में पिछले चार वर्षों से लगातार कुछ भाजपा नेता और हिंदू कट्टरपंथी संगठन जुमे की नमाज़ अदा करने में परेशानी खड़ा करके मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं.
लेकिन हरियाणा राज्य सरकार इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं दिख रही है.
दिल्ली की सीमा से लगे इस अत्याधुनिक शहर गुरुग्राम में अब यह समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है. यह भारत की राजधानी नई दिल्ली का एक प्रमुख पड़ोसी शहर है, जिसकी आबादी 14 लाख से भी अधिक है. यह शहर दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर स्थित है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है. फिर भी, इस आधुनिक शहर में मुसलमानों को हर शुक्रवार को परेशान किया जाता है और उनकी धार्मिक आस्था का मज़ाक उड़ाया जाता है, और राज्य सरकार कुछ नहीं कर पाती है.
एक ओर जहां मोदी विश्व मंचों पर विश्व समुदाय को चरमपंथ और कट्टरपंथ को जड़ से उखाड़ फेंकने का उपदेश देते हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक उन्माद और नफरत को खुलेआम हवा दे रहे हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार, गुरुग्राम की मुस्लिम आबादी 4.5 प्रतिशत है. हालांकि नौकरी की तलाश में उत्तर प्रदेश और बिहार से पलायन कर यहां आने वाले लोगों के कारण मुस्लिम आबादी बहुत अधिक बताई जाती है.
इनमें से ज्यादातर प्रवासी गुरुग्राम के आसपास औद्योगिक एस्टेट, दुकानों और मॉल्स में काम करते हैं. इनमें से ज़्यादातर मुख्य रूप से अकुशल और अर्ध-कुशल श्रमिक हैं, जिनमें से अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाली हाउसिंग सोसाइटीज़ में किराए के घरों में रहते हैं.
भारत के पहले सुनियोजित शहर चंडीगढ़ की तर्ज पर सेक्टरों में बंटे पॉश इलाकों में बहुत ही कम मुसलमान रहते हैं. पॉश इलाकों में रहने वाले अक्सर मुस्लिम सेवानिवृत्त नौकरशाह और अलग अलग व्यवसायों से सम्बन्ध रखने वाले प्रोफेशनल्स हैं.
स्थानीय मुस्लिम नेताओं की माने तो इस समय शहर की मुस्लिम आबादी करीब पांच लाख है.
अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण मुसलमानों को अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए खाली ज़मीन की आवश्यकता थी.
हरियाणा सरकार ने मंदिर, चर्च और गुरुद्वारा के लिए ज़मीन आवंटित की है मगर मस्जिद के लिए नहीं की गई:
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) 22 हिंदू मंदिरों, 20 ईसाई चर्चों और नौ सिख गुरुद्वारों को निर्माण की अनुमति देकर भूमि आवंटित कर चुका है.
लेकिन हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) ने गुरुग्राम में न तो मुस्लिम मस्जिदों के निर्माण की अनुमति दी और न ही ज़मीन आवंटित की, जबकि मुस्लिम आबादी का भी अन्य की भांति लगातार विस्तार हो रहा है. इस प्रकार, राज्य सरकार ने अपने ही राज्य के मुस्लिम नागरिकों के साथ पक्षपात कर रही है.
गुरुग्राम शहर में हिंदुओं के अवैध कब्ज़े में हैं 19 मस्जिदें, अतिक्रमण कर बांधी जाती हैं भैंस और अन्य जानवर:
राज्य सरकार और उसके पुलिस और प्रशासन ने अबतक 19 मस्जिदों को मुस्लिम समुदाय को वापस करवाने के लिए कुछ नहीं किया है. यह सभी मस्जिदें वर्तमान में हिंदू समुदाय के लोगों के अवैध कब्जे में है.
भारत पाक विभाजन के दौरान हिंसा के समय हिंदुओं ने इन मस्जिदों पर कब्जा कर लिया था, उस वक़्त कई मुस्लिम सुरक्षा कारणों से कूच करके पड़ोसी मेवात या दिल्ली चले गए थे.
इनमें से कई मस्जिदों का उपयोग वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से ईंधन के रूप में उपयोग किये जाने वाले गाय और भैंस के गोबर के उपले बनाने के लिए किया जा रहा है. कुछ मस्जिदों का उपयोग आवास के रूप में किया जा रहा है, वहीं अन्य मस्जिदों का उपयोग दुकानों और अन्य गतिविधियों में इस्तेमाल के लिए किया जा रहा है.
पांच लाख से ज्यादा मुस्लिम आबादी के लिए गुरुग्राम में सिर्फ आठ मस्जिदें:
वर्तमान में गुरुग्राम में केवल आठ मस्जिदें हैं जिनमें हरियाणा राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा प्रबंधित पुराने गुरुग्राम में छह, बाहरी कॉलोनियों (शांति नगर और देवीलाल कॉलोनी) में दो और एक न्यू गुरुग्राम में सेक्टर 57 में है.
एक विशाल मुस्लिम आबादी के लिए जुमे की नमाज़ के लिए आठ मस्जिदें पर्याप्त नहीं हैं, वो भी तब जब इस व्यावसायिक शहर में ग्रामीण क्षेत्रों के लोग प्रतिदिन रोज़गार की तलाश में आ रहे हों.
जब प्रशासन ने आधिकारिक तौर पर वक्फ बोर्ड के अधीन 19 मस्जिदों से अतिक्रमण हटाने के लिए कुछ नहीं किया, और नए गुरुग्राम में मस्जिदों के निर्माण के लिए भूमि आवंटित करने और अनुमति देने की मुस्लिम समुदाय की मांग को भी स्वीकार नहीं किया, तो मुस्लिम समुदाय के पास कोई विकल्प नहीं बचा, सिवाय इसके कि मुस्लिम सरकारी ज़मीन, पार्क और अन्य जगहों पर खुले में नमाज़ पढ़े.
शुरुआत में प्रशासन ने मुस्लिमों को सरकारी ज़मीन पर नमाज़ पढ़ने से रोकने की कोशिश की. हालांकि अंत में, प्रशासन ने मुसलमानों को अनुमति दे दी क्योंकि मुसलमान ईद (ईद-उल-फित्र) और बकरीद (ईद-उल-अज़हा) त्योहारों के अलावा, शुक्रवार को दोपहर में केवल एक घंटे के लिए पार्क और अन्य सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल नमाज़ के लिए कर रहे थे.
ऐसा नहीं है कि मुसलमानों ने मौजूदा मस्जिदों से अतिक्रमण हटाने के लिए प्रशासन से संपर्क नहीं किया. गुड़गांव में हरियाणा राज्य वक्फ बोर्ड (HSWB) कार्यालय में संपदा अधिकारी जमालुद्दीन के अनुसार, वक्फ बोर्ड गुरुग्राम जिले में मस्जिदों से अतिक्रमण हटाने के लिए 1977 से प्रयास कर रहा है. हालांकि, उनका कहना है कि जहां छोटे शहरों और गांवों में 14 मस्जिदें मुसलमानों को लौटा दी गईं, वहीं गुरुग्राम के पुराने शहर में 19 मस्जिदें अभी भी अवैध कब्ज़े में हैं.
गुरुग्राम प्रशासन ने शीतला कॉलोनी में मस्जिद को सील किया, 360 अवैध मंदिरों को किया नियमित
जमालुद्दीन के अनुसार, जिला प्रशासन ने सितंबर 2018 में गुरुग्राम के बाहरी इलाके में शीतला कॉलोनी में एक मस्जिद को “अवैध” घोषित करते हुए सील कर दिया था. स्थानीय हिंदू कट्टरपंथी समूहों ने मस्जिद को बंद करने की मांग उठाई.
इसके विपरीत, राज्य सरकार ने हुडा नियमों का हवाला देते हुए, गुरुग्राम जिले में 2011 से अब तक 360 से अधिक अवैध हिंदू मंदिरों को नियमित किया है. ये सभी मंदिर सरकारी ज़मीन पर बने हैं.
जमालुद्दीन का दावा है कि वक्फ बोर्ड ने नए विकसित शहरी क्षेत्रों में मस्जिदों के लिए ज़मीन के आवंटन के लिए हुडा के सामने इस मुद्दे को उठाया, लेकिन सब व्यर्थ ही गया. जमालुद्दीन कहते हैं, किसी भी धर्म के धार्मिक भवनों के लिए दी जाने वाले ज़मीन का भी भुगतान हम सरकार को करने के लिए तैयार हैं.”
मुस्लिम ट्रस्ट ने मस्जिद की ज़मीन के लिए किया आवेदन, एडवांस पैसे जमा किए, सरकार ने अर्जी खारिज कर दी: मोहम्मद अदीब, पूर्व राज्यसभा सदस्य
गुरुग्राम में रहने वाले पूर्व राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब ने इंडिया टुमारो को बताया कि, “एक मुस्लिम ट्रस्ट ने कुछ साल पहले एक मस्जिद की भूमि आवंटन के लिए आवेदन किया और अग्रिम भुगतान के रूप में 18 लाख रुपये भी जमा किए. लेकिन हुडा ने मुस्लिम ट्रस्ट को ज़मीन नहीं दी. इसके बजाय, हुडा ने धार्मिक स्थलों को भूखंडों के आवंटन से एक दिन पहले पैसे वापस कर दिए.”
हुडा के नियमों के अनुसार धार्मिक स्थलों के लिए भूमि केवल पंजीकृत ट्रस्टों या वक्फ बोर्ड जैसे संगठनों को आवंटित की जा सकती है, लेकिन निजी व्यक्तियों को नहीं.
गुरुग्राम में या चंडीगढ़ के पास पंचकूला में हुडा मुख्यालय में हुडा का कोई भी अधिकारी इंडिया टुमारो के सवालों का जवाब देने के लिए फोन पर उपलब्ध नहीं हुआ. हुडा के असिस्टेंट्स ने कहा कि उन्होंने अपने अधिकारियों को इस के बारे में बताया, लेकिन अधिकारियों ने ऑनलाइन आने से इनकार कर दिया.
जब कोई विकल्प नहीं बचा तो मुसलमान खुले में नमाज़ पढ़ने को मजबूर हैं:
ऐसे हालात में मुसलमान ने पार्कों और खुली सरकारी ज़मीनों पर नमाज़ अदा करना शुरू कर दिया. कई हिंदुओं ने भी मुसलमानों को अपने खाली भवन, कारखानों और कमर्शियल स्थानों में सामूहिक जुमे की नमाज़ अदा करने की अनुमति दी.
अन्य समुदायों की भांति मुस्लिम आबादी में हुई बढ़ोतरी के कारण 2018 की शुरुआत तक जुमे की सामूहिक नमाज़ों का विस्तार 116 साइटों तक हो गया. इसके अलावा, छोटे समूहों में मुसलमानों ने अपने कार्यस्थलों के पास खुली सरकारी भूमि पर नमाज़ अदा करते हैं.
खुले में सरकारी ज़मीन पर ‘नमाज़’ पढ़ने पर हिंदू संगठनों और भाजपा नेताओं द्वारा विरोध:
जब जुमे की सामूहिक नमाज़ के लिए स्थानों की संख्या में वृद्धि होने लगी तो बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना, हिंदू जागरण मंच, अखिल भारतीय हिंदू क्रांति दल और कुछ अन्य स्थानीय समूहों सहित 12 हिंदू समूहों के एक अम्ब्रेला आर्गेनाईज़ेशन, हिंदू संयुक्त संघर्ष समिति ने आपत्ति जताई. उन्होंने मांग की कि मुसलमानों को अपनी मस्जिदों और धार्मिक स्थलों पर ही नमाज़ अदा करनी चाहिए न कि सरकारी ज़मीन पर.
स्थानीय मुसलमानों के अनुसार पहला व्यवधान अप्रैल 2018 में हुआ जब उन्होंने मुसलमानों को सेक्टर 43 में हुडा के एक भूखंड पर नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं दी. हालांकि, मुसलमानों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इस मामले को सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद के हस्तक्षेप से सुलझाया गया.
लेकिन हिंदू कट्टरपंथी समूहों ने 5 मई को सेक्टर 53 में जुमे की नमाज़ में हस्तक्षेप किया. उन्होंने नमाज़ अदा करने वालों को भी धमकाया. पुलिस ने मुस्लिम एकता मंच के हाजी शहज़ाद खान की शिकायत पर पांच लोगों के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, धार्मिक पूजा में खलल डालने और आपराधिक धमकी देने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की है. पांचों को गिरफ्तार भी कर लिया गया. हालांकि उन्हें कोर्ट से ज़मानत मिल गई.
पुलिस की कार्यवाही भी शुक्रवार की नमाज़ में कट्टरपंथियों को हस्तक्षेप करने से रोकने में विफल रही. लॉकडाउन हटने और औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियों के खुलने के बाद जब शुक्रवार की सामूहिक नमाज़ फिर से शुरू हुई, तो हिंदू चरमपंथियों ने नमाज़ पर फिर से आपत्ति जताई. नमाज़ पढ़े जाने वाले कई स्थलों पर नमाज़ में व्यवधान डालने के लिए ये चरमपंथी अधिक के अधिक संख्या में इकट्ठा होने लगे और भजन और गीत गाते. उन्होंने मुस्लिम इबादतगुज़ारों को अपशब्द भी कहे. उन्होंने मुसलमानों को अपमानित करने के लिए ‘बांग्लादेशी”, “बर्मी” और “लैंड-जिहादी” जैसे शब्दों को इस्तेमाल किया. उन कट्टरपंथियों ने मांग की कि सरकारी पार्कों और लॉन में नमाज़ अदा करने वाले सभी लोगों को पाकिस्तान भेजा जाए, यह वही भाषा है जो अक्सर कई भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा खुलेआम इस्तेमाल की जाती है. कट्टरपंथियों की इन हरकतों के बाद मुसलमानों के लिए और मुश्किलें बढ़ाते हुए प्रशासन ने भी नमाज़ अब लगभग 25 स्थानों तक ही सीमित कर दी है.
कोर्ट ने स्थानीय हिंदुओं की याचिका पर सेक्टर-57 मस्जिद के विस्तार कार्य पर रोक लगाई
इन सभी घटनाक्रमों के बीच, यूनानी दवा के निर्माताओं, शमा लेबोरेटरीज द्वारा बनाए गए ट्रस्ट द्वारा सेक्टर 57 में निर्मित एक मस्जिद के विस्तार के खिलाफ हिंदू चरमपंथियों द्वारा कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई. कानूनी कार्यवाही सेक्टर 57 के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) द्वारा शुरू की गई थी. जब मस्जिद को बनाया गया था तो यह केवल भूतल पर स्थित थी. हालाँकि नमाज़ पढ़ने वालों की बढ़ती हुई तादाद को देखते हुए, ट्रस्ट के प्रबंधन ने उस विशेष क्षेत्र में हुडा नियमों के तहत अनुमति के अनुसार इसके ऊपर तीन मंज़िले काम शुरू कर दिया था. आरडब्ल्यूए ने अब मस्जिद पर अतिरिक्त मंज़िलों के खिलाफ अदालत में स्टे ऑर्डर हासिल कर लिया है.
मस्जिद के मुद्दे में दिलचस्पी नहीं ले रहे पूर्व नौकरशाह और मुस्लिम पेशेवर
पूर्व राज्यसभा सांसद अदीब, कई पूर्व मुस्लिम नौकरशाहों, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी नसीम अहमद, हरियाणा राज्य वक्फ बोर्ड के पूर्व प्रशासक, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सैयद याकूब कुरैशी और सेवानिवृत्त सेना अधिकारी ज़मीरुद्दीन शाह जैसे कई लोगों के रवैये से नाराज़ हैं क्योंकि इनमें कोई भी इस मुद्दे में दिलचस्पी नहीं ले रहा है. उनका कहना है कि मस्जिदों और मुसलमानों की धार्मिक आवश्यकताओं की पूरी लड़ाई अनपढ़ और अर्ध-साक्षर मुसलमानों पर छोड़ दी गई है, जबकि मुसलमानों का विरोध करने वाले काफी शिक्षित व्यक्ति हैं.
गुरुग्राम में मस्जिदों के लिए और मुसलमानों के अधिकारों के लिए लड़ने वालों का समर्थन करने वाले लोगों में अदीब अकेले व्यक्ति हैं जिनका एक बड़ा राजनीतिक कद है. उनका कहना है कि अगर प्रशासन ने मुसलमानों की मांग नहीं मानी तो वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे. इस संबंध में वह पहले ही गुरुग्राम जिला प्रशासन को एक ज्ञापन सौंप चुके हैं.