परवेज़ बारी
भोपाल | हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के कॉलेजों के पाठ्यक्रम में रामचरितमानस और भगवद् गीता के अध्याय शामिल किए गए हैं.
मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के आदेश के बाद यह निर्णय लिया गया है.
इससे पहले राज्य सरकार ने राज्य के चिकित्सा संस्थानों में छात्रों के लिए आरएसएस के संस्थापक डॉ केशव बी हेडगेवार और जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर आधारित अध्याय शामिल किए थे.
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि धार्मिक विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की शुरूआत “शिक्षा का विनाश” है, इस आरोप पर राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने राज्य सरकार के इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य छात्रों को संस्कृति पढ़ाना है.
यादव का कहना है कि, “छात्रों को देश की संस्कृति के बारे में पढ़ाने में क्या हर्ज है? अगर इसे शिक्षा का भगवाकरण कहकर प्रचारित किया जाता है, तो हाँ, हम पाठ्यक्रम का भगवाकरण कर रहे हैं.”
शिक्षा मंत्री ने आगे कहा कि “नई शिक्षा नीति 2020 सभी छात्रों की बेहतरी के लिए बनाई गई है. अगर हमारे पास कॉलेजों में संस्कृत विषय है, तो हमारे पास उर्दू विषय भी है.”
नया पाठ्यक्रम
-यूजी प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए 3 दिन पहले जारी किया गया नया पाठ्यक्रम इसी शैक्षणिक सत्र से लागू हो गया है. इसमें आर्ट फैकल्टी में वैकल्पिक विषय के रूप में ‘श्री रामचरितमानस का अनुप्रयुक्त दर्शन’ जैसे अध्याय शामिल किए गए हैं.
-इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए ‘राम सेतु का निर्माण-भगवान राम द्वारा इंजीनियरिंग का अनूठा उदाहरण’ शीर्षक वाला एक अध्याय शामिल किया गया है.
-व्यक्तित्व विकास संबंधी पाठ्यक्रम में शामिल अन्य अध्यायों के विषय इस प्रकार हैं : ‘श्री राम की अपने पिता के प्रति आज्ञाकारिता और अत्यधिक भक्ति सहित मानव व्यक्तित्व के उच्चतम गुण’ और ‘दिव्य गुणों को धारण करने की क्षमता और उच्च व्यक्तित्व के लक्षण’.
-अंग्रेज़ी के फाउंडेशन कोर्स में महाभारत पर अध्याय शामिल किया गया है. फाउंडेशन कोर्स में अंग्रेज़ी और हिंदी के अलावा योग और ध्यान को भी शामिल किया गया है.
कांग्रेस ने शिक्षा के इस भगवाकरण को ‘शिक्षा का विनाश’ बताया
पाठ्यक्रम में बदलाव पर कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने कहा कि, “भाजपा सरकार देश की शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने पर तुली हुई है. बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल और विश्विद्यालयों में भेजा जाता है. सरकार को पाठ्यक्रम को अधिक से अधिक रोज़गारोन्मुखी बनाने का प्रयास करना चाहिए और इस दिशा में कदम उठाना चाहिए.”
गौरतलब है कि मप्र सरकार ने पिछले सप्ताह जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय और आरएसएस के संस्थापक डॉ केबी हेडगेवार के जीवन और कार्यों को राज्य के एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्रों के फाउंडेशन कोर्स में शामिल करने का फैसला किया था. सरकार ने छात्रों को आयुर्वेद के प्राचीन आचार्य चरक, प्राचीन सर्जन सुश्रुत, स्वामी विवेकानंद और डॉ बीआर अंबेडकर के बारे में जानकारी देने का भी फैसला किया था.
पाठ्यक्रम में धार्मिक विषय शामिल किए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए भोपाल के वरिष्ठ डॉक्टरों का कहना है कि एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में कोई भी सामग्री तभी शामिल की जानी चाहिए, जब वह मेडिकल साइंस के लिए प्रासंगिक हो. चाहे वह व्यक्तित्व हो या दर्शन, इसका मेडिकल के क्षेत्र में कुछ अर्थ होना चाहिए और भविष्य के डॉक्टरों के लिए कुछ उपयोगिता होनी चाहिए.
पीपल्स मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ अनिल दीक्षित का कहना है कि मेडिकल एथिक्स के तहत फिलहाल छात्रों को मरीजों के साथ कैसा व्यवहार करना है, यह सिखाया जाता है. “हम उन्हें सुश्रुत और रोनाल्ड रॉस जैसे वैज्ञानिकों के बारे में भी पढ़ाते हैं जिन्होंने चिकित्सा विज्ञान की उन्नति में योगदान दिया.
उन्होंने कहा कि, राजनीतिक दार्शनिक चिकित्सा पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं हुआ करते थे. डॉ दीक्षित आगे कहते हैं कि, “हम अपने छात्रों को जो भी पढ़ाते हैं, वह सब राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद और राज्य सरकार के चिकित्सा शिक्षा निदेशालय द्वारा तय किया जाता है.”
मनोचिकित्सक डॉ आर एन साहू का कहना है कि, सभी छात्रों को राष्ट्र के विकास में योगदान देने वाले नेताओं और महापुरुषों के बारे में जानकारी होनी चाहिए. वो कहते हैं कि “मैं किसी का नाम नहीं ले रहा हूं लेकिन मेडिकल छात्रों को गांधी और नेहरू के बारे में ज़रूर पता होना चाहिए.”
डॉ साहू कहते हैं कि, “अगर हम भारत की महान हस्तियों को नहीं जानते हैं, तो हम अपनी जड़ों से दूर हो जाएंगे और पाश्चात्य प्रभाव से ग्रसित हो जाएंगे. जब हम साइंस में हिप्पोक्रेट्स के बारे में जानते हैं, तो हमें महान भारतीयों के बारे में क्यों नहीं जानना चाहिए.”
मनोचिकित्सक डॉ रूमा भट्टाचार्य का कहना है कि, “ज्ञान कभी नुकसान नहीं पहुंचाता है और जितना हो सके उतना अधिक सीखना हमेशा अच्छा होता है. लेकिन वो ज्ञान उस कार्य के लिए प्रासंगिक होना चाहिए जो कोई कर रहा है या भविष्य में करेगा.”अप्रासंगिक चीजों को सीखने के साइड-इफेक्ट्स होते हैं, जिनसे बचना ही बेहतर है.”