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Thursday, March 28, 2024
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मस्जिद निर्माण के कारण यूपी सरकार वापस लेगी मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की ज़मीन

सैयद खलीक़ अहमद

नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश के रामपुर में स्थित मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय एक बार फिर से चर्चा में है. विश्वविद्यालय इस बार इस सवाल को लेकर चर्चा में है कि यदि यूनिवर्सिटी की ज़मीन के एक हिस्से का उपयोग इसकी फैकल्टी व छात्रों की धार्मिक व सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मस्जिद बनाने में किया गया हो तो क्या किसी विश्वविद्यालय द्वारा अधिग्रहित भूमि को वापस लेकर उसके मालिकों को सौंपा जा सकता है?

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश सरकार की 173 एकड़ ज़मीन को वापस लेने की कार्यवाही के खिलाफ लगाई गई मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय ट्रस्ट की याचिका को  खारिज कर दिया. कोर्ट द्वारा यूनिवर्सिटी की याचिका खारिज करने के बाद यह मामला बहस का विषय बन गया है. ट्रस्ट का नेतृत्व समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री आज़म खान करते हैं, जिसमें उनकी पत्नी ताज़ीन फातिमा सचिव और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म इसके सक्रिय सदस्यों में से एक हैं. 2017 में राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के बाद उनके खिलाफ दर्ज कई मामलों के कारण आज़म खान और अब्दुल्ला आज़म सीतापुर जेल में बंद हैं. आज़म खान और उनके परिवार के खिलाफ दर्ज मामले राजनीति से प्रेरित बताए जा रहे हैं.

हालांकि ट्रस्ट इलाहबाद हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है. ट्रस्ट और विश्वविद्यालय का नाम स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम पर रखा गया है.

देश के अन्य विश्वविद्यालयों के परिसरों में भी मंदिर और गिरजा घर बनाए गए हैं:

इलाहबाद उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को भूमि की वसूली की अनुमति जिन आधारों पर दी गई है उनमें एक मुख्य कारण विश्वविद्यालय के छात्रावास और इस्लामी अध्ययन के संकाय के बगल में बनाई गई मस्जिद है .

गौरतलब है कि पूरे भारत में ऐसे कई अन्य विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थान हैं, जिनके परिसरों के भीतर मंदिर या धार्मिक पूजा स्थान हैं, जिनका निर्माण उन विश्वविद्यालयों के छात्रों और संकाय सदस्यों की धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया गया है. यहां तक ​​​​कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में भी 1966 में परिसर के अंदर एक विशाल विश्वनाथ मंदिर बनाया गया था, जिसके निर्माण के लिए बिड़ला समूह द्वारा पैसे दान किए गए थे. यह भारत का सबसे ऊँचा मंदिर है, जिसका ‘शिकारा’ (शिखर) 73 मीटर ऊँचा है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी विश्वविद्यालय परिसर के बीच में सर सैयद हॉल के अंदर एक विशाल मस्जिद बनाई गई है. दिल्ली विश्वविद्यालय के सबसे प्रमुख कॉलेज सेंट स्टीफंस कॉलेज में भी एक चैपल (पूजास्थल) है जो संस्थान के अंदर रहने वालों, फैकल्टी व छात्रों की धार्मिक ज़रूरतों को पूरा करता है. यहां तक ​​कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित लखनऊ विश्वविद्यालय के तिलक गर्ल्स हॉल में भी एक बड़ा मंदिर स्थित है जो कि विश्वविद्यालय के गर्ल्स हॉस्टल से लगा हुआ है.

हाईकोर्ट ने 6 सितंबर को दिए अपने आदेश में राज्य सरकार द्वारा ट्रस्ट पर लगाए गए चार बड़े आरोपों को बरकरार रखा था. राज्य सरकार की तरफ से ये तर्क प्रस्तुत किया गया कि चूंकि ट्रस्ट ने उन शर्तों का उल्लंघन किया जो विश्वविद्यालय के लिए भूमि अधिग्रहण की अनुमति देने के लिए बनाई गई हैं, इसलिए राज्य सरकार को अनुमति रद्द करने और भूमि को अधिग्रहित करने का अधिकार है. राज्य सरकार द्वारा बताए गए प्रमुख उल्लंघनों में से एक विश्वविद्यालय के लिए अधिग्रहित भूमि पर मस्जिद का निर्माण भी है.

अन्य तीन उल्लंघन इस प्रकार हैं: 1. जिला अधिकारियों के अनुमोदन के बिना अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों से भूमि की खरीद (उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 157-ए का उल्लंघन), 2. ‘चक रोड’ (खेत में मिट्टी में बना एक ट्रैक जो किसानों और अन्य लोगों के लिए कृषि और अन्य गतिविधियों के लिए एक मार्ग के रूप में उपयोग की जाती है) पर अवैध कब्ज़ा और 3. भवनों के निर्माण को पूरा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा दिए गए पांच साल के समय का उल्लंघन.

ज़मीन अधिग्रहण की शर्तों का उल्लंघन कर रही है मस्जिद : हाईकोर्ट

अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि मस्जिद का निर्माण भूमि अधिग्रहण के लिए दी गई अनुमति की शर्तों का उल्लंघन करता है क्योंकि ज़मीन केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए दी गई थी.

livelaw.in ने उच्च न्यायालय के हवाले से कहा कि, “यह परिसर में शिक्षण के साथ-साथ गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए आवासीय परिसर है, अतः उनके लिए  मस्जिद का निर्माण किया गया था, इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह राज्य द्वारा दी गई अनुमति की शर्तों के खिलाफ है.” लाइव लॉ एक समाचार पोर्टल है जो देश के विभिन्न न्यायालयों की न्यूज़ कवर करता है.

अदालत ने आगे कहा, “मौजूदा मामले में, 12.50 एकड़ से अधिक भूमि के हस्तांतरण की अनुमति केवल एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के लिए दी गई थी. मस्जिद की स्थापना 7 नवंबर 2005 को दी गई अनुमति के विरुद्ध थी. 

इस प्रकार, ट्रस्ट ने शर्तों का उल्लंघन किया है और शर्त संख्या 5 में स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया है कि किसी भी शर्त का उल्लंघन करने की स्थिति में दोनो पक्षों को सुनवाई का मौका देने के बाद 12.50 एकड़ से अधिक भूमि को राज्य सरकार के हवाले कर दिया जाएगा. याचिकाकर्ता-ट्रस्ट न तो प्रतिवादी (राज्य सरकार) के समक्ष और न ही इस अदालत के समक्ष जवाब में  मस्जिद की स्थापना को सही ठहरा सकता है, जो कि अनुमति आदेश दिनांक 07-11-2005 में निर्धारित शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन है.

समाजवादी पार्टी ने 2005 में विश्वविद्यालय विधेयक पारित किया, 400 एकड़ जमीन अधिग्रहण की अनुमति दी

उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 के तहत कोई व्यक्ति या कोई संस्था 12.50 एकड़ (5.086 हेक्टेयर) से अधिक भूमि पर अधिग्रहण नहीं कर कर सकती है. हालांकि, अधिनियम की धारा 154 (2) राज्य सरकार को शैक्षणिक संस्थानों या किसी अन्य लोक कल्याणकारी परियोजनाओं जैसे विशेष उद्देश्यों के लिए 12.5 एकड़ से अधिक भूमि के अधिग्रहण की अनुमति देने का अधिकार देती है. इस प्रावधान के तहत राज्य सरकार ने  मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय विधेयक, 2005 पारित करने के बाद आज़म खान के नेतृत्व वाले ट्रस्ट को 400 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने की अनुमति दी थी. इस विधेयक को यूपी के तत्कालीन राज्यपाल अजीज़ कुरैशी ने मंजूरी दी थी. कांग्रेस के दिग्गज नेता कुरैशी पर कांग्रेस नेताओं की तरफ से विधेयक को खारिज करने का भारी दबाव था लेकिन इसके बावजूद उन्होंने विधेयक को मंजूरी दी थी. राज्यपाल की सहमति के बाद मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय विधेयक, 2005 मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय अधिनियम, 2005 बन गया.

ट्रस्ट द्वारा अधिग्रहित भूमि में 100 एकड़ खाली संपत्ति या शत्रु संपत्ति (उन लोगों की भूमि जो 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए) शामिल हैं, जिसे संरक्षक भूमि भी कहा जाता है. चूंकि ट्रस्ट को खाली संपत्ति के हस्तांतरण में कुछ कानूनी समस्या थी, इसलिए पहले इसे स्थानीय वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित किया गया और फिर उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से विश्वविद्यालय ट्रस्ट को स्थानांतरित कर दिया गया था. हालांकि, राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि ट्रस्ट ने वक्फ बोर्ड को ज़मीन का भुगतान नहीं किया था. लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों का कहना है कि अगर सरकार चाहती है तो ट्रस्ट भुगतान करने के लिए तैयार है लेकिन ज़मीन वापस लेने का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि ऐसा करने से संस्थान बंद हो जाएगा, जो कि एक राष्ट्रीय संपत्ति है.

वर्तमान में 1800 से अधिक छात्र इस यूनिवर्सिटी में नामांकित हैं, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम हैं, और उनमें से भी अधिकांश शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूह से आते हैं. छात्राओं की एक बड़ी संख्या भी जौहर विश्वविद्यालय में है. यह मुस्लिम आबादी के पास लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में फैला एकमात्र विश्वविद्यालय है. रामपुर से सटे किसी भी जिले में कोई स्नातक या स्नातकोत्तर कॉलेज, विशेष रूप से तकनीकी और प्रबंधन कॉलेज नहीं हैं. यह क्षेत्र के मुस्लिम राजनेताओं के दूरदृष्टि के अभाव को भी दर्शाता है, जिन्होंने  कभी अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया, हालांकि मुसलमान रामपुर और आसपास के जिलों में सबसे बड़े जमींदारों में से एक हैं.

ट्रस्ट द्वारा अधिग्रहित/खरीदी गई अन्य भूमि शौकत नगर गांव के 40 किसानों की है. जहां एक ओर ट्रस्ट ने ज़मीन के कुछ हिस्से का स्वामित्व अपने नाम पर स्थानांतरित कर दिया था, वहीं 3.75 बीघा भूमि के मामले में स्वामित्व हस्तांतरित नहीं किया जा सका था, हालांकि ट्रस्ट का दावा है कि उसने इस 3.75 बीघा भूमि के मालिकों को भुगतान  किया था.

2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पैदा हुआ विवाद

2017 में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद भूमि और विश्वविद्यालय को लेकर अन्य मुद्दों पर विवाद पैदा हुआ. स्थानीय भाजपा नेता आकाश सक्सेना द्वारा रामपुर उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) अदालत के समक्ष दायर एक मामले के बाद यह विवाद उत्पन्न हुआ. सक्सेना ने आरोप लगाया कि ट्रस्ट ने विश्वविद्यालय के लिए ज़मीन अधिग्रहण के लिए दी गई अनुमति की शर्तों का उल्लंघन किया है. सक्सेना के दावों और जिला अधिकारियों द्वारा की गई जांच के आधार पर राज्य सरकार ने ट्रस्ट पर विश्वविद्यालय के बीच से गुजरने वाली ‘चक रोड’ को अवैध रूप से हथियाने और उस पर एक पक्की सड़क का निर्माण करने का आरोप लगाया, और यह सब तब हुआ जब आज़म खान मंत्री थे और यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार थी.

राज्य सरकार ने यह भी आरोप लगाया कि ट्रस्ट ने कोसी नदी के किनारे की भूमि के एक हिस्से को अवैध रूप से हथिया लिया, जो कि विश्वविद्यालय की पश्चिमी सीमा से बहती है. सरकार ने ट्रस्ट पर पीडब्ल्यूडी की ज़मीन पर विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार का निर्माण करने और चक रोड के शुरुआती बिंदु पर विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार को खड़ा कर ‘चक रोड’ पर लोगों के आवागमन को भी अवरुद्ध करने का आरोप लगाया. हालांकि, ट्रस्ट ने आरोपों से साफ़ इनकार करते हुए कहा कि ‘चक रोड’ के दूसरी तरफ कोई बस्ती नहीं है जो कोसी नदी के किनारे पर समाप्त होती है और इसलिए ‘चक रोड’ का उपयोग करने वाला कोई है ही नहीं. ट्रस्ट के अधिकारियों का कहना है कि चूंकि ‘चक रोड’ के दोनों ओर की भूमि विश्वविद्यालय के लिए अधिग्रहित कर ली गई है, इसलिए विश्वविद्यालय के उद्देश्यों के लिए ‘चक रोड’ का उपयोग करने का उन्हें पूरा अधिकार है और इसलिए ‘चक रोड’ के ऊपर पक्की सड़क का निर्माण किसी भी प्रकार का उल्लंघन नहीं है. वे इस बात से भी इनकार करते हैं कि मुख्य द्वार पीडब्ल्यूडी की संपत्ति पर बनाया गया है. उनका दावा है कि उनके पास ट्रस्ट के नाम ज़मीन के कागजात हैं. ‘चक रोड’ पर पक्की सड़क बनाने के आरोप संबंध में ट्रस्ट के अधिकारियों का कहना है कि ऐसा सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को विश्वविद्यालय के उद्घाटन स्थल तक पहुंचाने के लिए किया गया था. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता है कि विश्वविद्यालय ने चक रोड को हड़प लिया है.

शौकत नगर गांव की “विवादित भूमि” पर विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि ट्रस्ट किसानों को फिर से भुगतान करने के लिए सहमत हो गया है, बशर्ते वे ज़मीन को ट्रस्ट को हस्तांतरित करने के लिए सहमत हों. हालांकि सभी ग्रामीणों (सभी मुसलमानों) ने प्राथमिकी दर्ज करवाई थी. विश्वविद्यालय के अधिकारियों के अनुसार जब ग्रामीणों को विश्वविद्यालय को बंद करवाने की साज़िश का एहसास हुआ, तो उन्होंने मामला वापस लेने के लिए आवेदन किया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. अदालत के आदेश के बाद इसी वर्ष 2 अगस्त को इमारत के मुख्य द्वार को गिराने के लिए आने वाले पुलिस और प्रशासन का शौकत नगर के स्थानीय ग्रामीणों द्वारा पुरज़ोर विरोध किया गया था. हाल ही में दिल्ली की एक मीडिया टीम के दौरे के दौरान ग्रामीणों ने कहा कि वे नहीं चाहते कि विश्वविद्यालय को कोई नुकसान हो. ग्रामीणों में से एक ने कहा कि “यह हमारी संपत्ति है और हम किसी को भी विश्वविद्यालय को नुकसान नहीं पहुंचाने देंगे.” नाम न छापने की शर्त पर  ग्रामीणों ने कहा कि विश्वविद्यालय का समर्थन करने वाले किसी भी व्यक्ति के प्रति प्रशासन बहुत सख्त है और प्रशासन के डर के कारण बहुत से लोग विश्वविद्यालय के समर्थन में खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं.

यूपी सरकार को उदारता दिखानी चाहिए: जमात-ए-इस्लामी हिंद

दिल्ली से जमात-ए-इस्लामी हिंद के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी हाल ही में विश्वविद्यालय का दौरा किया. विश्वविद्यालय के अधिकारियों के साथ-साथ जिला कलेक्टर रवींद्र कुमार मंदर से भी मुलाकात की. जमाअत इस्लामी हिंद के प्रतिनिधिमंडल ने जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने की अपील की गई कि विश्वविद्यालय को कोई नुकसान न हो और यह बिना किसी बाधा के शिक्षा के हित में कार्य करता रहे. प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले मलिक मोतसिम खान ने कलेक्टर से कहा कि राज्य सरकार को उदारता दिखानी चाहिए और शिक्षा के हित में इस मुद्दे को हल करना चाहिए और कानूनी विवाद पैदा करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे उस शैक्षिक उद्देश्य को नुकसान होगा जिसके लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है.

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