इंडिया टुमारो
लखनऊ | उत्तर प्रदेश में शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा का गठन हुआ जिसके बाद प्रेस क्लब में किसान संगठनों ने प्रेस वार्ता कर इसकी आधिकारिक घोषणा की. साथ ही 27 सितम्बर को भारत बंद के समर्थन में उत्तर प्रदेश बंद का भी आह्वान किया.
इस से पहले लखनऊ के रैदास भवन में प्रदेश के 85 किसान संगठनों की दो दिवसीय राज्य स्तरीय बैठक संपन्न हुई.
प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय नेता डा दर्शन पाल, डा अशोक धावले, भाकियू के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरनाम सिंह, गाजीपुर मोर्चा कमेटी के प्रमुख नेता डी. पी. सिंह एवं तजिन्दर सिंह विर्क ने बैठक के निर्णयों एवं आगामी कार्यक्रमों को मीडिया के सामने साझा किया.
मीडिया को जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर 27 सितम्बर भारत बंद को उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक बंद होगा.
किसान नेता ने बताया कि, भारत बंद को सफल बनाने के लिए 17 तारीख को राज्य के सभी जिलों में किसान संगठनों की साझा बैठकें होंगी, जिनमें किसान संगठनों के अलावा ट्रेड यूनियन, युवा संगठनों, ट्रांसपोर्टर्स यूनियन, व्यापारी संगठन, महिला और नागरिक संगठनों को भी शामिल रहेंगे.
प्रेस क्लब में अपनी बात रखते हुए किसान नेताओं ने बताया कि, गन्ने के समर्थन मूल्य बढ़ाने, बकाया भुगतान, अवारा पशुओं पर पाबंदी, ट्रयूबवैल कनेक्शन पर फ्री बिजली जैसे उत्तर प्रदेश के मुद्दों को शामिल करते हुए राष्ट्रीय किसान आन्दोलन के साथ राज्यव्यापी आन्दोलन का व्यापक फैलाव किया जाएगा.
इसी श्रृंखला में पूर्वी उत्तर प्रदेश में आन्दोलन के विस्तार के लिए आगामी 7 अक्टूबर को वाराणसी में किसान संगठनों की बैठक का निर्णय लिया है.
गांधी जयंती, (2 अक्टूबर) पर चंपारण से वाराणसी तक 350 किमी की हजारों लोगों के साथ किसान जनजागरण पदयात्रा बलिया, गाजीपुर होते हुए 20 अक्टूबर को बनारस पहुंचेगी.
किसानों ने बताया कि, यूपी मिशन के तहत भाजपा और एनडीए के सहयोगी दलों के कार्यक्रमों और नेताओं का बहिष्कार किया जाएगा.
साथ ही अंबानी-अडानी-कारपोरेट के उत्पादों और संस्थानों का बहिष्कार किया जाएगा. टोल प्लाजा जनता के लिए टोल मुक्त किए जाएंगे।
संयुक्त किसान मोर्चा, उत्तर प्रदेश की इकाई का गठन हुआ. जिसमें 85 किसान संगठन शामिल हुए. सभी संगठनों में समन्वय बनाने तीन सदस्यीय समन्वय समिति बनाई गई.
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में किसान आन्दोलन के बाद से भाजपा के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ है जिसे किसान संगठनों की नाराज़गी ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.