इश्फ़ाकुल हसन
श्रीनगर | कश्मीर में सीआईडी द्वारा जारी निर्देश को लेकर लोगों में नाराज़गी और आक्रोश का माहौल है. कश्मीर में क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) द्वारा फील्ड अधिकारियों को निर्देश जारी किया गया है कि कानून व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक, पथराव और अन्य अपराधों में शामिल लोगों को पासपोर्ट सत्यापन, सरकारी नौकरियों और किसी भी अन्य सरकारी योजनाओं में क्लीयरेंस न दिया जाए. सीआईडी द्वारा जारी किए गए इस निर्देश के बाद से ही कश्मीर में आक्रोश का माहौल है.
सीआईडी स्पेशल ब्रांच कश्मीर (एसबीके) ने शनिवार को जारी एक सर्कुलर में सभी इकाइयों को पथराव और “राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक अन्य अपराधों” में शामिल लोगों को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने का निर्देश दिया है.
आदेश के अनुसार सभी डिजिटल साक्ष्य और पुलिस रिकॉर्ड को ध्यान में रखा जाएगा. एसबीके एसएसपी सीआईडी द्वारा जारी एक परिपत्र में कहा गया है कि, “सीआईडी-एसबी कश्मीर की सभी क्षेत्रीय इकाइयों को निर्देश दिया जाता है कि पासपोर्ट, सेवा, और सरकारी सेवाओं या योजनाओं से संबंधित किसी भी प्रकार के सत्यापन प्रक्रिया के दौरान वह यह सुनिश्चित करें कि आवेदनकर्ता की कानून और व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक, पथराव के मामलों और अन्य अपराधों में कोई भागीदारी न हो और साथ ही स्थानीय पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड से इसकी पुष्टि की जानी चाहिए.”
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “सीसीटीवी फुटेज, फोटो, वीडियो और ऑडियो क्लिप, पुलिस, सुरक्षा बलों और सुरक्षा एजेंसियों के रिकॉर्ड में उपलब्ध क्वाडकॉप्टर इमेज जैसे डिजिटल सबूतों से भी मदद ली जानी चाहिए. ऐसे किसी भी मामले में शामिल पाए जाने वाले किसी भी आवेदनकर्ता को सिक्योरिटी क्लीयरेंस नहीं दिया जाना चाहिए.”
इस मुद्दे ने कश्मीर में आक्रोश का माहौल पैदा कर दिया है और राजनीतिक नेताओं ने इस तरह के निर्देशों के पीछे की मंशा पर सवाल उठाया है.
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया है कि “कानून की अदालत में दोषी पाया जाना और एक पुलिस द्वारा दी गई जाँच रिपोर्ट दोनों बराबर नहीं हो सकते हैं. डेढ़ साल पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत मेरी नजरबंदी को सही ठहराने के लिए एक नकारात्मक पुलिस रिपोर्ट बनाई थी, जो कभी भी कानूनी चुनौती के सामने टिक नहीं सकती थी. उन्होंने कई अन्य लोगों के साथ भी ऐसा ही किया, जिनमें से कई के खिलाफ ये रिपोर्ट कोर्ट द्वारा नकार दी गई. एक कार्यकारी आदेश कानून की अदालत की जगह नहीं ले सकता. “अपराध या बेगुनाही को अदालत में साबित किया जाना चाहिए और इसे अस्पष्ट अप्रमाणित पुलिस रिपोर्टों पर आधारित नहीं होना चाहिए.”
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार किए गए निर्दोष कश्मीरी सालों से जेलों में सड़ रहे हैं.
महबूबा ने कहा कि, “आम कश्मीरियों के लिए मुकदमा एक सज़ा बन जाता है. लेकिन भारत सरकार नहीं चाहती है कि उग्रवादियों के साथ रंगेहाथ पकड़े गए एक पुलिस वाले के खिलाफ कोई जांच हो. क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि उस पुलिस वाले ने कुछ बुरी घटनाओं को अंजाम देने के लिए व्यवस्था के साथ मिलीभगत की? निर्दोष साबित होने तक कश्मीरियों को दोषी माना जाता है. चाहे सरकारी नौकरी के लिए हो या पासपोर्ट के लिए, उनके खिलाफ सबसे कठोर तरह की जांच की जाती है. लेकिन जब एक पुलिसकर्मी के बारे में मालूम होता है कि उसने आतंकवादियों की मदद की है तो उसे छोड़ दिया जाता है. दोहरे मानदंड और गंदे खेल अब बिलकुल साफ हैं.”
इससे पहले तीन बार सांसद रह चुकी और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा को सीआईडी द्वारा उनके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट जारी करने के बाद पासपोर्ट से वंचित कर दिया गया था.
इससे पहले, केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (चरित्र और पूर्ववृत्त का सत्यापन) निर्देश, 1997 में एक संशोधन किया गया है जिसके अनुसार सरकारी नौकरी पाने के लिए एक संतोषजनक सीआईडी रिपोर्ट अनिवार्य हो गई थी.
सूत्रों का कहना है कि यह भी बताना अनिवार्य होगा कि क्या परिवार का कोई सदस्य या करीबी रिश्तेदार किसी राजनीतिक दल या संगठन से जुड़ा है, या किसी राजनीतिक गतिविधि में भाग लिया है या किसी विदेशी मिशन या संगठन, या किसी जमात इस्लामी जैसे निषिद्ध / प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा है.
नए संशोधन के अनुसार, सेवारत कर्मचारियों के मामले में सीआईडी से पुन: सत्यापन की आवश्यकता होगी, नियुक्ति की तारीख से किसी की पोस्टिंग और पदोन्नति का विवरण प्रस्तुत करना होगा. इसके अलावा किसी के माता-पिता, पति या पत्नी, बच्चों, और सौतेले बच्चे, सास-ससुर, साले और भाभी का भी विवरण देना होगा.