सैयद ख़लीक़ अहमद
नई दिल्ली | जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 जुलाई से प्रारंभ हुए शैक्षणिक वर्ष (2021-22) से पूरे देश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन चिकित्सा पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) में 27% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने की घोषणा की तो इससे पूरे देश को यह लगा कि मानो यह केंद्र सरकार की उदारता है.
हालांकि, अखिल भारतीय कोटा को मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश पर लागू किया गया है यह बात आम लोगों के सामने नहीं आ सकी.
मद्रास उच्च न्यायालय ने 27 जुलाई 2020 को तमिलनाडु में यूजी और पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण लागू करने का आदेश दिया था. यह आदेश डीएमके पार्टी की ओर से दायर एक याचिका पर दिया गया है.
उत्तर प्रदेश के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में अखिल भारतीय कोटा में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की मांग के लिए सलोनी कुमारी द्वारा दायर इसी प्रकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है. लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इस याचिका पर 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के आदेश को लागू नहीं किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सलोनी कुमारी मामले का तमिलनाडु मामले से कोई लेना-देना नहीं है. फिर भी केंद्र ने कार्यान्वयन में देरी की.
द्रमुक ने आखिरकार मद्रास उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की. 21 जुलाई, 2021 को अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की खंडपीठ ने कहा था कि केंद्र सरकार के पास आरक्षण लागू करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
बेंच ने केंद्र को एक सप्ताह के भीतर ओबीसी कोटा लागू करने की प्रक्रिया और तरीके को स्पष्ट करने का निर्देश दिया. मामले में अगली सुनवाई 26 जुलाई के लिए निर्धारित की गई थी. उच्च न्यायालय ने यह भी देखा कि आरक्षण कोटा को लागू करने में देरी करना कोर्ट के आदेशों की जानबूझकर की जा रही अवहेलना प्रतीत होती है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 26 जुलाई को अदालत को बताया कि केंद्र क्रियान्वयन योजना तैयार कर रहा है और इसके लिए एक सप्ताह का समय मांगा है.
पीएम ने बाद में मेडिकल एजुकेशन के लिए योजना के तहत ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण की घोषणा की कर दी. उन्होंने घोषणा की कि अखिल भारतीय कोटा योजना से एमबीबीएस में 1500 ओबीसी छात्रों और पीजी में 2500 ओबीसी छात्रों, एमबीबीएस में लगभग 550 ईडब्ल्यूएस छात्रों और पीजी में लगभग 1000 ईडब्ल्यूएस छात्रों को लाभ होगा.
वैसे तो अभी यह कोटा लागू किया जाना अदालत के आदेशों पर आधारित है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इसका क्रियान्वयन राजनीति से प्रेरित है और आगामी यूपी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर घोषणा की गई है.
अखिल भारतीय कोटा योजना को 1986 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित किया गया था. किसी भी राज्य के छात्रों को दूसरे राज्य के अच्छे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए डोमिसाइल फ्री मेरिट योग्यता पर आधारित अवसर प्रदान करने के लिए इसे अनुमति प्रदान की गई थी. अखिल भारतीय कोटा में कुल यूजी सीटों का 15% और सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कुल पीजी सीटों का 50% शामिल है.
प्रारंभ में, एआईक्यू स्कीम में कोई आरक्षण नहीं था, और सभी सीटें खुली श्रेणी में थीं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में एआईक्यू स्कीम में अनुसूचित जातियों के लिए 15% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% की अनुमति दी थी.
जब 2007 में केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम प्रभावी हुआ, तो ओबीसी को एकसमान 27% आरक्षण प्रदान किया गया. एआईक्यू योजना सभी केंद्रीय चिकित्सा शैक्षणिक संस्थानों में लागू की गई, उदाहरण के लिए, सफदरजंग अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, आदि.
हालाँकि, इसे राज्य के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों की AIQ सीटों तक नहीं बढ़ाया गया था. राज्यों ने पूरे देश में बेहतर चिकित्सा शिक्षा के अवसरों के लिए केंद्र के लिए सीटें खाली कर दीं, द्रमुक ने महसूस किया कि एआईक्यू योजना में ओबीसी कोटा तय नहीं करना केंद्र द्वारा किया गया भेदभाव है.
इसके बाद द्रमुक ने मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया. उच्च न्यायालय ने एआईक्यू योजना में ओबीसी कोटा लागू करने के पक्ष में आदेश दिया.
हालांकि केंद्र सरकार ने भी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के उम्मीदवारों के लिए एआईक्यू सीटों में 10% आरक्षण लागू किया, और यह सब डीएमके द्वारा दायर याचिका पर मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों के कारण हुआ.