हुमा मसीह | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | क्या आप और हम भारत में बैठकर ये कल्पना कर सकते हैं कि कोई महिला जो मुस्लिम न हो, अपना सर न ढकती हो मगर मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने के अधिकार के लिए डटकर खड़ी हो गई हो और अपने ही देश की संसद में हिजाब के खिलाफ़ लाए जा रहे कानून के विरोध में शानदार भाषण देकर उस अलोकतांत्रिक कानून के मसौदे को खारिज करने पर सत्ता पक्ष को मजबूर कर दिया हो?
फ्रांस की संसद में मुस्लिम महिलाओं के पोशाक चुनने की आज़ादी के अधिकार के लिए आवाज़ बुलंद करने वाली इस महिला का नाम ऐनी शेपेलीयर है. सन् 1967 में कनाडा के विंडसर में ऐनी का जन्म हुआ. फ्रांस की पॉल वैलेरी यूनिवर्सिटी से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की. ऐनी पेशे से नर्स एनस्थेटिस्ट हैं.
ऐनी शेपेलियर 2017 से फ्रेंच नेशनल एसेंबली की मेंबर हैं. उनका सम्बन्ध फ्रांस की ‘ला रिपब्लिक एन मार्च’ पार्टी से है.
कुछ महीने पहले फ्रांस की पार्लियामेंट में विवादित सेप्रेटिज़्म बिल प्रस्तुत किया गया था. यह बिल अलग-अलग स्तरों पर मुस्लिमों के साथ भेदभाव पर आधारित था. इस बिल का एक सेक्शन मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाता था, इसके अनुसार बैलेट बॉक्स अटेंडेंट मुस्लिम महिलाएं हिजाब नहीं पहन सकती थी.
इस कानून पर जब फ्रांस की पार्लियामेंट में बहस हुई तो एसेंबली की मेंबर ऐनी शेपेलियर ने इस बिल के विरोध में ठोस तर्क प्रस्तुत किए. ऐनी ने कहा कि बिल के माध्यम से सिर्फ हेडस्कार्फ पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को टारगेट किया जा रहा है. किप्पा (एक प्रकार की धार्मिक टोपी) पहनने वाले यहूदी पुरुषों पर किसी को आपत्ति नहीं है जबकि हेड स्कार्फ पहनने वाली मुस्लिम औरतों को पोलिंग स्टेशन जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है.
ऐनी ने इस कानून को लाने वाले नेताओं पर सीधा प्रहार करते हुए कहा कि, “जो आप करना चाहते है उसके लिए बहाने मत बनाइए. आपको हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाएं पसंद नहीं हैं. नागरिकता सबके लिए समान रूप से खुली हुई है और कानून निर्माता होने के नाते आपका फर्ज़ है कि आप सबसे समान व्यवहार करें. पोशाक की आज़ादी और वोट देने के अधिकार को मत मिलाइए”.
आखिरकार आर्टिकल पर दो घंटे की बहस के बाद इसे फ्रेंच पार्लियामेंट द्वारा इसे खारिज कर दिया गया.
यहां यह तथ्य बहुत अहम और रोचक है कि सत्तारूढ़ पार्टी जिसने यह बिल प्रस्तुत किया था, उसका विरोध करने वाली ऐनी शेपेलीयर का संबंध भी उसी पार्टी से है.
भारत की सत्तारूढ़ पार्टी की लीडर स्मृति ईरानी जैसी बड़ी नेता ऐनी से बहुत कुछ सीख सकती हैं. जैसे कि किस प्रकार एक महिला के लोकतांत्रिक अधिकार और सम्मान के खिलाफ़ हर स्थिति में खड़ा होना चाहिए, चाहे वो महिला किसी भी धर्म या पार्टी से संबंध रखती हो.
हालांकि, दुर्भाग्य से भारत में सत्तापक्ष की महिला नेता इस विशेषता से बिल्कुल खाली हैं. उन्हें विरोधी पार्टी के नेताओं की शेरो शायरी में भी महिला अपमान नज़र आ जाता है वहीं अपनी पार्टी के कथित बलात्कारी नेताओं पर वो एक लफ्ज़ भी नहीं बोलती हैं.
भारत के नेताओं को एनी से यह भी सीखने की ज़रूरत है कि यदि किसी व्यक्ति या विचार का संबंध उनकी पार्टी से हो लेकिन वो गलत है तो उसके खिलाफ़ बोलने को वो अपना नैतिक दायित्व समझे. गलत के खिलाफ़ उठाया गया ऐसा कदम ही राष्ट्रवाद है, लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करने वाला है और एक अच्छे नागरिक व अच्छा जनप्रतिनिधि होने की पहचान है.
ऐनी शेपेलियर जैसे जनप्रतिनिधि किसी भी देश की अमूल्य निधि होते हैं जो पार्टी, धर्म और जेंडर से ऊपर उठकर भेदभाव रहित समाज का निर्माण कर एक आदर्श लोकतंत्र की स्थापना करते हैं.
ऐनी ने सिर्फ एक आदर्श सांसद होने का मतलब ही नहीं समझाया बल्कि आदर्श नारीवादी होने का मतलब भी सिखलाया है. खासतौर पर भारत की नारीवादी महिलाओं को ऐनी से सबक सीखना चाहिए जिन्होंने नारीवाद को एक खास सांचे में फिट कर दिया है और सांचे के बाहर की कोई भी चीज़ उन्हें स्त्री की आज़ादी की विरोधी लगती है.
भारत के एलीट तबके की नारीवादी महिलाओं ने बाज़ार और स्वयं द्वारा निर्धारित प्रतीकों और कपड़ों को ही आज़ादी का मापदंड मान लिया है. उनके तय किए गए मापदंडों से बिल्कुल अलग हटकर यदि कोई महिला अपनी पसंद से पोशाक चुनती है तो यहां का नारीवादी आंदोलन उन महिलाओं को मानसिक गुलाम घोषित कर देता है.
पिछले वर्ष भारत के मशहूर संगीतकार ए.आर. रहमान की बेटी के पहनावे को लेकर सवाल उठाया गया था. एक प्रतिष्ठित महिला पत्रकार ने कमेंट करते हुए उनकी बेटी के स्कार्फ व हिजाब पहनने को कंडीशनिंग कहकर अपमान किया.
हालांकि, ए.आर. रहमान की एक बेटी अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए हिजाब पहनती हैं और दूसरी अपनी चॉइस से हिजाब नहीं पहनती. यह अपनी-अपनी पसंद, स्वतंत्रता का मामला है मगर एक प्रतिष्ठित पत्रकार द्वारा दूसरे की आज़ादी को कंडीशनिंग कह देना स्वयं एक प्रकार की कंडीशनिंग को दर्शाता है.
भारत में कई बार हिजाब के विरोध में स्वर बुलंद हुए हैं और होते रहते हैं लेकिन यहां की स्त्रीवादी महिलाएं राइट टू चॉइस की बात करते हुए भी कभी अपनी पसंद से हिजाब पहनने वाली महिलाओं का समर्थन नहीं करती हैं, जैसा ऐनी शेपेलियर ने किया.
किसी भी लोकतांत्रिक देश में जहां का संविधान अपने नागरिकों को भाषा, रहन सहन और पहनावे की स्वतंत्रता देता है मगर सत्ता उनसे वह अधिकार छीनना चाहती हो तो ऐनी शेपेलियर जैसी सांसद उनके लिए आदर्श हो सकती हैं.