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Wednesday, April 24, 2024
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क्या फिलिस्तीनियों पर इज़राइली हमले का कारण नेतन्याहू की सत्ता में वापसी की चाह है?

सैयद ख़लीक अहमद | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | क्या फिलिस्तीन में इज़राइली सेना और हमास के बीच हाल ही में हुई हिंसा का प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आंतरिक राजनीति से कोई लेना-देना है? नेतन्याहू की पार्टी लिकुड इस साल मार्च में चुनावों में इज़राइली संसद में बहुमत हासिल करने में विफल रही थी. वह गठबंधन सरकार भी नहीं बना सकते क्योंकि अन्य दल लिकुड पार्टी के साथ गठबंधन करने से इनकार कर चुके है. उन्हें राष्ट्रपति के समक्ष बहुमत साबित करने के लिए 28 दिन का समय दिया गया है, जिसमें विफल रहने पर उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी को सरकार बनाने का मौका दिया जाएगा.

चूंकि सभी राजनीतिक दलों ने नेतन्याहू के साथ गठबंधन सरकार बनाने से इनकार कर दिया है, इसलिए प्रधानमंत्री के प्रत्यक्ष चुनाव संबंधी विचार को लेकर उन्होने एक माहौल बनाना शुरू कर दिया है. नेतन्याहू सोचते हैं कि प्रत्यक्ष चुनाव के ज़रिए वह अपने देश की सर्वोच्च प्रशासनिक पद को जीतने में सफल हो सकते हैं, भले ही उनकी पार्टी संसद में बहुमत हासिल करने में विफल हो जाए. सबसे लंबे समय तक इज़राइल के प्रधानमंत्री रहने वाले नेतन्याहू पर्याप्त संख्या में सांसद हासिल करने की जुगत में अन्य राजनीतिक दलों को आकर्षित करने के लिए सभी प्रकार के प्रस्ताव पेश करने के बावजूद दलबदल करवाने में विफल रहे हैं.

यदि नेतन्याहू या अन्य कोई राजनीतिक नेता इज़रायल के राष्ट्रपति द्वारा दिए गए समय के भीतर सरकार बनाने में विफल रहते हैं तो देश के मौजूदा कानूनों के मुताबिक नए सिरे से चुनाव होंगे और इजराइली कानून मौजूदा प्रधानमंत्री को चुनाव के दौरान और नई सरकार के सत्ता संभालने तक अपने पद पर बने रहने की अनुमति देता है. इसलिए नेतन्याहू अगले चुनावों के दौरान भी प्रधानमंत्री के रूप में अपने पद पर बने रहेंगे.

इज़राइली पुलिस और अदालत द्वारा सन 2017 में दर्ज दो अलग-अलग आपराधिक मामलों में झूठ, रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप में नेतन्याहू पर तय किए गए है. इज़राइली कानून के तहत नेतन्याहू अब प्रधान मंत्री के पद के अलावा कोई अन्य मंत्री पद नहीं संभाल सकते हैं. इजरायल की राजनीति के विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अल कुद्स दिवस (रमज़ान का आखिरी शुक्रवार जो इस साल 7 मई को पड़ा था) पर अल अक्सा मस्जिद के पास इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियां दाग कर की गई हिंसा और उसके बाद 10 मई को (जब यहूदी समूह 1967 के अरब-इजरायल युद्ध के दौरान पूर्वी यरुशलम पर इजरायली सेना के कब्जे का जश्न मनाने के लिए यरुशलम के पुराने शहर के मुस्लिम इलाकों से जुलूस निकालने के दौरान) की गई हिंसा का सम्बन्ध इज़राइल की आंतरिक राजनीति से है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​​​है कि इजरायली सेना और फिलिस्तीनी चरमपंथियों के बीच संघर्ष में हुई वृद्धि नेतन्याहू के पक्ष में इज़रायली मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकती है और यदि ऐसा होता है तो अगले चुनावों में सरकार बनाने के लिए आवश्यक अधिकांश सीटों को नेतन्याहू सुरक्षित कर सकते हैं. इसलिए विश्लेषकों को संदेह है कि इस्राइली सेना और हमास के नेतृत्व वाले फिलीस्तीनी गुट के बीच मौजूदा संघर्ष के पीछे राजनीतिक हाथ है.

हमास द्वारा जवाबी कार्रवाई

अगर राजनीतिक विश्लेषकों की उपरोक्त बातें सच है, तो यह एक बहुत ही गंभीर मामला है जिसमें फिलिस्तीन और इज़राइल के निर्दोष लोगों के खून पर राजनीति की जा रही है. करीब 200 से अधिक फिलीस्तीनी इज़रायल के हमलों और बमबारी में मारे गए और डेढ़ हज़ार से अधिक घायल हो गए हैं. संपत्तियों का भी भारी नुकसान हुआ है. जवाबी हमलों में तेल अवीव और इज़राइल के कई अन्य शहरों पर फिलिस्तीनियों द्वारा दागे गए रॉकेटों में 7 इज़रायलियों के मारे जाने की भी सूचना है. लेकिन  इजरायल द्वारा हवा में ही मिसाइल को नष्ट कर देने वाली आयरन डोम शील्ड तकनीक के इस्तेमाल के कारण इज़रायल में जीवन और संपत्ति का नुकसान बहुत कम हुआ है. फिर भी कुछ टीवी चैनलों के अनुसार तेल अवीव और इज़राइल के अन्य शहरों में कुछ मिसाइलों ने नुकसान किया है.

कई इजरायली शहरों में यहूदियों और इज़राइली-अरब मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक झड़पें

युद्ध के परिणामस्वरूप इज़राइल और फिलिस्तीनियों के बीच कई इजरायली शहरों में यहूदियों और अरब-इज़राइली मुसलमानों के बीच झडपें हुई हैं. अरब-इज़रायल मुसलमानों को चरमपंथी यहूदियों के साथ-साथ स्थानीय पुलिस द्वारा भी निशाना बनाया गया. एक अरब-इज़राईली मुस्लिम को इज़रायली पुलिस ने सांप्रदायिक संघर्ष से निपटने की कोशिश में गोली मार दी.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि ये सभी घटनाक्रम अगला चुनाव जीतने में नेतन्याहू के पक्ष में काम कर सकते हैं, लेकिन केवल समय ही बताएगा क्योंकि नेतन्याहू रिश्वत, जलसाज़ी और धोखाधड़ी के आरोप में अभियोग लगने के बाद सबसे अलोकप्रिय नेता के रूप में उभरे हैं. नेतन्याहू की राजनीति को करीब से देखने पर संकेत मिलता है कि उन्होंने भारत में सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों और नेताओं का अनुसरण करना शुरू कर दिया है, जिनके सत्ता में आने का श्रेय उनकी मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की क्षमता को दिया जाता,  लेकिन भारत में भी ऐसे राजनेताओं का राजनीतिक ग्राफ भी तेज़ी से नीचे खिसक रहा है. चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में हाल ही में हुई विधानसभा चुनावों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में तेज़ी से गिरावट भी इन नेताओं की अलोकप्रियता को दर्शाती है.

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच तनाव का असली कारण क्या है?

पूर्वी यरुशलम में स्थित मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र स्थल मस्जिद अल अक्सा इज़रायल और फिलिस्तीनियों के बीच तनाव का केंद्र है.

जब 1947 में संयुक्त राष्ट्र की योजना के अनुसार इज़राइल को स्थापित करने के लिए फिलिस्तीन का विभाजन किया गया था तो इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्मों के धार्मिक महत्व के कारण यरूशलेम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर घोषित किया गया था. लेकिन 1948 में पहले अरब-इज़रायल युद्ध में, यरुशलम के पश्चिमी आधे हिस्से या जिसे न्यू जेरूसलम भी कहा जाता है, पर इज़रायली सेना ने कब्जा कर लिया था जबकि पूर्वी यरुशलम पर जॉर्डन का कब्जा था.

 सन 1967 के अरब-इजरायल युद्ध में स्थिति और बदल गई जब इज़राइल ने अंतरर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए जॉर्डन से पूर्वी यरुशलम भी कब्जे में ले लिया. हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र सहित सभी अंतर्राष्ट्रीय निकायों ने अभी तक पूर्वी यरुशलम के इज़राइल के कब्जे को मंजूरी नहीं दी है.

जहां पश्चिमी यरुशलम किसी भी अन्य आधुनिक शहर की तरह ही है वहीं पूर्वी यरुशलम में मक्का और मदीना के बाद  मुसलमानों की सबसे पवित्र मस्जिद अल अक्सा मस्जिद सहित ऐतिहासिक स्मारक और धार्मिक स्थान हैं. लेकिन यहूदी मानते हैं कि अल-अक्सा मस्जिद यहूदी धर्म के सबसे पवित्र स्थल टेंपल माउंट पर स्थित है. यहूदी इतिहास के अनुसार अल अक्सा परिसर की पश्चिमी दीवार वेलिंग वॉल है जो यहूदियों के लिए उनके धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र है. इसलिए अल अक्सा मुसलमानों और यहूदियों दोनों के लिए पवित्र है और जब से इज़राइल ने पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया है और यहूदी धार्मिक नेता इसे लगातार हथियाने की कोशिश कर रहे हैं और वहां पूजा करने का अधिकार सुरक्षित कर रहे हैं तब से दोनों समूहों के बीच यह स्थान विवाद की जड़ बन गया है. पिछले 70 वर्षों से इज़रायल में फिलिस्तीनियों और अरब मुसलमानों द्वारा  इस अवैध कब्जे का विरोध किया जा रहा है.

पूर्वी यरुशलम पर कब्जा करने के बाद इज़राइल ने पूर्वी यरुशलम में फिलिस्तीनियों की ज़मीनों पर अपनी विस्तार योजना शुरू कर दी. और इस योजना के तहत अब तक दो लाख से अधिक यहूदियों को पूर्वी यरुशलम में फिलीस्तीनियों को विस्थापित करके बसाया गया है. इज़राइल पूर्वी यरुशलम में फिलिस्तीनियों के साथ भेदभाव भी कर रहा है क्योंकि फिलिस्तीनि जो कि मूल निवासी हैं उन को सशर्त आवासीय परमिट दिया जाता है जबकि पूर्वी यरुशलम में पैदा हुए यहूदियों को इज़रायल की नागरिकता दी जाती है. पूर्वी यरुशलम में रहने वाले फिलिस्तीनियों को इज़रायल की नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति है, लेकिन वे ऐसा नहीं करते क्योंकि वे इज़रायल के अधिपत्य से बाहर एक स्वतंत्र फिलिस्तीन चाहते हैं.

लगातार फिलिस्तीनियों के पूर्वी यरुशलम में स्थानांतरित होने की सूचना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शहर में यहूदी की संख्या में वृद्धि के कारण मुस्लिम आबादी  कम न हो क्योंकि पूर्वी यरूशलेम में अल अक्सा मस्जिद की रक्षा कम मुसलमानों के साथ संभव नहीं हो सकेगी. उन्हें लगता है कि मज़बूत सुरक्षा के अभाव में मस्जिद पर चरमपंथी यहूदी कब्जा कर सकते हैं. फिलिस्तीनी और साथ ही इज़रायली मुसलमान अल अक्सा क्षेत्र की चौबीसों घंटे निगरानी रखते हैं और वो यह सुनिश्चित करते हैं कि सशस्त्र इज़रायली पुलिस के साथ यहूदियों द्वारा पवित्र माने जाने वाले वेलिंग वॉल और माउंट टेम्पल प्लाजा में प्रार्थना के लिए आने वाले यहूदी वहां कुछ मिनटों  से अधिक न रहें. फिलिस्तीनियों को संदेह है कि यदि यहूदियों को अधिक समय तक रुकने अनुमति दी जाती है तो वे मस्जिद पर कब्जा कर सकते हैं.

कानूनी तौर पर किसी भी गैर-मुस्लिम को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं है लेकिन यहूदी वहाँ प्रार्थना करने के अधिकार की माँग करते रहे हैं और उन्होंने मस्जिद में प्रार्थना के समय को मुसलमानों और यहूदियों के बीच बांटने के लिए कई प्रस्ताव रखे हैं लेकिन फिलिस्तीनियों ने इसे खारिज कर दिया है और वो लगातार मस्जिद की निगरानी करते हैं.

इस तथ्य के बावजूद कि जॉर्डन के राजा आज भी अल अक्सा मस्जिद के कानूनी संरक्षक हैं, इज़रायली पुलिस मस्जिद में प्रवेश कर रही है और मस्जिद के बाहर अपने कर्मियों को तैनात कर रही है. इज़राइल ने पूर्वी यरुशलम पर कब्जा करने के बाद अल अक्सा मस्जिद को जॉर्डन को लौटा दिया था और जॉर्डन के राजा को इसका संरक्षक रहने दिया. लेकिन जार्डन की तरफ से मस्जिद के बाहर या अंदर कोई सुरक्षा तैनात नहीं है. मस्जिद इज़राइल की सुरक्षा के तहत आती है, मस्जिद की सुरक्षा के संबंध में फिलिस्तीनियों और अरब-इज़रायल मुसलमानों द्वारा इज़राइल का भरोसा नहीं किया जाता है.

इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच हालिया संघर्ष का कारण क्या है?

हालिया तनाव का कारण अदालत के आदेश पर पूर्वी यरुशलम में शेख जर्राह से फिलीस्तीनियों को बेदखल करना बताया जा रहा है. डेटा के अनुसार जब 1948 में मुसलमानों को इज़राइल के कुछ हिस्सों से बाहर निकाल दिया गया था, तो उनमें से कुछ को जॉर्डन और संयुक्त राष्ट्र द्वारा शेख जर्राह क्षेत्र में बसाया गया था. लेकिन 1967 में इस्राइल द्वारा पूर्वी यरुशलम पर कब्जा करने के बाद, कुछ यहूदी समूहों ने दावा किया कि शेख जर्राह में जिस भूमि पर 1948 में मुसलमानों को बसाया गया है वह ज़मीन यहूदियों की है.

उन्होंने दावा किया कि 1885 में जब यूरोप में यहूदियों का उत्पीड़न किया गया था तब तुर्की के ओटोमन साम्राज्य के अधीन फिलिस्तीन के जर्राह में घरों को यहूदियों द्वारा खरीदा गया था. उनके दावे को कुछ महीने पहले पूर्वी यरुशलम की एक अदालत ने बरकरार रखा था, जिसे इज़रायल के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी जिसकी सुनवाई 10 मई को होने वाली थी. लेकिन इजरायली सशस्त्र बलों के कारण हुई हिंसा के बाद सुनवाई स्थगित कर दी गई थी. 7 मई को रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को दावा किया गया था कि अल अक्सा मस्जिद में फिलिस्तीनी पत्थर और हथियारों के साथ मस्जिद में इकट्ठा हुए थे और पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई की थी कि 10 मई को चरमपंथी यहूदियों द्वारा आयोजित यरूशलेम दिवस मार्च, शहर के मुस्लिम क्षेत्रों से बिना किसी बाधा के गुजरे. लेकिन अकारण पुलिस कार्रवाई के परिणामस्वरूप हमास और अन्य फिलिस्तीनी समूहों द्वारा जवाबी कार्रवाई की गई, जो अब एक बड़े स्तर पर युद्ध में परिवर्तित हो गया है, जिसमें इज़रायल निहत्थे फिलिस्तीनियों के खिलाफ अपने घातक हथियारों का उपयोग कर रहा है. इस्राइली हमलों में हमास के कई कमांडरों के मारे जाने की खबर है.

इजरायल अब अपनी ज़मीनी ताकत का स्तेमाल कर युद्ध टैंकों और अन्य हथियारों का उपयोग करके गाजा पर हमला करने की योजना बना रहा है, और विश्व समुदाय यह सब चुपचाप देख रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब भी अगला चुनाव होगा तो इन घटनाक्रमों का फायदा नेतन्याहू को वोट के रूप में मिल सकता हैं और वह इजराइली संसद में बहुमत हासिल कर के फिर से पीएम बन सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार घरेलू राजनीति, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच मौजूदा हिंसा का एक प्रमुख कारण प्रतीत होता है.

अरबों का कमज़ोर बयान, तुर्की की इज़रायल के खिलाफ कार्रवाई की मांग, यूरोपीय शक्तियों का इज़रायल के समर्थन में बयान

अरब देशों ने बेहद कमजोर बयान जारी किए जो इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को हल करने की दिशा में कोई ठोस आधार नहीं रखते हैं. तुर्की दुनिया का एकमात्र देश है जिसने सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानदंडों के उल्लंघन करने पर इजरायल के हमलों की खुलकर आलोचना की, फिलिस्तीनियो और उनके क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए इज़राइल के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से कार्रवाई करने की मांग की.

हालाँकि यूरोपीय शक्तियाँ, जो हमेशा से ही इज़राइल के पीछे और 1948 में इसके निर्माण के पीछे थीं, ने इज़राइल के समर्थन में बयान जारी किए हैं. यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका जो इज़राइल को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए  4 बिलियन की वार्षिक सहायता देता है, उसने दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील की है. अमेरिका ने परोक्ष रूप से हमास की जवाबी कार्रवाई को आतंकवाद बताया. संयुक्त राष्ट्र हमेशा की तरह इज़रायल-फिलिस्तीनी विवाद को सुलझाने में अपनी भूमिका निभाने में विफल रहा है.

जर्मन विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में फिलिस्तीनियों पर हालिया हिंसा को भड़काने का आरोप लगाया है. जर्मन विदेश मंत्रालय ने एक ट्विटर बयान में कहा कि “इज़रायल के नागरिकों पर रॉकेट फायर किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं है, और निश्चित रूप से संघर्ष को हल करने में यह एक योजन नहीं है बल्कि हिंसा में की गई एक मूर्खतापूर्ण वृद्धि ही है. आगे नागरिक की जान जाने से रोकने के लिए सभी पक्षों की जिम्मेदारी बनती है.” जर्मन मंत्रालय का यह बयान असहाय फिलिस्तीनियों द्वारा किए गए प्रतिशोध पर सवाल उठाता है और इस्राइली आक्रमण को अप्रत्यक्ष रुप से जायज़ ठहराता है.

 अल अक्सा मस्जिद के अंदर फिलिस्तीनी उपासकों पर क्रूर हमले और यरुशलम के शेख जराह इलाके से फिलिस्तीनियों को बेदखल किए जाने की योजना ने  हमास को प्रतिशोध के लिए उकसाया, इन दोनों तथ्यों को भूलकर  चेक विदेश मंत्री जैकब कुलहनेक अपने एक बयान में गाज़ा से इज़राइल में रॉकेट हमलों और गोलीबारी को तत्काल रोकने की अपील की.

गाज़ा द्वारा इजरायली क्षेत्रों में रॉकेट फायरिंग पर सवाल उठाकर फ्रांस ने भी हिंसा के लिए फिलिस्तीनियों को ही जिम्मेदार ठहराया. हालांकि फ्रांस ने शेख जर्राह इलाके से फिलीस्तीनियों को बेदखल करने पर भी आपत्ति जताई और कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध है और हिंसा को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है. फ्रांस ने अल अक्सा मस्जिद में यथास्थिति बनाए रखने की अपील तो की लेकिन  साथ ही अपने बयानों में फ़लस्तीनियों पर इसराइली हमले को सही ठहराया.

स्कॉटलैंड के पहले प्रधानमंत्री निकोला स्टर्जन एकमात्र यूरोपीय नेता हैं जिन्होंने अल अक्सा के अंदर फिलिस्तीनी श्रद्धालुओं पर इजरायल के हमले की आलोचना की है और इजरायल से हिंसा को तुरंत रोकने के लिए कहा है.

उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि, “किसी भी समय पूजा स्थल पर हमला करना निंदनीय है और रमज़ान के दौरान तो किसी मस्जिद पर हमला करना पूरी तरह से अक्षम्य है. यह अंतरराष्ट्रीय कानून का भी उल्लंघन है. इजराईल को तुरंत हिंसा रोकने के आह्वान पर ध्यान देना चाहिए.”

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