कलीम सिद्दीक़ी | इंडिया टुमारो
अहमदाबाद | गुजरात विधानसभा ने पिछले हफ्ते लव जिहाद पर कानून पारित कर देश का चौथा राज्य बन गया है, जहां प्रेम करने से पहले धर्म की परख करनी होगी क्योंकि नए कानून के अनुसार 10 वर्ष तक की सज़ा है.
विधानसभा में दस घंटे की चर्चा के बाद गुजरात स्वातंत्र्य अमेंडमेंट बिल पास कर दिया गया. बिल का प्रस्ताव प्रदेश के गृह राज्य मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने रखा. संशोधन बिल पर जडेजा ने कहा, “पहले हमने गायों को कानून बनाकर बचाया अब इस कानून से लड़कियों को बचाएंगे. यह कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं लड़कियों की रक्षा हमारा धर्म है.”
जाड़ेजा ने आगे कहा, “लव जिहाद से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर हमला किया जा रहा है. भारत ही नहीं दुनिया के कई राष्ट्र लव जिहाद से त्रस्त हैं. जो बॉर्डर पर भारत को हरा नहीं सकते वह लव जिहाद से आतंक फैला रहे हैं. इस कार्य के लिए अरब देशों से हवाला के माध्यम से पैसे आते हैं.”
कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ा वाला ने इस बिल को सभा में ही फाड़ कर विरोध दर्ज किया. AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष साबिर काबली वाला ने बिल को असंवैधानिक बताया. विधायक गयासुद्दीन शेख ने बिल का विरोध करते हुए कहा, “भाजपा अपने राजनैतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए इस बिल को ले आई है, ताकि उसे राजनैतिक लाभ मिल सके. प्रेम का मामला एक तरफा नहीं होता, 100 से अधिक मुस्लिम लड़कियां भी गैर मुस्लिम से विवाह की हैं.”
गुजरात विधानसभा में विपक्ष नेता परेश धनानी ने कहा, “इस बिल में कहीं भी लव जिहाद शब्द का उपयोग न कर सरकार ने गुजरात की जनता को अंधेरे में रखा है. इस कानून की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि आईपीसी में संबंधित अपराध के लिए धाराएं और सज़ा का प्रावधान है.”
धनानी ने अपने वक्तव्य में अंतर जातीय विवाह के लिए मुख्य मंत्री विजय रूपानी को बधाई भी दी क्योंकि रूपानी एक जैन हैं और उनकी पत्नी जैन धर्म से नहीं हैं. रूपानी ने भी प्रेम विवाह किया था. धनानी ने आगे कहा, “नरगिस की फिल्मों को देखने के लिए नितिन पटेल भी ब्लैक में टिकट लेकर फिल्म देखने जाते रहे होंगे. यदि प्रवीन बोबी ने प्रदीप सिंह जड़जा को प्रपोज किया होता तो वह पानी पानी हो गए होते. जिसपर विधान सभा अध्यक्ष ने व्यक्तिगत हमले करने को मना किया और जड़जा पर की गई टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटा दिया.
The Gujarat freedom of religion act 2003 को जबरन धर्म परिवर्तन या लालच से धर्म परिवर्तन का बहाना बनाकर इस कानून में संशोधन किया गया है. संशोधित कानून के अनुसार अब गुनाह साबित होने पर तीन से दस वर्ष तक की कैद और पांच लाख तक का जुर्माना है.
यदि कोई संस्था मुजरिम साबित होती है तो उस संस्था के इंचार्ज पर कार्यवाही होगी. इंचार्ज को 3-10 साल की कैद और पांच लाख तक जुर्माना होगा. माता पिता और खून का रिश्ता रखने वाला कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है. इसे नॉन बैलेबल की श्रेणी में रखा गया है.