फ़ातिमा ख़ातून | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | कोरोना वायरस ने लोगों की जिंदगियों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को एक वैश्विक महामारी घोषित किया. जिस गति के साथ कोविड-19 दुनिया के सभी हिस्सों में फैला, रोग के प्रसार को रोकने के लिए भारत सहित दुनिया के लगभग सभी देशों ने रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए और तमाम सार्वजनिक स्थलों को और शिक्षण संस्थानों को अस्थाई रूप से बंद किया गया.
कोरोनावायरस का प्रभाव न सिर्फ अर्थव्यवस्था पर पड़ा है बल्कि इसका प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्रों पर पड़ा है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिला है. कोरोना महामारी के चलते ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की गई ताकि छात्र घर में रहते हुए भी पढ़ाई कर सकें लेकिन क्या ऑनलाइन पढ़ाई से छात्रों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है?
ऑनलाइन शिक्षा के जहां बहुत सारे फायदे भी हैं वहीं बहुत सारे नुकसान भी नज़र आ रहे हैं. शिक्षा पर काम करने वाली संस्था राइट टू एजुकेशन फॉर्म ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज और चैंपियन फॉर गर्ल्स एजुकेशन के साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में एक अध्ययन किया है जिसके मुताबिक कोरोना के कारण स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है.
घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल ना होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जा रही है वहीं कोरोना के कारण हुए आर्थिक तंगी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूटने का डर भी शामिल हो गया है.
मैपिंग द इंपैक्ट ऑफ़ कोविड-19 नाम से यह अध्ययन उत्तर प्रदेश के 11, बिहार के 8, असम के 5, दिल्ली के और तेलंगाना के 4 जिले के 3176 परिवारों में किया गया था. आर्थिक तौर पर कमजोर इन परिवारों से बातचीत के दौरान लगभग 70% लोगों ने माना कि कोरोना वायरस के बाद उनके घर में आर्थिक तंगी हुई और उनके पास खाने को भी पर्याप्त नहीं बचा ऐसे हालात में यह परिवार बच्चों को खासकर लड़कियों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाने की स्थिति में नहीं है.
अगर शहरी छात्र जीवन पर इसका प्रभाव देखा जाए तो उसमें भी कोई खास बेहतरी दिखाई नहीं दे रही है. जो शिक्षा उनको स्कूल कॉलेजों और शिक्षण संस्थानों में जाकर मिलती थी वह ऑनलाइन मिल पाना काफी मुश्किल हो रहा है. लॉकडाउन में बंद पड़े स्कूलों के चलते शुरू की गई ऑनलाइन पढ़ाई में छात्र ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. यही कारण है कि इन कक्षाओं से करीब आधे छात्र ही जुड़ पाते हैं.
इसके अलावा कहीं नेट की रफ्तार तो कहीं संसाधनों की कमी ऑनलाइन पढ़ाई को प्रभावित कर रही है. अभिभावक बच्चों के असाइनमेंट तैयार करने में जुटे रहते हैं तो अधिकतर शिक्षक भी इसे कई कारणों से ज्यादा प्रभावी नहीं मानते हैं. ऑनलाइन कक्षाओं के तहत संसाधनों की कमी का सबसे अधिक सामना 10वीं और 12वीं के छात्रों को करना पड़ रहा है.
निदेशालय के एक शिक्षक के मुताबिक जिन बच्चों ने अभी नवीं और ग्यारहवीं पास की है उन्हें ऑनलाइन शिक्षा देने के लिए कक्षा शिक्षक ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं. इस ग्रुप के माध्यम से ही ऑनलाइन कक्षाओं का आयोजन व निगरानी होती है. कक्षा में पंजीकरण के हिसाब से एक कक्षा के लिए बनाए गए ग्रुप में 40 से 50 छात्र होने चाहिए लेकिन इस ग्रुप में बड़ी संख्या में छात्र जुड़े नहीं होते हैं.
ऑनलाइन कक्षाओं में उनके ना जोड़ने का प्रमुख कारण संसाधनों का अभाव होना है, वही कोरोना की वजह से कई परिवार वापस गांव लौट गए हैं. हालांकि 12वीं के छात्रों का प्रतिभाग सबसे अधिक है. जो चीजें कक्षा में बैठकर सीखी जाती थी वह घर में रहकर ऑनलाइन नहीं सीखी जा सकती.
कुछ स्कूलों ने पहले ही 2021 के कक्षा को आभासी शुरुआत की घोषणा की थी लेकिन फिर से कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों ने इसे बंद करने पर मजबूर कर दिया. छात्रों के लिए ऑनलाइन शिक्षा चुनौतियों से भरा हुआ है इसे बेहतर बनाने के लिए हर राज्य सरकारों को स्कूलों में वह संसाधन प्राप्त कराए जाने चाहिए जिससे छात्र आसानी से ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सकें.