अज़हर अंसार | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | देश के विख्यात पत्रकारिता संस्थान भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के नई दिल्ली स्थित कैंपस में पिछले 6 दिनों से छात्र धरना दे रहे हैं. छात्रों की मांग है कि दुसरे सत्र की पढ़ाई क्लासरूम में ऑफलाइन होनी चाहिए. हालाँकि प्रशासन की कैंपस खोलने को लेकर इस समय कोई रूचि नहीं नज़र आ रही है.

छात्रों का कहना है कि प्रशासन ने उन्हें पहले सत्र के दौरान ये वादा किया था कि उनकी दुसरे सत्र की पढ़ाई और तमाम प्रायोगिक प्रोज्रक्ट्स संस्थान के परिसर में होंगें. हालाँकि इस वादे का कोई लिखित प्रमाण नहीं है. छात्रों का कहना है कि पत्रकारिता की पढ़ाई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए संभव नहीं है. डिजिटल मीडिया के इस दौर में एक पत्रकार को जो तमाम सॉफ्टवेयर्स और तकनीक मालूम होना चाहिए उन्हें ऑनलाइन सीखना बेहद मुश्किल है.

हिंदी पत्रकारिता के छात्र सुमित रजक कहते हैं कि, “ऑनलाइन कक्षाओं में हमें सैद्धांतिक ज्ञान तो मिला लेकिन टीवी या डिजिटल माध्यमों में काम करने के लिए हमें जिस प्रायोगिक ज्ञान की ज़रूरत है उसे ऑनलाइन नहीं सीखा जा सकता है. फोटो, विडियो एडिट करने या किसी अख़बार के लेआउट को तैयार करने के लिए आपके पास अपना कंप्यूटर और सॉफ्टवेर होना चाहिए. पिछड़े क्षेत्रों और गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के पास ये तमाम सुविधाएँ नहीं हैं. इसी तरह पत्रकारिता और भारत के इतिहास से सम्बंधित महँगी किताबें छात्र नहीं खरीद सकते हैं. इसलिए ज़रूरी है कि प्रशासन कैंपस खोले ताकि छात्र संस्थान की लैब और लाइब्रेरी से फायदा उठा सकें.”

उर्दू पत्रकारिता के छात्र उबैदुल्लाह का कहना है कि, “बहुत से संघर्षों के बाद एक छात्र आईआईएमसी जैसे संस्थान में प्रवेश लेता है, उससे कोर्स की एक मोटी फीस वसूली जाती है. इस फीस में उससे लाइब्रेरी चार्ज, लैब फीस, सिक्यूरिटी फीस, स्पोर्ट्स के लिए फीस और न जाने क्या क्या शामिल होता है. हम छात्रों को ऑनलाइन ट्यूशन तो मिली लेकिन हमसे फीस ऑफलाइन की वसूली गई. हमारा एक मुद्दा ये भी है कि जब ऑनलाइन क्लासेज ही होने थे तो हमसे इतनी मोटी फीस क्यों ली गई है?”

छात्रा दीपशिखा पाण्डेय का कहना है कि, “पत्रकारिता पढ़ना सिर्फ सिद्धांतों को की पढ़ लेना नहीं है बल्कि ये व्यावहारिक शिक्षा पाने जैसा है, कैमरा को कैसे ओपरेट करें, विडियो फ्रेम्स की समझ, विडिओ – ऑडियो एडिटिंग के सॉफ्टवेयर्स को ऑनलाइन नहीं सीखा जा सकता है. मीडिया इंडस्ट्री में टीम वर्क को बहुत अहम् माना जाता है, कहने को यहाँ छात्रों की टीम्स तो हैं लेकिन सब बिखरें हुए हैं. कैंपस अगर खुला होता तो छात्र मिलकर प्रोजेक्ट्स भी करते और एक दुसरे से बेहतर तरीके से सीखने के साथ साथ सही अर्थ में टीम वर्क को समझ पाते.”

दीपशिखा आगे कहती हैं कि, “जब संस्थान के भीतर ही कई तरहं के कार्यक्रम, संघोष्टि, मिलन समारोह आयोजित हो सकते हैं तो संस्थान अपने छात्रों को कैंपस आने से क्यों रोक रहा है. बात कि जाए तो देश में कई धार्मिक अनुष्ठान हो सकते हैं, चुनावी सभाएं हो सकती हैं. वहां क्या कोरोना नहीं होता. क्या सिर्फ कोरोना छात्रों की नोटबुक और शेक्षणिक संस्थानों में ही पाया जाता है?”

हिंदी पत्रकारिता की छात्रा मैत्री कुमारी बताती हैं कि, “हम सभी छात्रों से एडमिशन के समय दुसरे सत्र में ऑफलाइन पढ़ाई का वादा किया गया था. फरवरी से ही फिजिकल क्लासेज की मांग की जा रही है. लेकिन प्रशासन कोरोना का बहाना बना कर छात्रों को कैंपस आने से रोक रहा है.”

8 अप्रैल को संस्थान की ओर से जारी किए गए एक पब्लिक नोटिस में प्रशासन में प्रायोगिक कार्यों के लिए संभावित रूप से 26 अप्रैल से कैंपस खोलने की बात लिखी है. हालंकि सस्थान ने कैंपस आने वाले छात्र छात्राओं किसी भी तरह की होस्टल सुविधा देने से साफ़ मनाकिया है. ऐसे में छात्रों का मानना है कि ये नोटिस सिर्फ प्रदर्शन को ख़त्म करने के लिए एक झूठा आश्वासन है.

छात्रा दीपशिखा का कहना है कि, “जब छात्र छात्राएं निश्चित होना चाहते हैं कि कैंपस खुले तो ऐसे में प्रशासन अपने नोटिस में सिर्फ संभावित तौर पर खोलने की बात क्यों कर रहा हैं? ये नोटिस सिवाय एक धोखे के कुछ नहीं है.”

छात्रों का सबसे अहम् सवाल है कि जब उन्होंने अपनी फीस जमा करते समय उसमें लाइब्रेरी, लैब, स्टाफ, गेस्ट फैकल्टी की यात्रा, स्पोर्ट्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर सबका शुल्क दिया है तो उन्हें इनके इस्तेमाल से क्यों रोआ जा रहा है? या तो संस्थान खोला जाए या उनकी बकाया फीस को माफ़ किया जाए.

कैंपस खोलने की मांग के आलावा भी छात्रों के कई मुद्दे हैं. जिनको लेकर भी छात्र लगातार संस्थान से सवाल कर रहे हैं. जैसे एक सरकारी संस्थान में इतनी भारी फीस का होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं.

गरीब पृष्ठभूमि और कथित निचली जातियों व समुदायों से आने वाले छात्र छात्राएं यहाँ की इतनी भारी फीस के कारण प्रवेश नहीं ले पाते हैं. इसी कारण हर वर्ष संस्थान में SC/ST श्रेणी की सीटें खाली रह जाती हैं. इसी तरह आईआईएमसी में स्नातकोत्तर स्तर की पढाई होती है लेकिन कैंपस को 24*7 नहीं खोला जाता है जोकि सही नहीं है. इन मुद्दों पर पिछले वर्षों में भी कई छात्रों ने प्रदर्शन किए हैं.

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