ख़ान इक़बाल | इंडिया टुमारो
जयपुर | राजस्थान की सेंट्रल जेल में पिछले 26 साल से बंद सबसे उम्रदराज़ क़ैदी डॉक्टर हबीब ख़ान को अदालत से 21 दिन की पैरोल मिली थी जिसे छह हफ्तों के लिए बढ़ा दिया गया है.
डॉक्टर हबीब ख़ान को मिली पैरोल की अवधि 16 मार्च को ही समाप्त हो गई थी लेकिन पहले पैरोल से सम्बंधित अव्यवस्थाओं को लेकर परिजन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे.
इंडिया टुमॉरो से बात करते हुए ख़ान के पोते मारूफ ने बताया कि, “सुप्रीम कोर्ट ने 21 दिन की पैरोल पर सुनवाई करते हुए इसे छः हफ़्तों के लिए आगे बढ़ा दिया है और अब 9 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में लाइफ़ पैरोल की सुनवाई होनी है.”
उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले डॉ० हबीब खान को 1993 में मुंबई के सीरियल बम धमाकों के मामले में 26 साल पहले उनके घर से गिरफ़्तार किया गया था.
इंडिया टुमारो से बात करते हुए डॉ० हबीब खान के पोते मारूफ अहमद खान ने कहा कि, “बाबरी मस्जिद विध्वंस के दूसरे साल यानी 1993 में देश में कई स्थानों पर बम धमाके हुए थे. उस समय विरोध प्रदर्शन में शामिल कई लोगों की गिरफ़्तारियां भी हुई थी. मेरे दादा की गिरफ़्तारी भी उसी दौरान हुई थी. उनपर TADA जैसे काले क़ानून के तहत कार्रवाई की गई. उस क़ानून में इकबालिया बयान को ही सबूत के तौर पर मान लिया जाता था.”
मारूफ कहते हैं कि, “असहनीय यातना के बाद उनसे इक़बालिया बयान लिया गया था. डॉ० हबीब खान 1994 के जनवरी में गिरफ्तार हुए थे और 28 फरवरी 2004 को उनको अजमेर की टाडा (TADA) अदालत ने आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी.
डॉ० हबीब खान पेशे से एक हौमियोपैथिक डॉक्टर हैं और गिरफ़्तारी के समय वो रायबरेली में एक क्लिनिक भी चलाते थे.
2018 में उनके बेटे मोहम्मद आसिफ खान ने राजस्थान उच्च न्यायालय में पैरोल अर्ज़ी लगाई थी जिसमें डॉ० हबीब खान के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं ज़ाहिर की गई थीं.
इंडिया टुमारो को डॉ० हबीब के परिवार ने बताया कि, “लगातार तीन साल तक पैरोल की अर्ज़ी डालने के बाद राजस्थान उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और 23 साल क़ैद में रहने के बाद उन्हें पहली बार 2018 में 21 दिन की पैरोल मिली थी. डॉ० हबीब खान को दूसरी बार पैरोल 15 जनवरी को 15 दिन के लिए मिली थी.”
मारूफ़ आगे कहते हैं, “नियम के मुताबिक़ दूसरी पैरोल 30 दिन की मिलनी चाहिए लेकिन उन्हें 15 दिन की ही पैरोल दी गई.”
PUCL के मुताबिक डॉ० हबीब खान राजस्थान की किसी भी जेल में बंद सबसे उम्र दराज़ कैदी हैं.
अपने पिता के स्वास्थ्य को लेकर मोहम्मद आसिफ खान ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए बताया था कि, “मेरे पिता की उम्र 94 साल है. वो जेल में दूसरे कैदियों के सहारे ही ज़िन्दा हैं. उन्हें न तो दिखाई देता है और न वो सुन सकते हैं. वह बिना किसी के सहारे के चल नहीं सकते. दुसरे कैदी ही उन्हें खाना खिलाते हैं और नहलाते हैं. उन्हें दिल की बीमारी है और मुंह से खून आता है.”
जेल में उनकी हालत का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं, “उनका शरीर पर नियंत्रण नहीं हैं उनके हाथ पैर कांपते हैं और कभी-कभी वो अपने कपड़ों में ही शौच कर देते हैं.”
डॉ० हबीब खान की स्थाई पैरोल के लिए जुलाई 2018 में दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन डॉ० ज़फरुल इस्लाम खान ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजस्थान के मुख्यमंत्री और राज्यपाल तथा राजस्थान उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश को एक पत्र भी लिखा था.”
पत्र में कहा गया था कि, “उनकी 87 साल की पत्नी कैसर जहाँ अपने जीवन के आखिरी दिन अपने पति को देखने उम्मीद में गुज़ार रहीं हैं. डॉ० हबीब पर धमाकों के लिए फण्ड मुहैया करने के आरोप हैं लेकिन उन्होंने न्यायालय में इन आरोपों को यह कहते हुए नकार दिया था की उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित करके यह आरोप क़ुबूल करवाए गए हैं.”
मानवीय आधार पर डॉ० हबीब खान को रिहा करने की मांग करते हुए डॉ० ज़फरुल इस्लाम खान ने पत्र में कहा था, “आपका यह मानवीय क़दम उस परिवार के आंसू पोंछने में मदद करेगा जिन्होंने अपने अभिभावक को उस समय खो दिया जब परिवार को उनकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी. उन्हें जीवन की आखिरी सांस शांति के साथ अपनी पत्नी बच्चों और पोते पोतियों के साथ लेने देना चाहिए.”
उन्होंने पत्र में लिखा था कि, “मुझे लगता है 25 साल जेल में रहना न्याय की भावना को संतुष्ट करने के लिए काफी हैं, वो भी उस अपराध के लिए जिसमे उन्होंने कोर्ट में क़ुबूल किया है कि उन्हें प्रताड़ित करके आरोप क़ुबूल करने के लिए मजबूर किया गया था.”
आसिफ आगे कहते हैं, “हमारा सरकार से निवेदन है कि मेरे पिता को मानवीय आधार पर रिहा किया जाए ताकि जो भी उनकी थोड़ी बहुत ज़िन्दगी बची है वो हमारे साथ गुज़ार सकें और हम उनकी सेवा कर सकें.”
मार्च 2020 में पत्नी की हुई मौत:
मार्च 2020 में डॉ० हबीब खान की पत्नी कैसर जहाँ का निधन हो गया. हबीब खान के बेटे मोहम्मद आसिफ ने इंडिया टुमारो को बताया कि, “मेरी माँ इसी उम्मीद में दुनियां से चली गयीं की आखरी बार मेरे पिता को देख सकें. कोरोना की वजह से हम पैरोल के लिए भी अर्ज़ी नहीं डाल पाए, न तो इस तरह की व्यवस्था थी और जेल में भी कोरोना फ़ैल गया था.”
PUCL राजस्थान, राज्य सरकार से डॉ० हबीब खान की रिहाई की मांग कर चुकी है.